पतंजलि ने आयुर्वेद को सर्वांगीण, सर्वविध रूप में, सर्वव्यापी व विश्वव्यापी बनाया
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आचार्य बालकृष्ण
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पतंजलि ने आयुर्वेद को सर्वांगीण, सर्वविध रूप में, सर्वव्यापी व विश्वव्यापी बनाया
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योगायुर्वेद, नेचरोपैथी, पंचकर्म, षट्कर्म की सैकड़ों थैरेपी, उपवास व उपासना पद्धति के
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इंटीग्रेटिड ट्रीटमेंट से हमने लाखों लोगों को रोगमुक्त किया है।
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हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं और यदि हम झूठे विज्ञापन या प्रोपेगेंडा करें तो हम पर करोड़ों का जुर्माना लगायें या हमें फाँसी की सजा भी दें तो हमें आपत्ति नहीं होगी
आज पतंजलि आयुर्वेद का पर्याय बन चुका है। दुनिया में किसी को आयुर्वेद का पता हो या न हो किन्तु इण्डियन मेडिसिनल सिस्टम के तहत काम करने वाली किसी संस्था का नाम उन्हें पता है, तो वह ‘पतंजलि’है। हमने विश्व के अनेक देशों का भ्रमण किया और पाया कि योग को लोग अब योगा के रूप में जानने लगे हैं किन्तु आयुर्वेद को आयुर्वेद के नाम से दुनिया जाने इसके लिए अभी हमें बहुत काम करने की आवश्यकता है। विश्व में आयुर्वेद शब्द का अर्थ या आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के विषय में जानने वालों की संख्या बहुत कम है। अब पतंजलि यह कह रहा है कि ‘हर दिन आयुर्वेद, हर घर आयुर्वेद। इससे बड़ा कोई लक्ष्य नहीं हो सकता। हम वसुधैव कुटुम्बम की बात करते हैं, इसका अर्थ हुआ कि यह पूरा विश्व हमारा कुटुम्ब है। इसलिए हमें पूरे विश्व में हर घर में आयुर्वेद की प्रतिष्ठा करनी है और यह बड़ा कार्य पतंजलि से ही होना है। आज पूरे विश्व में लोगों की दृष्टि पतंजलि पर है।
झूठा प्रचार नहीं, हमने योग, आयुर्वेद व नेचुरोपैथी से करोड़ों लोगों को रोगमुक्त किया
हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं और यदि हम झूठे विज्ञापन या प्रोपेगेंडा करें तो हम पर करोड़ों का जुर्माना लगायें या हमें फाँसी की सजा भी दें तो हमें आपत्ति नहीं होगी। लेकिन हम झूठा प्रचार नहीं कर रहे हैं। योगायुर्वेद, नेचरोपैथी, पंचकर्म, षट्कर्म की सैकड़ों थैरेपी, उपवास व उपासना पद्धति के इंटीग्रेटिड ट्रीटमेंट से हमने लाखों लोगों को रोगमुक्त किया है। बीपी, शुगर, थायराइड, अस्थमा, आर्थराइटिस व मोटापा से लेकर लीवर, किडनी फेल्यिर व कैंसर जैसे प्राणघातक रोगों से हमने हजारों लोगों को मुक्त किया। इसका एक करोड़ से अधिक लोगों का डेटा बेस, रियल वर्ल्ड एविडेंस व क्लिनिकल एविडेंस हमारे पास है।
पंतजलि रिसर्च फांडेशन के तत्वाधान में आयुर्वेद पर निरंतर गहन अध्ययन व शोध जारी
