सेहत और ताकत का राज : मोटा अनाज
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वंदना बरनवाल
राज्य प्रभारी-महिला पतंजलि योग समिति, उ.प्र.(मध्य)
सर्दी की आहट के बीच दिन में मौसम थोड़ा गर्म तो रात में हल्की ठण्ड महसूस होने लगी है। वैसे तो नियमित योगाभ्यास करने वालों के लिए क्या सर्दी और क्या गर्मी। पर ऐसे लोग जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली थोड़ी कमजोर है, उनके लिए ऋतु परिवर्तन के समय स्वास्थ्य संबंधी सावधानी जरूरी हो जाती है। सावधानी के तौर पर योग का तो कोई विकल्प ही नहीं है किन्तु इसके साथ ही जरूरत है कि हम अपने भोजन और खान-पान को लेकर थोड़ी सजगता दिखाएँ और अपने नाश्ते की प्लेट और खाने की थाली को ऋतु के अनुकूल कर लें।
शरीर को गर्म रखता है मोटा अनाज
शरीर की कार्यप्रणाली ऐसी है कि यह ठंड में भी शरीर को गर्म बनाए रखती है लेकिन इसके लिए शरीर थोड़ा ज्यादा भोजन की मांग करता है, यानि इस मौसम में भूख अधिक लगती है। इससे कई लोगों में वजन बढऩे का खतरा बढ़ जाता है। अक्सर देखा गया है कि सर्दियों में लोग मिर्च-मसालों से युक्त तले-भुने गरिष्ठ भोजन का सेवन बढ़ा लेते हैं और पानी का सेवन कम कर देते हैं जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं। अत: क्यों नहीं सर्दियों में हम अपना खान-पान कुछ ऐसा रखें जिससे पूरी सर्दी शरीर को गर्माहट और पोषण दोनों ही मिलते रहें। इसके लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय है अपने आहार में मोटे अनाज को शामिल कर लिया जाये।
क्या है मोटा अनाज?
मोटा अनाज यानि प्राकृतिक रूप से पोषक तत्वों का भंडार। मोटे अनाज को अंग्रेजी में मिलेट्स कहा जाता है। बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जिंक आदि से भरपूर इन अनाजों को अब लोग सुपरफूड भी कहने लग गए हैं। मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी अर्थात मडुआ, मक्का, जौ, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी, कुट्टू आदि शामिल हैं। ये ऐसे अनाज हैं जिनकी पैदावार कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी हो जाती है। धान और गेहूं की तुलना में इनके उत्पादन में पानी की खपत भी बहुत कम होती है और इसकी खेती में रासायनिक उर्वरकों की जरूरत भी नहीं पड़ती। इसीलिए एक ओर जहाँ ये पर्यावरण के लिए बेहतर होते हैं तो दूसरी ओर इनके सेवन से कई तरह के रोग अपने आप ही ठीक हो जाते हैं। इसलिए जिस प्रकार से योग के लाभ को जानने के पश्चात इसको वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में हमने अपनाया उसी प्रकार मोटे अनाज के लाभ को जानने के बाद आप इसको वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में उपयोग में लाने लगेंगे। भारत के इतिहास में तो मोटा अनाज हमेशा से ही अस्तित्व में रहा है लेकिन हरित क्रांति के योजनाकारों द्वारा अनदेखी और शहरीकरण के बदलते दौर ने इनकी उपलब्धता और इस्तेमाल को सीमित कर दिया। परम पूज्य स्वामी जी महाराज और श्रद्धेय आचार्यश्री हमेशा से ही स्वस्थ शरीर के लिए योग, आयुर्वेद संग खानपान में मोटे अनाज को शामिल किये जाने को जरूरी बताते रहे हैं और पतंजलि के माध्यम से इनको विभिन्न रूपों में आम लोगों के लिए उपलब्ध भी करवा चुके हैं।