‘अल्ज़ाइमर (Alzheimer)’ में लाभकारी हैं

मेमोरीग्रिट, मेधावटी व मेधा क्वाथ

‘अल्ज़ाइमर (Alzheimer)’ में लाभकारी हैं

डॉ. अनुराग वार्ष्णेय

उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान

   अल्ज़ाइमर (Alzheimer) बड़ा गम्भीर रोग है जिसमें लोगों को भूलने की आदत हो जाती है। इस रोग में हम बात करेंगे अल्ज़ाइमर रोग के क्या कारण हैं और मेमोरीग्रिट, मेधावटी मेधा क्वाथ इस रोग पर कैसे काम करते हैं। हम यह भी बताएँगे कि हम इसका वेलीडेशन मेधावटी के साथ कैसे कर सकते हैं। हमारे ब्रेन (मस्तिष्क) में 86 मिलियन सेल्स होते हैं। हमारा मस्तिष्क बहुत छोटा होता है और इसका वजन लगभग 1.5 किलोग्राम होता है, फिर भी इसमें इतने मिलियन सेल्स हैं। ये सब आपस में केनेक्टिड रहते हैं।
    ब्रेन (मस्तिष्क) के जितने भी सेल्स हैं जिनको हम न्यूरोन्स कहते हैं, वे आपस में एक दूसरे से संपर्क करते हैं। अलग-अलग तरह के प्रोसेस एक-एक सेल्स से निकलते हैं। सेल्स के एक दूसरे से हाथ मिलाकर चलने की प्रक्रिया को हम साइनैप्स कहते हैं। हमारे ब्रेन में जितने साइनैप्स होते हैं, बे्रन उतना ही मजबूत होता है। ठीक वैसे ही जिस तरह हमारे समाज में जितना लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं समाज उतना ही संगठित मजबूत होता है। वैसे ही संगठित होने की क्षमता हमारे ब्रेन (मस्तिष्क) में होती है। एक रेत की ढ़ांग में लगभग लाख न्यूरोन्स होते हैं। कुल लाख न्यूरोन्स के लगभग मिलियन साइनैप्स बनते हैं मतलब 1 अरब साइनैप्स 1 लाख सेल्स बनाकर रखता है और उनकी जो कनेक्टीविटी तय करती है कि हमारा ब्रेन (मस्तिष्क) कैसे काम रहा है। हमारी याददाश्त कितनी है? हम कितनी चीजों को याद कर पा रहे हैं। हमारा ब्रेन (मस्तिष्क) कैसे निर्णय ले पाता है? ये सब कुछ इन चीजों पर ही निर्भर रहता है। इन सेल्स का कार्य इनफॉरमेशन (सूचना) एक जगह से दूसरी जगह भेजना है। हमारी आवाज की गति कितनी है? हम बोलते हैं तो दूसरे व्यक्ति तक वह आज कितनी देर में पहुँच जायेगी? हम आपको बताते हैं कि हमारी आवाज की गति लगभग 330 किलोमीटर/ घ्ंाटा है। ठीक इसी तरह हमारे ब्रेन (मस्तिष्क) में संकेतों के पहुँचने की गति लगभग 430 किलोमीटर/घंटा है जिससे हमारे मस्तिष्क में संकेत दौड़ते हैं।
मस्तिष्क इसी तरह से काम करता है कि उसके द्वारा प्रेषित सूचनाएँ शरीर के अलग-अलग हिस्सों तक पहुँचे। मस्तिष्क के कुछ विशेष भाग हैं जिनके अलग-अलग कार्य हैं। इसमें सबसे जरुरी भाग है हिपोकैम्पस। यह मस्तिष्क के बीच में काजू के आकार का होता है जिसमें सभी मेमोरी सेन्टर रहते हैं।

