देश के जननायकों की दृष्टि में पतंजलि के संन्यास दीक्षा महोत्सव का महत्व
On
श्री अमित शाह
केन्द्रीय गृह मंत्री
श्री अमित शाह
केंद्रीय गृह मंत्री
मुझे सदैव पतंजलि आकर नई ऊर्जा, नई चेतना, नई आशा मिलती है। यहाँ से आज मैं मन में शांति व संतोष लेकर जा रहा हूँ कि पतंजलि परिवार आने वाले दिनों में कई क्षेत्रों में देश का पुनरोद्धार करेगा। योग, आयुर्वेद और स्वदेशी के क्षेत्र में स्वामी जी ने विगत 25 साल में अभूतपूर्व योगदान दिया है। कोई इंस्टिट्यूशन कोई संस्था जो योगदान न कर पाया, वह अकेले बाबा जी ने अपने साथियों के साथ किया है। योग आयुर्वेद और स्वदेशी के आंदोलन के साथ-साथ स्वामी जी ने अब शिक्षा पर भी ध्यान दिया है जिसका मुझे बहुत आनंद है। भारतीय शिक्षा बोर्ड, पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, पतंजलि विश्वविद्यालय तथा पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज के माध्यम से मूल भारतीय परम्परा से हमारे चीर पुरातन ज्ञान को नई ऊर्जा मिलने जा रही है। जल्द ही स्वामी जी का 1 लाख विद्यार्थियों वाली पतंजलि ग्लोबल यूनिवर्सिटी तथा पतंजलि ग्लोबल गुरुकुलम् का सपना पूरा होगा।
स्वामी रामदेव जी को देखता हूँ तो इनमें आयुर्वेद और योग को पुनर्स्थापना करने वाला एक योगी, मल्टी नेशनल कम्पनी के खिलाफ लड़ने वाला स्वदेशी का पुरोधा, विदेशों में योग का एम्बेस्डर, कालेधन के खिलाफ संघर्ष करने वाला एक संन्यासी तथा शिक्षा का सम्पूर्ण स्वदेशीकरण करने वाला एक संकल्पवान शिक्षाविद दिखता है। इनमें वैदिक शिक्षा को पुन: जीवित करने का भगीरथ कार्य किया है। आचार्य जी को देखकर आश्चर्यचकित हूँ कि वो कैसे कम्प्यूटर की तरह आयुर्वेद के रहस्य समझा रहे थे। आयुर्वेद में 500 से अधिक रिसर्च पेपर्स पब्लिश करना बहुत बड़ी बात है, इसके लिए उनका अभिनन्दन। आचार्य जी के नेतृत्व में पतंजलि संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित मृदा परीक्षण मशीन 'धरती का डॉक्टरÓ का अवलोकन किया जिसके द्वारा सभी 12 तरह के मापदण्ड (पैरामीटर) बहुत कम खर्च में किए जा सकते हैं, यह एक अद्भुत मशीन है।
पूज्य मोहन भागवत
सर संघ चालक
लोग कहते हैं, सनातन आ रहा है, यह सनातन कहाँ से आ रहा है? और गया कब था। सनातन पहले भी था, आज भी है और कल भी रहेगा, इसीलिए वह सनातन है। उस सनातन की तरफ अब हमारा ध्यान जा रहा है और उसके अनेक लक्षण हैं जो प्रकट हो रहे हैं। कोरोना के बाद वातावरण अपने आप बदला, लोगों को काढ़े का महत्व समझ में आ गया। नियती ने भी एक ऐसा मोड़ दिया, प्रकृति ने भी एक ऐसी करवट बदली है कि हर किसी को सनातन के प्रति सजग होना पड़ेगा, सनातन के तरफ उन्मुख होना पड़ेगा। और उसी का एक महत्वपूर्ण क्षण यह है कि जो मैं यहाँ देख रहा हूँ। सर्वसंग परित्याग करते हुए देश,धर्म, समाज मानवता की सेवा के लिए मेरा जीवन है ऐसी कल्पना करने वाले एक जगह इतनी बड़ी संख्या में लोग भगवा पहने बैठे हैं। भगवा केवल एक रंग नहीं है। हम जानते हैं प्रकाश के आगमन का रंग भगवा है सुबह-सुबह आकाश में वही दिखता है। सूर्योदय होते ही नींद छोड़कर लोग काम में लग जाते हैं आप कितने भी आलसी हो, सोने वाले हो तो भी देन के प्रकाश में आप सो नहीं सकते। आपको कुछ अंधेरा करना ही पड़ता है।