हमारे पास ट्रेडिशनल ट्रीटमेंट व सनातन ज्ञान परम्पर पर शोध करने के लिए विश्व का श्रेष्ठतम रिसर्च सेन्टर, पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन है। जहाँ सैकड़ों वर्ल्ड रिनाउण्ड साइंटिस्ट रिसर्च कर रहे हैं तथा 3,000 से अधिक रिसर्च प्रोटोकोल फॉलो करके 500 रिसर्च पेपर वर्ल्ड के टॉप रिसर्च जनरल्स में पब्लिश हो चुके हैं।
लाइफ सेविंग ड्रग्स, इमरजेंसी ट्रीटमेंट व जरुरी सर्जरी का सदैव सम्मान
मैडिकल सेक्टर के कुछ हठी, दुराग्रही व योगायुर्वेद व नेचरोपैथी का विरोध करने वाले तथाकथित कुंठित डॉक्टरों को बहुत बड़ी समस्या है। यह सत्य है कि सिंथेटिक दवाओं से रोगों को कन्ट्रोल तो कर सकते हैं लेकिन क्योर नहीं कर सकते। लेकिन एलोपैथी की ये समस्या योग-आयुर्वेद के लिए समस्या नहीं है। मेडिकल फील्ड में नकली पेसमेकर लगाने वाले, किडनी चोरी करने वाले, गैर-जरूरी दवा व अंधाधुंध टैस्ट कराकर जो मेडिकल क्राइम कर रहे हैं, उनको हमने कई बार मेडिकल माफिया/ड्रग माफिया कहा था, इससे लड़ाई हुई है। मेडिकल साइंस में जो अच्छे डॉक्टर्स हैं तथा जो लाइफ सेविंग ड्रग्स, इमरजेंसी ट्रीटमेंट व जरुरी सर्जरी है, हम उसका पहले भी सम्मान करते थे, आज भी सम्मान करते हैं।
साथ ही एलोपैथी से भी एडवांस ट्रीटमेंट जो हमने वेदों आयुर्वेद के महर्षि चरक, महर्षि सुश्रुत व महर्षि धनवन्तरि, पतंजलि से प्राप्त किया है, उसको वैज्ञानिकता व प्रमाणिकता से व्यापार के लिए नहीं, उपचार व उपकार की भावना से आगे बढ़ा रहे हैं व बढ़ाते रहेंगे।
जरूरी पडऩे पर हम कोर्ट व मीडिया के समाने सारे तथ्य व प्रमाण भी रखने के लिए तैयार हैं।
योग-आयुर्वेद की शक्ति व सामर्थ्य
कोरोना महामारी के समय पतंजलि पर केस करने वाले एलोपैथिक चिकित्सक अब हमसे आकर कहते हैं कि हम भी कोरोनिल खाकर ही बचे। इससे एलोपैथ का षड्यंत्र स्पष्ट होता है, इससे सिद्ध होता है कि तुम्हारा झूठ तो सच और हमारा सच झूठ। आयुर्वेद से जीवन पाने वाला ही आयुर्वेद को गाली दे रहा है। लेकिन अब यह नहीं चलेगा। आयुर्वेद में बहुत शक्ति है। योग के संदर्भ में भी, जब योग आगे बढऩे लगा, योग के प्रभाव को जब दुनिया ने देखना शुरू किया तब बहुत सारे लोग पतंजलि के इस अभियान को, श्रद्धेय स्वामी जी के इस महान कार्य को लेकर प्रश्न उठाते रहे। विविध तरह के आक्षेप लगाने का प्रयत्न किया गया। पर वे लोग भी सुबह-शाम अनुलोम-विलोम करते पाए गए।
एलोपैथिक चिकित्सक भी योग-आयुर्वेद की शरण में
कुछ लोग कहते हैं कि इमरजेंसी में तो एलोपैथी की ओर ही जाना पड़ता है। हमने कब कहा कि इमरजेंसी की स्थिति में एलोपैथी का प्रयोग नहीं करना है किन्तु सगर्व हम यह भी कह सकते हैं कि पतंजलि परिसर में प्रतिदिन लगभग ४,००० की आईपीडी में सैकड़ों एलोपैथ के चिकित्सक भी भर्ती रहते हैं। हम तो यह नहीं कहते कि एलोपैथ के चिकित्सक योग-आयुर्वेद क्यों प्रयोग करते हैं। लेकिन हम डंके की चोट पर यह कह सकते हैं कि देश के बड़े-बड़े हॉस्पिटलों में अब योग-आयुर्वेद का डिविजन अलग से खुल रहा है। ये वही लोग हैं जिन्होंने पहले योग-आयुर्वेद पर प्रश्न उठाने का कार्य किया था। अब हम यह कहने लगें कि अब तुम योग-आयुर्वेद की बात क्यों करने लगे?
