महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित योग न केवल भारत में अपितु आज यह दुनिया भर के लगभग 180 देशों में सरकारी मंजूरी के साथ किया जाता है। 5 हजार वर्ष पहले ही हमारे दूरदर्शी ऋषि-वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि, आधनिक युग में मानव के जीवन शैली में आमूल परिवर्तन के साथ शारीरिक और माननिक रोगों का कैसा परिवर्तन होगा और उनका परिवर्तित उपचार भी कैसा होगा। आधुनिक युग में स्वामी रामदेव जी की कृपा से आज बहुत से लोग रोगों से मुक्त होकर सफल जीवन जीने में सक्षम हैं।
उपनिषद के युग में योग का मूल उद्देश्य योग के माध्यम से आत्मा को परमात्मा से जोडक़र मोक्ष प्राप्त करने का साधन था।
यम, नियम, आसन, प्राणायाम के बाद, प्रत्याहार के चरण तक पहुंचना एवं धारणा, ध्यान के स्तर को पार करके, समाधि तक चढऩा होता है।
यह सच है कि आधुनिक समय में योग का प्रचलन व्यापक हो गया है, लेकिन यह योगाभ्यास आध्यात्मिकता से रहित एक साधारण शारीरिक व्यायाम बनकर रह गया है। गीता में कहा गया है, ‘योग भवति दु:खहा’। स्वामी जी के शब्दों में ‘योग शरीर के साथ-साथ मन और इन्द्रियों को नियंत्रित करने का एक सरल तरीका है।’
प्राणायाम के अभ्यास से व्यक्ति अशांत मन की बेचैनी को दूर कर अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। शारीरिक विकार के अनुसार ही योगाभ्यास करना चाहिए। इसका वर्णन नीचे किया गया है। सूक्ष्म व्यायाम का अर्थ है शरीर और मन का नियंत्रित संचालन। स्थूल या कठिन योगाभ्यास - शारीरिक क्षमता के अनुसार ही करना चाहिए।
हाथों और पैरों की उंगलियों से शुरू करके धीरे-धीरे शरीर के ऊपरी हिस्से तक जाएं। प्रत्येक अंग में नियमित एवं नियंत्रित रक्त संचार होने से रक्त संचार बढ़ता है। मांसपेशियों, स्नायुबंधन और टेंडन के संकुचन और विस्तार के दौरान मस्तिष्क में सेरोटोनिन नामक रसायनिक पदार्थ निकलता है। यह पदार्थ हैप्पी हार्मोन के समूह में से एक है। इससे मस्तिष्क से लेकर पूरे शरीर की प्रत्येक कोशिका ऊर्जावान हो जाती है।
जीवन के आरंभ में मानव शरीर में 270 हड्डियाँ होती हैं, जो उम्र के साथ-साथ जुडक़र वयस्क शरीर में घटकर 206 में रह जाती हैं। रीढ़ की हडिड् का अर्थ है सिर से लेकर शरीर के मध्य भाग से होकर अंत तक 80 हड्डियाँ होती हैं। मानव शरीर में हाथ और पैरों की हड्डियाँ 126 होती हैं। कुल मिलाकर 206 हड्डियाँ शरीर में होती हैं। मानव शरीर 360 जोड़ों और 600 मांसपेशियों से बना है। जोड़ों का दैनिक संचालन बहुत महत्वपूर्ण होता है। पहले धीमी, फिर मध्यम और अंत में तेज गति से प्रत्येक जोड़ का व्यायाम प्रतिदिन करना चाहिए।
प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक आसन का अभ्यास तीन से पांच बार करना चाहिए। इतनी सारी योगाभ्यास दिनभर करने पर भी पूरे नहीं हो पाते हैं। इसलिए रोग के अनुसार कुछ लाभकारी योगाभ्यास करना रोज चाहिए।
सुबह ब्रह्ममुहूर्त में खाली पेट में पांच बजे से छह बजे तक योग के लिए सबसे अच्छा समय है। फिर एक घंटे तक स्थिर मस्तिष्क में प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।
साफ कपड़े पहनकर, साफ हवादार जगह पर कंबल या फोम के मैट को फर्श पर बिछा कर पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर, सात्विक योग का अभ्यास करने से वांछित फल मिलता है।
परम पूज्य स्वामी रामदेवजी महाराज का कहना है कि यह केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है; इसमें आध्यात्मिकता भी शामिल है।
आसन के साथ मुख्य प्राणायाम जैसे- भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम-विलोम, उज्जायी और भ्रामरी भी शामिल हैं।
उद्गीत के साथ प्रणव मंत्र उच्चारण करके अंत में ॐ कार ध्वनि निकालना चहिए।
गर्मियों में शीतली या शीतकारी प्राणायाम, रक्त-पित्त या उच्च रक्तचाप के लिए चंद्रभेदी और गठिया के लिए सूर्यवेदी प्राणायाम विशेष लाभकारी होते हैं। विशेष रूप शहर-वासियों के लिए अच्छा होगा यदि वे अपनी छत पर या हरी घास से ढके पार्क के खुले मैदान में घी का दीपक और सुगंधित धूप के धूंए से आस-पड़ोस की प्रदूषित हवा को शुद्ध करके योगाभ्यास शुरु करें।