सबसे बड़ा त्याग इन नवसंयासियों के माता-पिता का है जिन्होंने अपने बच्चे को पाल-पोसकर देश, धर्म, संस्कृति और मानवता के लिए समर्पित कर दिया है। मैं पहले भी यहाँ आया हूँ लेकिन तब परिस्थितियाँ ऐसी नहीं थी। आज से कुछ वर्ष पहले का वातावरण ऐसा नहीं था, मन में चिंता होती थी। किन्तु अब स्थितियाँ बदल चुकी हैं। यहाँ युवा संन्यासियों को देखकर सारी चिंताओं को विराम मिल गया है। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में संन्यासियों को देश सेवा में समर्पित करना रामराज्य की स्थापना, ऋषि परम्परा तथा भावी आध्यात्मिक भारत के स्वप्न को साकार करने जैसा है।
स्वामी अवधेशानंद जी महाराज
जूना पीठाधीश्वर, आचार्य महामण्डलेश्वर
पतंजलि योगपीठ की यह ज्ञानधर्म धरा, ऋषिग्राम के इस सारस्वत परिसर में जहाँ वेद भगवान प्रतिष्ठित, जागृत, जीवंत, प्रखर, मुखर और सर्वत्र आह्लद के रूप में अनुभव किए जा सकते हैं ऐसे इस दिव्य, अनुपम, उद्दात भगवदीय परिवेश में जागृत पुरुष, जागरण के देवता के रूप में योगऋषि स्वामी रामदेव जी तथा अलौकिक, अनुपम, अद्भुत, उद्दात विभूति, चरक, सुश्रुत, पाणिणि और पतंजलि जिनमें नित्य चैतन्य हैं ऐसे इस विश्व के अत्यंत अलौकिक महापुरुष आचार्य बालकृष्ण जी महाराज की प्रेरणा से पतंजलि में दिव्य कार्य हो रहा है। वैदिक काल को अब हम साकार होते देख रहे हैं। यह हमारी भारत की पूर्व की अपूर्वता यहाँ चैतन्य है। सम्यक कामनाओं का न्यास ही संन्यास है। हमारी भारत की पूर्व की अपूर्णता यहाँ चैतन्य है। यद्यपि परमात्मा सर्वत्र सभी में हैं तथापि भगवान् की रचना में मनुष्य की कोटि उत्तम है। एक ही रूप सभी मनुष्यों में समान रूप से मनुष्यों के समूह में भी ब्रह्मचर्य को श्रेष्ठ स्थान व उनसे भी महनीय वानप्रस्थ को लेकिन अत्यंत आदरणीय, सदैव वंदनीय, उत्तम कोटि यदि है तो वह संन्यास है। उन्होंने भावी संन्यासियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि अब आपकी परमहंस दीक्षा होनी है जिसमें आपको अपनी सभी एषणाओं से मुक्त होना है।
स्वामी गोविंद देव गिरि जी महाराज
कोषाध्यक्ष- श्री राम मंदिर न्यास
वैदिक परम्परा में सर्वोच्चतम पुष्प संन्यास है। संन्यास अपने भीतर से खिलना चाहिए और संन्यासी को ऐसा अनुभव करना चाहिए कि मैं भगवत स्वरूप सृष्टि की सेवा के लिए समर्पित हो रहा हूँ। साधु निर्भार, निर्द्वन्द्व रहकर श्रीमद्भगवद्गीता के दैवीय सम्पद को अपने आचरण में जीते हैं। ऐसा ही श्रेष्ठ जीवन पूज्य स्वामी रामदेव जी जी रहे हैं। उनकी संन्यास परम्परा में सैकड़ों दिव्य संन्यासी भाई व साध्वी बहनें राष्ट्र को समर्पित हो रहे हैं।