आयुर्वेद को लेकर भ्रामक प्रचार का पर्दाफाश, आयुर्वेद ने पूरे तथ्य व प्रमाणों के साथ मनवाया अपना लोहा
लोग कहते थे कि आयुर्वेदिक दवा खाकर लिवर व किडनी खराब होते हैं। हमने लीवोग्रिट पर शोध कर पूरे विश्व के टॉप इम्पैक्ट वाले रिसर्च जर्नल्स में अलग-अलग रिसर्च पेपर्स प्रकाशित कर पूरे प्रमाण के साथ यह सिद्ध कर दिया कि खराब लिवर यदि कोई ठीक कर सकता है तो वह आयुर्वेद है।
लोग किडनी को लेकर बात उठाते थे। अभी हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्र Plos One ने हमारे रीनोग्रिट पर नवीन शोध को प्रकाशित किया है जिससे सिद्ध होता है कि खराब हो चुकी किडनी ठीक करने का सामर्थ्य आयुर्वेद में ही है। जिन किडनी रोगियों का डॉयलेसिस हो चुका है, सीरम क्रिटनीन व यूरिया बढ़ा हुआ है, किडनी में सूजन है, उनका उपचार भी आयुर्वेद से सम्भव है।
गिलोय को लेकर कितना प्रश्नचिन्ह उठाया गया कि इससे लिवर किडनी खराब होता है। एक रिसर्च पेपर में यह प्रमुखता से छापा गया। तब हमने भारत सरकार से लेकर आयुष विभाग आदि सभी से सम्पर्क किया कि इस षड्यंत्र का जवाब दे दो। गिलोय के लाभ को पूरी दुनिया जान गई है और उनके ग्राहक कम होने लगे हैं। उन्होंने देखा कि एक झटके में लाखों करोड़ का व्यापार ठप हो गया। तब उन्होंने सोचा कि जिसको खाकर ठीक हो रहे हैं उसी को बदनाम कर दो। इसी मंशा से गिलोय का दुष्प्रचार किया गया। जब सही को बार-बार गलत कहा जाए तो संशय हो ही जाता है। फिर हमने तथ्य व प्रमाणों के साथ उसी रिसर्च जर्नल में छपवाया कि गिलोय से लिवर-किडनी खराब नहीं होता।
हम कालजयी व्यवस्था व कालातीत चिकित्सा पद्धति के संवाहक
आयुर्वेद के चिकित्सकों को हम यह कहना चाहते हैं कि आप जिस विधा से जुड़े हैं उस विधा में अनादिकाल से बहुत शक्ति, सामर्थ्य व प्रभाव था, आज भी है और भविष्य में भी रहेगा। हम कालजयी व्यवस्था के कालातीत पद्धति के संवाहक हैं। काल में वह पद्धति समाहित नहीं है। भूत-भविष्य व वर्तमान हमारी तुलना में है, किन्तु हमारी पद्धति उससे परे है। यह बोध, यह विश्वास आपको होना चाहिए। किन्तु यदि तुम्हें अपने पर ही भरोसा न हो तो पूरी दुनिया तुम्हें भरोसा नहीं दिला सकती। आयुर्वेदिक चिकित्सक अपने पर, अपनी विधा पर भरोसा करें और पूरी दुनिया को अपने पर भरोसा करने का लक्ष्य निर्धारित करें। आप मन में यह धारणा रखें कि ईश्वर ने हमें आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी दी है।
पतंजलि का प्रत्येक वैद्य व पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज का प्रत्येक विद्यार्थी यह संकल्प ले कि जब तक इस धरा पर पतंजलि का एक भी वैद्य या विद्यार्थी जीवित है, आयुर्वेद पर आंच नहीं आने देंगे। आपमें एक ऋषि-ऋषिका का अंश है।