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जैसे-जैसे अल्ज़ाइमर बीमारी बढ़ती है, मेमोरी कम हो जाती है। याददाश्त भी कम हो जाती है। उस दौरान जो मस्तिष्क के कार्य बाधित हो जाते हैं। हिपोकैम्पस का आकार उम्र के साथ-साथ बदलता रहता है, वो सिकुडऩा शुरू हो जाता है, जिसके कारण थोड़ी परेशानी आनी शुरू हो जाती है। बात अपने देश भारत की करें तो हम देखते हैं कि 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में लगभग 7-8 प्रतिशत याददाश्त की परेशानियां जाती हैं। Dementia के अधिकांशत: रोगी शहरों के मुकाबले गांवों में अधिक पाये जाते हैं। इसी तरह अल्ज़ाइमर के रोगी भी गांव में ज्यादा देखने को मिलते हैं। अधिकांशत: जो ज्यादा उम्र के लोग होते हैं उनमें भूलने की समस्या अधिक पायी जाती है। भूलने की या याददाश्त कम होने की समस्या मुख्यत: कुछ कारणों से हो सकती है जिनमें बढ़ती उम्र का होना, Head injuries, Cardiovascular diseases, Life style, Genetic factors, Infection, Environmental factors, Age and Gender, Obesity, Diabetes इत्यादि अन्य कारण भी शामिल हैं। अल्ज़ाइमर को समझने से पहले हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि अल्ज़ाइमर के लक्षण क्या हैं? सबसे पहले मेमोरी कम होना, वक्त और जगह को लेकर संदेह होना, सामाजिक एक्टिविटीज से अलग हो जाना, छोटे से काम को करने में परेशानी आना, सामान रखकर भूल जाना, इमेज या फोटो को लेकर पहचानने में परेशानी होना, सही निर्णय लेने में कमी का होना आदि। इसके साथ-साथ कुछ अन्य नई चीजें भी सामने आने लगती हैं जिनमें से बहुत ज्यादा खुशी, बहुत ज्यादा गुस्सा या बहुत ज्यादा डिप्रेशन- ये सब कारण अल्ज़ाइमर बीमारी को दर्शाते हैं। वास्तव में अल्ज़ाइमर एक वैज्ञानिक का नाम है जिन्होंने इस सिस्टम पर शोध किया था, उन्होंने सबको इक्ट्ठा करके रखा जो अल्ज़ाइमर बीमारी के नाम प्रचलित हुआ।
इस बीमारी में हमारे पास जो दिव्य औषधियाँ हैं उनमें दिव्य मेधा क्वाथ, दिव्य मेधा वटी, मेमोरीग्रिट काफी कारगर सिद्ध हुई हैं। इसमें हम जानेंगे कि कैसे दिव्य मेधावटी बीमारी को काबू करने में सहायक होती है? मस्तिष्क में जो न्यूरॉन संचार (Neuronal communication) और उसके जो बड़े-बड़े प्रोसेस हैं जिनको हम न्यूराइट वृद्धि (Neurite Outgrowth) कहते हैं। इन न्यूराइट वृद्धि की जितनी भी लम्बाई होती है या ये जितनी बड़ी होती है उसे उतना ही मजबूत माना जाता है। अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इस स्थिति में कुछ ऐसे रसायन प्रयोग में लाये जाएँ जिससे इन न्यूराइट्स की लम्बाई कम हो सके। वह एक अच्छा Diseases model तैयार हो जाता है। यह काम भी हमने अपनी लैब में किये और न्यूरॉन को लेकर न्यूराइट को हमने प्ले-आउट किया और देखा कि कुछ ऐसे कम्पाउंड्स हैं जिनसे न्यूराइट्स की लम्बाई बदली जा सकती है, इनको हम Scopolamine कहते हैं। इन कपाउंड्स के प्रयोग से ब्रेन फंक्शन का मॉडल तैयार हो जाता है।
सेल्स की जिन न्यूराईट को हमने Compromise किया है यदि हम उनमें दिव्य मेधा वटी का प्रयोग करते हैं तो इनकी न्यूराइट वापस उसी लम्बाई में आने लगती हैं, ये एक बड़ी बात होती है। शोध में हमने पाया कि जो सेल्स कम हो गये थे वो भी डोज के आधार पर वापस अपनी अवस्था में आने लगते हैं। सेल्स की लम्बाई भी डोज के आधार पर बढऩी शुरू हो जाती है। इसमें से कुछ न्यूरान के सेल्स जो कम्पाउंड की वजह से मरने लग गये थे वो भी वापस आने लगते हैं। इसमें संक्रमित सेल्स पर हमने दिव्य मेधा वटी का प्रयोग किया तो वो भी वापस सही होने लगे थे।