पतंजलि योगपीठ से शताधिक विद्वान व विदुषियाँ संन्यास की दीक्षा लेंगे तथा 15000 से ज्यादा युवाओं ने संन्यस्त होने की रुचि दिखाई जिनमें 500 प्रबुद्ध भाई-बहन आचार्य जी से ब्रह्मचर्य की दीक्षा लेंगे, यह रोमांचित करने वाला स्वर्णक्षण है। ये चमत्कार तो पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ही कर सकते हैं।
जल्द ही आप अपनी आँखों के सामने राम मंदिर का सपना पूरा होते देखेंगे। लगता है रामराज की स्वर्णिम शुरूआत हो चुकी है।
साध्वी ऋतम्भरा जी
संस्थापिका- वात्सल्य ग्राम
पतंजलि के द्वारा पूरे विश्व में सनातन की प्रतिष्ठा के लिए बड़ा कार्य हो रहा है। पूज्य स्वामी जी के नेतृत्व में संन्यासियों की जो शृंखला तैयार की जा रही है, यह पूरे विश्व में सनातन धर्म व भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करेंगे।
संन्यासी होने का अर्थ पूर्ण विवेकी तथा पूर्ण श्रद्धा से आप्लावित होना है। श्रद्धा की, भक्ति की, समर्पण की, कृतज्ञता की, दिव्यता की पराकाष्ठा ही संन्यास है। यहाँ १०० से अधिक विद्वान भाई व विदूषी बहनें अपना सर्वस्व राष्ट्रसेवा में समर्पित कर संन्यास मार्ग पर चलने के लिए तत्पर हैं।
यहाँ इतनी कम उम्र में संन्यासी बनने की प्रबल इच्छा के साथ संकल्पित युवाओं को देखकर मन प्रसन्न है। लगता है कि सनातन के ध्वजवाहक सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए पूरे विश्व में निकल चुके हैं। जल्द ही भारतीय परम्परा, सनातन व संन्यास परम्परा का गौरव पुन: पूरे विश्व में प्रतिष्ठित होगा।
साहेब शांति दा जी
अनुपम मिशन, गुजरात
संन्यास परम्परा में गुणातीत संन्यासी शीर्ष संन्यासी माना जाता है। स्वामी जी गुणातीत संन्यासी के अनुरूप सांसारिकता व भौतिकता से परे हैं। उन्होंने भावी संन्यासियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप ऐसे गुरु के सान्निध्य में दीक्षित हो रहे हैं जिनकी आज्ञा मात्र में रहने से ही हठ, इर्ष्या, अहंकार आदि दोष दूर हो जाते हैं और आप भीतर से संन्यासी हो जाते हैं।
स्वामी रामदेव जी तथा आचार्य बालकृष्ण जी के कुशल नेतृत्व में पतंजलि के माध्यम से स्वास्थ्य व शिक्षा का बहुत बड़ा आंदोलन चलाया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय शिक्षा बोर्ड, पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, पतंजलि विश्वविद्यालय तथा पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज के माध्यम से शिक्षा के स्वदेशीकरण का बड़ा कार्य किया जा रहा है। जनमानस को आरोग्यता प्रदान करने का कार्य भी पतंजलि के द्वारा किया जा रहा है। इनके साथ ही जैविक कृषि, सूचना तकनीकी तथा उद्योग में भी बड़ा कार्य किया जा रहा है। आने वाले समय में पतंजलि के संन्यासियों की भूमिका अहम रहेगी।
परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज
संस्थापक अध्यक्ष- पतंजलि योगपीठ
ऋषि ऋषिकाओं का वंश बढ़ाने के लिए, अपने ऋषियों के उत्तराधिकारी, प्रतिनिधि बनने के लिए, योगधर्म, वेद धर्म, सनातन धर्म, संन्यास धर्म को राष्ट्रधर्म, युगधर्म और विश्वधर्म के रूप में प्रतिष्ठापित करने के लिए लोग स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। स्वामी जी ने कहा कि पूरे विश्व में चारों ओर फैले ईष्या, द्वेष, भय, आतंकवाद, घृणा, धार्मिक उन्माद, रोगों के घात-प्रत्याघातों से बचने के लिए जब कोई मार्ग शेष नहीं बचेगा तो अंतत: योग, आयुर्वेद, अध्यात्म व पतंजलि की शरण में आना ही होगा।
संन्यास मर्यादा, वेद, गुरु व शास्त्र की मर्यादा में रहते हुए शताधिक नवसंन्यासी एक बहुत बड़े संकल्प के लिए प्रतिबद्ध हो रहे हैं। ब्रह्मचर्य से सीधे संन्यास में प्रवेश करना सबसे बड़ा वीरता का कार्य है। इन संन्यासियों के रूप में हम अपने ऋषियों के उत्तराधिकारियों को भारतीय संस्कृति तथा परम्परा के प्रचार-प्रसार हेतु समर्पित कर रहे हैं। संन्यासी होना जीवन का सबसे बड़ा गौरव है। अब ये युवा संन्यासी ऋषि परम्परा का निर्वहन करते हुए मातृभूमि, ईश्वरीय सत्ता, ऋषिसत्ता तथा अध्यात्मसत्ता में जीवन व्यतीत करेंगे। आज हमने नवसंयासियों की नारायणी सेना तैयार की है, जो पूरे विश्व में संन्यास धर्म, सनातन धर्म व युगधर्म की ध्वजवाहक होगी।
परम श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज
महामंत्री- पतंजलि योगपीठ
हमारा संन्यास या संस्कृति पलायनवादी नहीं है। संन्यासी अध्यात्म से जुड़कर ध्यान में आप्लावित हो शून्य जैसी चैतन्यपूर्ण स्थिति में प्रवेश पाते हैं, शून्य में उतरकर ही सृजन एवं समाधान होता है। विवेक की पराकाष्ठा ही वैराग्य है। संन्यासी व्यक्ति इस संसार में रहते हुए सभी कामनाओं से विरक्त होकर निर्लिप्त बने रहते हैं तथा ईश्वर भक्ति, गुरु भक्ति में लीन रहते हुए भौतिक सुख-सुविधाओं के प्रति उदासीन रहते हैं।
स्वामी रामदेव जी महाराज ने योग, आयुर्वेद को प्रतिष्ठापित करने के साथ-साथ एक आदर्श संन्यासी के स्वरूप को जन-जन तक पहुँचाया है। इससे लोगों की आस्था सनातन व संन्यास धर्म के प्रति बढ़ी है। उनका मानस वैराग्य, त्याग, हमारी ऋषि परम्परा, प्राचीन भारतीय मूल्यों व आदर्शों से जुड़ा है। संन्यास धर्म में कुछ पाने की इच्छा नहीं होती, यहाँ तो सर्वस्व त्यागकर आत्म बलिदान से राष्ट्र आराधना की भावना है। यदि आज भारत का युवा संन्यास मार्ग पर चलने को तैयार है तो देश के भावी भविष्य के लिए इससे शुभ कुछ नहीं हो सकता।
लेखक
Related Posts
Latest News
01 Oct 2024 17:59:47
ओ३म 1. सनातन की शक्ति - वेद धर्म, ऋषिधर्म, योग धर्म या यूं कहें कि सनातन धर्म के शाश्वत, वैज्ञानिक,...