हम जाति नहीं, ज्ञान व सामर्थ्य के उपासक
प्राचीनकाल में ऋषि-ऋषिकाएँ होती थीं, जैसे पुरुष भाई विद्वान होते थे वैसे ही बहनें भी विदुषियाँ होती थीं। यह तो मध्यकाल में ऐसा अंधकार छाया कि मान्यता हो गई कि स्त्री व शूद्र को पढऩे का अधिकार नहीं है। महर्षि दयानन्द ने इस अंधकार को मिटाने का महान कार्य किया। पतंजलि भी उन्हीं महर्षि दयानन्द की पावन परम्परा की ही संवाहक है जिन्होंने अंगे्रजों के समय में स्त्रियों के लिए स्कूल खोलने की वकालत की। उन्होंने न केवल महिला शिक्षा के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया अपितु उनके शिष्यों ने जगह-जगह महिला विद्यालयों की स्थापना की।
आज लोग हमसे ईर्ष्या करते हैं कि हम न तो शिक्षा के लिए स्त्री-पुरुष में भेद नहीं करते हैं और न ही जाति पूछते हैं। संन्यासी बनाने के लिए उनकी परम्परा नहीं पूछते। हमारे यहाँ सभी जाति के, सभी क्षेत्र के संत और साध्वियाँ हैं क्योंकि हम जाति नहीं ज्ञान व सामर्थ्य को पूजते हैं। जब सामर्थ्य की पूजा होने लगेगी तो दुनिया स्वत: समृद्धशाली होने लगेगी। हम संकुचित अवधारणा के लोग नहीं हैं, हम पूर्वाग्रही नहीं हैं। प्राचीन ऋषियों के ज्ञान, विज्ञान, धरोहर, ऋषियों की समृद्धि का संरक्षण करते हुए पूरी दुनिया में पहुँचाना हमारा कत्र्तव्य है। यदि ऋषियों की परम्परा जीवित रहे, उसकी अभिवृद्धि हो, उसका विकास हो तभी हमारा जीवन भी सुरक्षित है।
हमारे दु:ख, पीड़ा व रोगों पर खड़ा है फार्मा कंपनियों का आर्थिक साम्राज्य
संसार में हर जगह षड्यंत्र है। लोग छोटे-छोटे लाभ के लिए मानवीय जीवन को कष्ट में डाल रहे हैं। बड़ी-बड़ी फार्मा कम्पनियाँ भारत को बाजार के रूप में देख रही हैं। भारत की बड़ी आबादी कब मधुमेह, रक्तचाप, हृदयरोग से ग्रसित होगी सब इसकी प्रतिक्षा में हैं। किसी को इस बात की चिंता नहीं है कि हमारे पारिवारिक जन कब रोगमुक्त होंगे। ड्रग माफिया गिद्ध की तरह निगाह गड़ाए बैठे हैं कि कब आप रोगों की गिरफ्त में आएँ और वे कब आपके मुँह में अपनी दवा डालें। यदि आप रोगमुक्त हो गए तो उनका व्यापार समाप्त हो जाएगा। हमारे दु:ख, पीड़ा व रोगों पर उनका आर्थिक साम्राज्य खड़ा है। हमें उनका साम्राज्य ध्वस्त करना है। यह योग व आयुर्वेद से ही संभव है। प्रतिदिन योग व आयुर्वेद को अपने जीवन में समाहित कर रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है।
पतंजलि ने आयुर्वेद के सामर्थ्य को जागृत किया
