इसरो ने बढ़ाया देश का मान, वैज्ञानिकों की सफलता पर देश को गर्व

चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर चन्द्रयान-३ की सफल लैंडिंग चन्द्रमा पर लहराया तिरंगा

इसरो ने बढ़ाया देश का मान, वैज्ञानिकों की सफलता पर देश को गर्व

भाई राकेशभारतसह-सम्पादक

एवं मुख्य केन्द्रीय प्रभारी- भारत स्वाभिमान

  चंद्रयान मिशन-3 के पूरा होने पर पूरे देश को इसरो पर गर्व है, चाँद पर तिरंगा गाडऩे का गर्व है, दक्षिण ध्रुव जिस पर आज तक कोई नहीं पहुंच पाया था, उसके प्रथम विजेता होने का गर्व है, हम भी दुनिया के किसी भी फिल्ड में प्रथम हस्ताक्षर कर सकते हैं, प्रथम विजेता हो सकते हैं, जहाँ कोई नहीं पहुंचा वहाँ पहुंच सकते हैं। भारत ने चंद्रमा के साउथ पोल पर तिरंगा गाड़ दिया है। विक्रम का यह पराक्रम पूरे विश्व ने देखा। भारत के वैज्ञानिकों की मेधाशक्ति का लोहा पूरी दुनियां मान चुकी है, चंद्रयान की सफलता का भारत के विश्व की महाशक्ति बनने में बहुत बड़ा कदम है। आज का दिन भारत के करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा, शौर्य और स्वाभिमान का दिवस है।
आज सभी देशवासियों के लिए  संकल्प का दिन है, आइये संकल्प लें कि हम कृषि से लेकर, शिक्षा, स्वास्थ्य, अनुसंधान आदि के क्षेत्रों में अपने हिस्से की जिम्मेदारी अखंड प्रचंड पुरुषार्थ के साथ निभाएंगे।
इस अभियान की कीमत केवल 600 करोड़ नहीं, बल्कि भारत के वैज्ञानिकों की मेधा-प्रज्ञा अमूल्य है, इस सफलता का मूल्यांकन लाखों करोड़ों में है। संपूर्ण वैज्ञानिकों की टीम का पतंजलि योगपीठ परिवार की ओर से हार्दिक अभिनंदन।

देश की वैज्ञानिक विरासत

जैसे 15 अगस्त और 26 जनवरी को हम देश की आजादी की विरासत के बारे में, देशभक्ति के बारे में बात करते हैं, राजनैतिक विरासत के बारे में बात करते हैं तो सबको समझ में आता है जैसे हम रामनवमी और जन्माष्टमी को देश की सांस्कृतिक सनातन विरासत की बात करते हैं तो सबको उस पर श्रद्धा होती है। आज हम देश की जो वैज्ञानिक विरासत, जो अपने पूर्वजों की मेधा है, जो हमें योग, आयुर्वेद, वेदों के रूप में जिसको हम योग धर्म, वेद धर्म, ऋषि धर्म के रूप में कहते रहते हैं उसको समझने का आज अवसर मिलेगा।

दुनिया में जो कोई कर सका, वो भारत ने करके दिखा दिया

लाखों किलोमीटर की यात्रा तय करके जब चंद्रयान इस धरती और चाँद के कई चक्कर काट कर, कई बार उसकी परिक्रमा करके जब उसकी सतह पर उतरा, तो सारे मिथक टूट गए और जो दुनिया में कोई ना कर सका वो भारत ने करके दिखा दिया। सारी सम्भावनाओं के विपरीत जो भारत को जो करना था वो करके दिखा दिया। चाँद पर पहुंचने के साथ-साथ धरती पर कैसे जीना है, यह भी पूरी दुनिया को भारत से ही सीखना पड़ेगा।