2021 मे किए गये ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5’के अनुसार भारत में 40 प्रतिशत महिलाओं और 12 प्रतिशत पुरुषों के शरीर के मध्य भाग में अर्थात् पेट में चर्बी जमा होती है। बी.एम.आई. द्वारा माप के अनुसार 23 प्रतिशत महिलाएं और 22 प्रतिशत पुरुष अधिक वजन वाले होते हैं, इसलिए उन्हे यौगिक, जॉगिंग, रनिंग, साईकिलिंग और स्विमिंग आदि के साथ निम्नलिखित व्यायाम करने की विशेष आवश्यकता है। सूर्य नमस्कार, त्रिकोणासन, पश्चिमोत्तासन, शाल्वासन, पादवर्तासन, मुर्कटासन के साथ ‘चक्की-आसन’विशेष लाभकारी हैं। प्राणायाम में भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम-विलोम, उज्जायी और भ्रामरी को रोजाना करना चाहिए।
थायराइड के मरीजों को सर्वांगासन, मत्सासन, सिंहासन और हलासन करना चाहिए। कंधे और गर्दन की एक्सरसाइज से भी फायदा मिलता है। जिन लोगों के पीठ या रीढ़ की हड्डी की समस्या है, उन्हें मकरासन, कोटि-उतोनासन या एकपाद-उतेनासन, भुजंगासन, सेतुबंधासन और मर्कटासन करने से विशेष फल मिलेगा। आसन के बाद उपरोक्त प्राणायाम करने से आपको अधिक लाभ मिलेगा।
विद्यार्थियों के लिए मानसिक संतुलन ठीक रखने के लिए और स्मृति शक्ति बढ़ाने के लिए सूर्य नमस्कार, शीर्षासन, सर्वांगासन, हलासन, चक्रासन भी विशेष लाभकारी होते हैं। साथ ही प्राणायाम, गायत्री मंत्र का जप और ध्यान करने से मनोसंगयोग और स्मृति बढ़ती हैं। स्वामी जी ने कहा कि स्वस्थ व्यक्ति को भी स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन एक से डेढ़ घंटे निम्रलिखित आसन अवश्य करना चाहिए।
यौगिक-जॉगिंग, सूर्यनमस्कार, दंड-बैठक के साथ कम से कम 5/6 योगासन दैनिक करना चाहिए और प्रति आसन 10 मिनट करके अभ्यास करना आवश्यक होता है, साथ ही प्रतिदिन प्राणायाम, गायत्री मंत्र जप और ध्यान का अभ्यास विशेष लाभकारी होता हैं।
स्वामी जी के अनुसार अगर ध्यान के साथ योग और प्राणायाम किया जाये, तो 900-100 प्रतिशत मामलों में बीमारी खत्म हो जात है। रोग जितना पुराना और गंभीर हो, उतने ही अधिक प्राणायाम और योगासन से मनवांछित फल मिलते हैं। यदि रोग का अभ्यास पूरी एकाग्रता, उचित समय और निरंतरता के साथ किया जायें तो ही व्यक्तित्व की पूर्ण अभिव्यक्ति सामने आती है और दिव्य परिवर्तन संभव होता है। स्वामी जी ने कहा है कि यौगिक आसन और प्राणायाम अंतर्निहित लक्षणाों के उपचार के साथ-साथ के विभिन्न हिस्सों की रोग-विरोधी क्षमता को भी बढ़ाते हैं हालांकि आसन करते समय कुछ प्रतिबंधों को पालन भी करना पड़ता है। उदाहरण के लिए उच्च रक्तचाप के रोगी को कभी भी शीर्षासन या सर्वांगासन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे ब्रेन हेमरेज और रेटिनल डिटेचमेंट का विशेष खतरा रहता है। जिन लोगों को हर्निया है उन्हें ऐसे आसन करने की अनुमति नहीं है जो पेट पर दबाव डालते हैं जैसे- उष्ट्रासन, पश्चिमोत्तानासन और चक्रासन।
इसके साथ ही बुजुर्ग महिलाओं को उन योगासन को लेकर सावधान रहना चाहिए जिन आसन से पीठ को मोढऩा पड़ता है। रीढ़ की हड्डी क्योंकि चटक या टूट भी सकती है, इसलिए रीढ़ की हड्डी का एक्स-रे कराकर ऑस्टियोपोरोसिस का डर दूर करने के बाद ही आसन करने की सलाह दी जाती है। स्वामी जी ने कहा है कि अगर नियमित प्राणायाम, आसन, उचित आयुर्वेदिक हर्बल चिकित्सा, यज्ञ, ध्यान और आध्यात्मिक जीवनशैली का अभ्यास किया जायें तो न केवल जीवनशैली संबंधी बीमारियां बल्कि थैलेसीमिया जैसी वंशानुगत बीमारियां और रिउमाटऐड आर्थराइटिस जैसी कठिन ऑटोइम्यून बीमारियां भी ठीक हो सकती हैं।
स्वामी जी ध्यान पर विशेष महत्व देते है। ‘योग: चित्तवृत्तिनिरोध:, तदा दृष्टुहस्वरूप पोखमम्’। ध्यान के लिए आत्म-संयम या इंद्रियों पर संयम की आश्यकता होती है। ध्यान की प्रक्रिया तब तक पूरी नहीं होती जब तक कोई स्वयं को शाश्वत शुद्ध, बुद्ध, मुक्त सच्चिदानंद स्वरूप में नहीं पहुंचाता। अर्थात् जब तक कोई स्वयं को सर्वोच्च स्थान में अधीस्थित परमेश्वर का हिस्सा नहीं मानता है तब तब ध्यान और योगाभ्यास जारी रखना चाहिए। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है ‘ममैवंश जीवलोके जीवभूत सनातन’। हम सब भगवान के संतान है। योग द्वारा शरीर और मन को नियंत्रित करने के बाद ही परमात्मा के साथ मिलन संभव होती है।
इसलिए केवल वे लोग ही योग प्रक्रिया को आसानी से पूरा कर सकते हैं, जिनका स्वास्थ्य अच्छा है। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी श्रद्धानंद और आधुनिक युग में योगऋषि स्वामी रामदेव जी ‘योग और स्वास्थ्य’ समीकरण के ज्वलंत उदाहरण हैं।