सेल्स के ऊपर ट्रायल के बाद हम फिर एनिमल ट्रायल पर गये। इसका ट्रायल हमने चूहों पर किया। जिस कम्पाउंड की वजह से न्यूरॉन की हेल्थ खराब हुई थी, वो चूहों पर भी वैसा ही प्रभाव डालता है। यह कम्पाउंड चूहों को देने के बाद हमने दो बड़े-बड़े फंक्शन देखे। पहला जिसको हम बोलते है मोरिस वाटर मेज (Morris water maze) इसमें हम एक बड़ा सा कुण्ड जैसा लेते हैं जिसको हम इसका बीच का बिन्दू लेकर चार हिस्सों में बांट देते हैं। फिर इसमें हम एक चूहे को छोड़ते हैं। उसके बाद हम देखते हैं कि वो इसमें कैसे तैरता है? और इसके बीच में एक छोटा सा प्लेटफार्म होता है, जहां चूहे को जाकर रूकना होता है। क्योंकि वह तैरते-तैरते थक जाता है। उस प्लेटफार्म पर उसका खाना रखा होता है। हम देखते हैं कि उस खाने को खोजने में कितना समय लगता है। अब जहाँ चूहे तैर रहे हैं, उस जगह हम दूध का पाउडर मिला देते हैं। जिससे कारण से वह पूरा पानी पारदर्शी नहीं रहता। चूहों को ये नहीं पता चलता कि वह प्लेटफार्म कहाँ पर है। वह देख नहीं सकता, वह केवल अपनी मेमोरी के हिसाब से चलता है। ये मेमोरी फंग्शन हम टेस्ट कर लेते हैं और जब हम इन चूहों को Scopolamine देते हैं, तो उनका मस्तिष्क भ्रमित (Confuse) हो जाता है। उनकी याददाश्त कम हो जाती है तो उनको अधिक समय लगता है। इसके विपरीत दूसरे मोरिस वाटर मेज (Morris water maze) में हम दूसरे चूहे को दिव्य मेधा वटी देते हैं। हम देखतें हैं कि जिस चूहे को हमने Scopolamine दिया था, उसको अपना लक्ष्य ढूढऩे में काफी समय लगता है और यदि हम उस चूहे को दिव्य मेधा वटी देते हैं तो वह अपने लक्ष्य को जल्दी ढूढ़ लेता है।
इससे हमनें जाना कि यदि कोई व्यक्ति अल्जा़इमर की बीमारी से जूझ रहा है, याददाश्त एवं भूलने की बीमारी से ग्रसित है, तो उसको भी हम दिव्य मेधा वटी की सहायता से ठीक कर सकते हैं। इसमें हम देखते हैं कि अलग-अलग डोज पर दिव्य मेधा वटी का क्या फायदा है और वह किस प्रकार से, कितने समय में देखने को मिलता है। हमारे ये परीक्षण लगभग २८ दिनों की डोज पर निर्भर थे, इसके साथ ही हमने लगभग महीने चूहों को दवाई खिलायी थी जिसके सही परिणाम देखने को मिले। इसमें २८वें दिन में जो रिकवरी थी। वह भी काफी अच्छी थी, उसमें हमें लगा कि ये सब नार्मल हो गया है। इसके साथ-साथ ही हमने एक अलग तरह का मॉडल तैयार किया। जिसमें हमने देखा कि चूहों को अकेले में बैठने की आदत नहीं होती है। उसकी आदत छुपकर बैठने की होती है। इसमें हमने एक ऐसा बॉक्स बनाया जिसके दो हिस्से खुले ओर दो हिस्से बंद थे। तो उस में हम चूहों को छोड़ते हैं, जो नार्मल होते हैं। इसमें जो नार्मल चूहे होते हैं वो जल्दी ही अपने खाने को ढूंढ़ लेते हैं। इसके विपरीत जो चूहे रोगग्रस्त हैं उनको लगता है मैं कहाँ जाऊँ? ना तो वह खाने की तरफ जाता है और ही वह छुपने की तरफ जाता है और वह कहीं पर भी जाकर खड़ा हो जाता है। लेकिन जब हम उसे दिव्य मेधा वटी की डोज देते हैं तो वह बहुत ही कम समय में ठीक होकर अपने टारगेट के पास चला जाता है, उसको Achieve कर लेता है। ये ही हमारा एक लक्ष्य था कि हम दिव्य मेधा वटी के उपयोग से कितना सही कर सकते हैं, तो हमने अपना लक्ष्य पूरा किया जिसमें हमने पाया कि दिव्य मेधा वटी, मेधा क्वाथ एवं मेमोरीग्रिट को औषध रूप में उपयोग करने से मस्तिष्क के Disorder को ठीक किया जा सकता है।
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