योग-आयुर्वेद प्रकृति की ओर लौटो

हम कहते हैं योग-आयुर्वेद प्रकृति की ओर लौटो। और मेडिकल इंडस्ट्री क्या कहती हैं? फार्मा कम्पनी के केमिकल खाओ, ड्रग्स खाओ, सिनथेटिक दवाएं खाओ और जहर खाकर मरो। दवा केनाम पर कितना बड़ा, पूरा का पूरा झूठ का कारोबार खड़ा कर दिया।
मोबाईल, ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री ने मनुष्य के श्रम, पशुधन, परम्परागत खेती, इंडस्ट्री आदि सबका सत्यानाश कर दिया। इनकी योजनाएँ खतरनाक हैं। इन्होंने सारे परम्परागत खेल खत्म कर दिए। कोई पूछे कि अब क्या करें तो बोले Pub-G खेलो। कंप्यूटर गेम्स ने गेम्स का सत्यानाश कर दिया। अब जिम्स ने हेल्थ का सत्यानाश कर दिया। पूरी मेडिकल इंडस्ट्री ने मेडिकल के साथ-साथ स्वास्थ्य का भी शीर्षासन करा दिया। मॉडर्न मेडिकल साइंस कहता है कि आप डी-जनरेट हुए सेल्स को रीजुविनेट नहीं कर सकते। जबकि  हमनें जिन्स को मोडीफाइड करके जेनेटिक बीमारियों को भी ठीक किया है।
चन्द्रयान मिशन में लगभग 615 करोड़ रूपये लगे। पूज्य स्वामी जी महाराज के अनुसार 615 करोड़ रूपये तो उसके कल-पुर्जे, लोहा-लक्कड़ खरीदने में लगे हैं। भारत की जो मेधा है, प्रतिभा है, उसकी कीमत लाखों करोड़ रुपये हैं। आप उसका मूल्यांकन नहीं कर सकते।
परम पूज्य स्वामी जी महाराज परम श्रद्धेय आचार्य जी महाराज ने ट्रस्टीशिप के सिद्धांत को, प्रोसपेरिटी फॉर चेरिटी को जिया है। इसरो ने जितने पैसों में चंद्रयान बनाया उतने पैसे से 3,000 से ज्यादा रिसर्च प्रोटोकॉल पूरे करके 500 से ज्यादा रिसर्च पेपर वल्र्ड रीनाउंड टॉप इम्पेक्ट के रिसर्च जनरल में छापने का काम पतंजलि ने किया है। इन फकीरों की जोड़ी ने ही दुनिया को जीने की राह बताई, जो WHO से लेकर पूरा मेडिकल सिस्टम नहीं कर सका वो पतंजलि ने करके दिखाया।

परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज, परम श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज और पतंजलि सैकड़ों नोबल पुरस्कार और भारत रत्न के हकदार

आज लगभग सभी लोग जंक फूड खा रहे हैं। मनुष्य का शरीर शाकाहार के लिए बना है, लेकिन अब तो दुनिया वीगन की ओर आगे बढ़ रही है। आहार चिकित्सा अन्य चिकित्साओं की तरह अत्यंत महत्वपूर्ण है। पतंजलि वैलनेस में आहार चिकित्सा पर बड़ा कार्य किया जा रहा है जिसका लाभ साध्य-असाध्य रोगों से ग्रसित मानवता को मिल रहा है।
एक बार जिंदगी में योगग्राम, निरामयम्, पतंजलि वैलनेस आकर देखो जिसने योगग्राम, निरामयम्, पतंजलि वैलनेस नहीं देखा वो स्वास्थ्य के सत्य को जान हीं नहीं सकता। पूज्य स्वामी जी और श्रद्धेय आचार्य जी  आश्वस्त हैं कि जल्द ही पूरा मेडिकल साइंस एक हो जाएगा। जैसे आज हम न्यू इण्डिया की बात करते हैं वैसे हीन्यू मेडिकल साइंसयानया चिकित्सा विज्ञानंकी प्रतिस्थापना का काम होगा। इस कार्य में अहम भूमिका के लिए परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज, परम श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज और पतंजलि कम से कम 100 नोबल पुरस्कार और भारत रत्न के हकदार हैं।

पतंजलि के स्वदेशी उत्पाद अपनाएँ

योग, यज्ञ, आयुर्वेद का यह होलेस्टिक ट्रीटमेंट, इंटीग्रेटेड ट्रीटमेंट कैसे एक साथ आपके 37 ट्रिलियनस सैल्स पर काम करता है। यूरोप ब्रिटेन के पास तो लूट का पैसा बहुत हैं, मिडलिस्ट वालों के पास में तेल का पैसा है, आप लोगों ने सहयोग दिया उसके लिए आपका अभिनन्दन। आप लोग ज्यादा कर सको तो केवल इतना ही करें कि पतंजलि आपके लिए जो प्रोडक्ट्स उपलब्ध करा रहा है, उन प्रोडक्ट्स का प्रयोग करो और जो समर्थ हैं वो मेंबर भी बनते हैं।
वेदों से आए हैं साइंस के सिद्धान्त : इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ
उज्जैन, मध्य प्रेदश में महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के चतुर्थ दीक्षांत समारोह में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एवं रॉकेट वैज्ञाानिक डॉ. श्रीधर पी. सोमनाथ ने सारस्वत अतिथि के रूप में उपस्थित होकर दीक्षांत भाषण दिया। उन्होंने कहा कि साइंस के सिद्धान्तों की उत्पत्ति वेदों से हुई है। उनकी मानें तो अलजेब्रा से लेकर एविएशन तक, सब कुछ पहले वेदों में ही पाया गया था। बाद में अरब देशों के जरिए ये सारा ज्ञान यूरोप तक पहुँचा जिसे बाद में वहाँ के वैज्ञानिकों की खोजों के रूप में पेश किया गया। एस सोमनाथ के मुताबिक अलजेब्रा, स्क्वार रूट्स, समय का परा कॉन्सेप्टस, आर्किटेक्टर, यूनिवर्स का स्ट्रक्चर जैसी कई चीजों सबसे पहले वेदों में पाई गई थी।