आयुर्वेद सदैव से सामर्थ्यवान रहा है किन्तु एक लम्बे कालखण्ड में यह सुसुप्तावस्था में रहा। पहले आयुर्वेद में आँवले का प्रयोग केवल त्रिफला, च्यवनप्राश, आमलकी रसायन, मुरब्बे व अचार में ही होता था। आँवला कैण्डी, आँवला रस के प्रयोग की परम्परा सर्वप्रथम पतंजलि ने ही प्रारंभ की। वर्ष 2004-05 में एलोवेरा जूस 1300 रुपए लीटर बिकता था। किसानों से 5-7 रुपए किलो एलोवेरा की पत्तियाँ खरीदकर उसका रस 1300 रुपए लीटर बेचकर कम्पनियाँ मोटा पैसा बना रही थी। तब सर्वप्रथम पतंजलि ने 150 रुपए प्रति लीटर एलोवेरा जूस उपलब्ध कराया। दूसरी कम्पनियों को मजबूरी में दाम घटाना पड़ा और वे 1300 से 250 रुपए पर आ गए और बढ़ती महंगाई में लागत मूल्य के हिसाब से हम वर्तमान में एलोवेरा जूस 200 रुपए प्रति लीटर पर उपलब्ध कराते हैं। हमको यह कहते हुए प्रसन्नता कि आज देश में सैकड़ों फार्मेसियाँ पहले की तुलना में कम दाम पर एलोवेरा जूस उपलब्ध कराती हैं जिससे हमारे किसान भाई समृद्ध हो रहे हैं। आँवले की भी यही कहानी है। पतंजलि वह संस्थान है जहाँ से आयुर्वेद के सामर्थ्य को जागृत करने का बड़ा कार्य किया गया है।
अनेकविध रूप से श्रद्धेय स्वामी जी के आशीर्वाद से अनुसंधान, लेखन, डॉक्यूमेंटेशन, रोगियों को रोगमुक्त बनाने आदि हर रूप में आयुर्वेद को सर्वांगीण रूप से, सर्वविध रूप में सर्वव्यापी, विश्वव्यापी बनाने का कार्य पतंजलि से चल रहा है।
पतंजलि बनेगा इंटिग्रेटेड मेडिसिन सिस्टम का सबसे बड़ा केन्द्र
पतंजलि योगपीठ परिसर स्थित हॉस्पिटल अब इंटिग्रेटेड मेडिसिन सिस्टम का सबसे बड़ा केन्द्र बनने जा रहा है। यहाँ अब रेडियोलॉजी, पैथोलॉजी से लेकर सभी इमरजेंसी सुविधाओं की व्यवस्था उपलब्ध रहेगी क्योंकि हमने यदि यह सब नहीं किया तो आयुर्वेद के अभियान को कुचल दिया जाएगा।
आयुर्वेद को कुचलने का षड्यंत्र
आज बड़े-बड़े हॉस्पिटलों में आयुर्वेद का एक डिविजन अलग से खोला जा रहा है। यह देखकर आयुर्वेद प्रेमियों को प्रसन्नता होती होगी कि आयुर्वेद विस्तार ले रहा है, पर सावधान हो जाओ! यह आयुर्वेद नहीं बढ़ रहा है अपितु जिस तरह से आयुर्वेद की आभा और ऊर्जा लोगों के दिलोदिमाग पर छा गई है, यह उसको रोकने का अभियान है, आयुर्वेद को कुचलने का अभियान है। एक कोने में छोटे से कमरे में आयुर्वेद को रखकर ९९ प्रतिशत में एलोपैथ को श्रेष्ठ बनाने का षड्यंत्र है। ९९ प्रतिशत एलोपैथ को बेचकर यह कह दें कि यहाँ आपका आयुर्वेद भी तो है, आयुर्वेदिक गोली से आपका रोग ठीक नहीं होगा इसलिए आप यहाँ एलोपैथ में आ जाओ। इनको केवल अपनी दुकान चलानी है। आयुर्वेद को बढ़ाने और आपको निरोगी बनाने से इनको कोई मतलब नहीं है। आज अगर हम यह नहीं समझ पाए तो बहुत विलम्ब हो जाएगा।
पतंजलि निरंतर आयुर्वेद को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए कठोर पुरुषार्थ कर रहा है। आयुर्वेद की इस उपेक्षा को, आयुर्वेद की बदनामी को यदि कोई रोक सकता है तो निर्विवाद रूप से पतंजलि ही एकमात्र संस्थान है।
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