गुरुकुलीय शिक्षा का विराट् स्वरूप
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साध्वी देवप्रिया
कुलानुशासिका एवं संकायाध्यक्षा,
पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार, उत्तराखंड, भारत
स्व-केन्द्रित विकास की अंधी मानसिकता से मानवता के सभी आदर्श तार-तार होते जा रहे हैं। नीतिगत निर्णय लेने से पूर्व हमें प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति व उनके द्वारा प्रतिस्थापित मानवीय मूल्यों के प्रति गंभीरता से पुनरावलोकन करने की बहुत आवश्यकता है। इसके लिए आधुनिक शिक्षा केंद्र्रों में ऐसे आचार्यों के नियोजन की नितान्त आवश्यकता है जो अपनी प्रज्ञा का उपयोग करते हुए शिष्यों के अन्दर बुद्धिमत्ता, भावनात्मकता, सच्चरित्रता तथा पुरुषार्थ के उदात्त गुणों के साथ-साथ आध्यात्मिकता के पवित्र बोध को अंकुरित कर उसके सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त कर सके। |