संस्कृत का इस्तेमाल करते थे वैज्ञानिक

एस. सोमनाथ के अनुसार एक समस्या ये भी थी कि भारतीय वैज्ञानिक जिस संस्कृत भाषा का इस्तेमाल करते थे, इसकी कोई लिखित लिपि नहीं थी, इसे सुना गया और याद कर लिया गया। बाद में लोगों ने संस्कृत के लिए देवनागरी लिपि का इस्तेमाल करना शुरू किया।
डॉ. सोमनाथ के अनुसार संस्कृत अनुसंधान की दृष्टि से एक वैज्ञानिक भाषा के  रूप में जानी जा रही है। गूगल भी संस्कृत भाषा के महत्व को आज विज्ञान के क्षेत्र में स्पष्ट करता है। अंतरिक्ष अनुसंधान एवं ज्योतिष के ग्रंथों के संबंध को स्पष्ट करते हुए भारतीय ज्योतिष के मूल ग्रंथों में सूर्य सिद्धांत, ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, ग्रहलाघव की चर्चा करते हुए डॉ. सोमनाथ ने कहा कि इन सभी में अंतरिक्ष अनुसंधान का आधार रहस्य छिपा हुआ है। ग्रहों को जानने एवं दूरी स्पष्टता आदि को जानने में यह मूल स्रोत के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। संस्कृत मात्र एक भाषा नहीं, बल्कि पूर्णतया विज्ञान है। संस्कृत ने जो सूत्र दिए हैं उनका हजारों वर्षों बाद भी अध्ययन किया जा रहा है।

कम्प्यूटर की भाषा के अनुकूल है संस्कृत

अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष एस. सोमनाथ के अनुसार इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को संस्कृत बहुत पंसद है। वह कम्प्यूटर की भाषा के के अनुकूल है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सीखने वाले इसे सीखते हैं। गणना के लिए संस्कृत का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है, इस पर भी शोध किया जा रहा है। सोमनाथ ने संस्कृत के कुछ अन्य लाभ भी बताए।

महाकाल के नाम से अंतरिक्ष में होगा सैटेलाईट

उज्जैन आगमन पर इसरो के अध्यक्ष डॉ. सोमनाथ ने भगवान महाकाल के दर्शन कर पूजन किया। वैदिक मंत्रों से पूजन पं. रमण गुरु एवं दिलीप गुरु ने करवाया। इस अवसर पर तिरुवनंतपुरम के मां पूर्णामिका के मंदिर में अपै्रल में आयोजित प्रपंच महायज्ञ पर सोमनाथ द्वारा महाकाल के नाम से अंतरिक्ष में सैटैलाईट होने की घोषणा का स्मरण करवाया। डॉ. सोमनाथ ने कहा कि जल्द ही श्री महाकाल के नाम से अंतरिक्ष में सैटैलाईट स्थापित होगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष डॉ. श्रीधर पी. सोमनाथ ने कालिदास अकादमी के 450 से अधिक विद्यार्थियों और युवा वैज्ञानिकों के साथ संवाद किया। संवाद के साथ ही उन्होंने मंच से ही विद्यार्थियों के सवालों के जवाब भी दिए।
एक विद्यार्थी ने उनसे पूछा कि नासा एक साल में जितना खर्च करता है, इसरो उतने ही बजट में 40 साल तक कैसे करता है। इसके जवाब में डॉ. सोमनाथ ने कहा- इसरो में नई रिसर्च पर लगातार काम हो रहा है। विदेशों में कई बड़े बिजनेसमैन स्पेस एजेंसी में अरबों रूपये इन्वेस्टमेंट करते हैं, इनमें एलन मस्क सहित कई बड़े नाम शामिल हैं। इंडिया मे भी ऐसे बिजनेसमैन बनें, जो स्पेस के क्षेत्र में निवेश कर सकें। डॉ. सोमनाथ ने बड़े बिजनेसमैन और कम्पनियों से आग्रह किया कि वे स्पेस के क्षेत्र में निवेश के लिए आगे आएँ। डॉ. सोमनाथ ने कहा कि भारत की समृद्ध ज्ञान परम्परा को हमें और अधिक विकसित करना चाहिए। हमारे ग्रंथ जलाए गए ताकि वह ज्ञान परम्परा आगामी पीढिय़ों तक पहुँच पाए। हमें अपनी अगली पीढ़ी तक इस ज्ञान परम्परा को आगे ले जाने का प्रयास करना चाहिए।

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