सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) के वैज्ञानिक गुण

सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) के वैज्ञानिक गुण

डॉ. अनुराग वाष्र्णेय

उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान

भस्म से अभिप्राय किसी भी औषधीय गुणों वाले पदार्थ के केल्सिनेसन प्रक्रिया से प्राप्त उपयोगी तत्वों को प्राप्त करना होता है। आयुर्वेद के अतिरिक्त यूनानी चिकित्सा पद्धति में भी भस्म का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। किसी भी धातु या पदार्थ (जेम) से भस्म प्राप्त करने के लिए पहले उसकी राख तैयार की जाती है। सर्वप्रथम संबंधित जेम या धातु की अशुद्धियां दूर की जाती है। इसके उपरांत भस्म बनायी जाती है, जिसके कई चरण हो सकते है जैसे- शोधन, पाउडर बनाना, धवन, गलाना, हीटिंग आदि। मोटे तौर पर समझने के लिए है कि पहले किसी सामग्री को डिटॉक्सिफिड किया जाता है, जिसे शुद्धिकरण कहते हैं। इसके बाद इसे महीन पीसा जाता है और आखिर में इस महीन पिसे हुए दवा के चूर्ण को केवड़ा, गुलाब जल आदि में भिगोया जाता है अैर पुन: पीसा जाता है। किसी पदार्थ को किस के साथ खरल किया जाता है यह दवा और उसके बनाने के तरीके के ऊपर निर्भर करता है। पिष्टी को अंगूठे और अंगुली के बीच रगडक़र महसूस किया जाता है कि ये मोटा ना हो और महीन पाउडर हो। दवा के प्रकार के अनुसार भावना बदल जाती है। पिष्टी, भस्म की तुलना में सौम्य होती है।
  •  अभ्रक (MICA) पहाड़ों में पाया जाने वाला एक बहुपयोगी खनिज है जोकि कायांतरित चट्टानों मं खंडों (ब्लॉक्स) के रूप में पाया जाता है। ज्यादातर आग्नेय चट्टानों में अभ्रक ज्यादा पाया जाता है। इसमें आयरन, पोटेशियम, सोडियम और लिथियम जैसे क्षारीय पदार्थ भी मिले रहते हैं। मुख्यत: यह कोयले की खदानों में पाया जाता है तथा राजस्थान के जयपुर से उदयपुर तक पहाड़ों क्षेत्रों में पाया जाता है। आयुर्वेद में इसे महा रस माना गया है, (रस शास्त्र) भस्म  बनाने के लिए काले अभ्रक को श्रेष्ठ माना जाता है।
  •   रोग निदान के साथ हमें अभ्रक से पर्याप्त मात्रा में पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्सियम, अल्युमिनियम, सिलिका, सोडियम, फास्फोरस, टाइटेनियम और आयरन की प्राप्ति होती है।
  •  अभ्रक भस्म का उपयोग कई रोगों के निदान के लिए किया जाता है। अग्निमाद्य, कफ रोग, उदर रोग, कुष्ठ, कृमि रोग, हृदय की कमजोरी, मर्दाना कमजोरी, मस्तिष्क विकार, श्वास, रक्त, पित्त, यकृत रोग, मूत्रकच्छ, मूत्राघात, प्रमेह, पाण्डु आदि रोगों के निदान के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
  •  अभ्रक भस्म का उपयोग एकल और अन्य दवाओं के योग के साथ इस्तेमाल में लाया जाता है। अभ्रक निम्न रोगों में कारगर होती है या इसके निम्न लाभ होते हैं-
  •  अभ्रक भस्म की ठण्डी तासीर होने के कारण यह शरीर की दाह को शांत करती है और शरीर को ठण्डा रखती है। शरीर में बढ़ चुकी उष्णता को समाप्त करने में यह एक श्रेष्ठ दवा होती है।
  •   अभ्रक भस्म से हमारे शरीर में कैल्शियम और आयरन की कमी दूर होती हैं, इसके साथ ही कई मिनरल्स भी प्राप्त होते हैं। प्रचुर मात्रा में आयरन होने के कारण से इसके सेवन से पंडू रोग के इलाज में लाभ मिलता है।
  •   अभ्रक भस्म त्रिदोष को शांत और नियंत्रित करती है।
  •   नसों की कमजोरी और उदर रोगों में भी इसके परिणाम सकारात्मक प्राप्त होते हैं।
  •  पुरुषों की मर्दाना कमजोरी को दूर करता है और नसों को दुरुस्त करता है। शीघ्रपतन और नपुंसककता के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। यह शरीर में धातु बढ़ाने का कार्य करती है।
  •  शरीर मे नई स्फूर्ति का संचार करती है और कमजोरी को दूर करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
  •  यकृत एवं प्लीहा रोगों में भी इसका उपयोग लाभदायी होता है।
  •  अभ्रक भस्म अपने योगवाही गुणों के कारण अन्य दवाओं के साथ भी योगपूर्वक लेने से श्रेष्ठ लाभ मिलता है, इसके साथ मिले हुए पदार्थों का गुण बढ़ा देती है।
  •  मानसिक दुर्बलता को दूर करती है। माइग्रेन, पुराने सिरदर्द, चक्कर आना, मस्तिष्क रोगों के लिए उत्तम टॉनिक का कार्य करता है।
  •   पाचन तंत्र को मजबूत बनाती है। अन्य उदर रोगों मेें भी यह फायदेमंद होती है। इसके सेवन से भोजन में रुचि उत्पन्न होती है।
  •   क्षय, प्रमेह, बवासीर, पथरी, मूत्राघात इत्यादि रोगों में यह लाभदायक है।
  •   पुरानी खांसी, बलगम से पीडि़त व्यक्ति को अभ्रक भस्म के साथ पिपली चूर्ण दिया जाता है, जिससे बलगम की समस्या से मुक्ति मिलती है।
  •   इसके सेवन से शरीर के कृमि और अन्य संक्रमण को दूर किया जाता है।
  •  अस्थमा रोग के लिए यह श्रेष्ठ दवा है।
  •   बढ़ती उम्र के प्रभावों को कम करती है।
  •  यह भस्म शीतल, धातुवर्धक और त्रिदोष, विषविकार तथा कृमिदोष  को नष्ट करने वाला, देह को दृढ़ करने वाला तथा अपूर्व शक्तिदायक होता है।
  •  तंत्रिका तंत्र के विकारों में लाभदायी होता है।
  •  अभ्रक भस्म रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास करता है।

पतंजलि योगपीठ में भस्म पर रिसर्च -

अस्थमा (दमा) फेफड़ों की एक बीमारी है। जिसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा होने पर श्वास नलियों में सूजन आ जाती है, जिस कारण श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है।
लक्षणों के आधार पर अस्थमा के दो प्रकार होते है-

बाहरी अस्थमा -

बाहरी एलर्जिन के प्रति एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया हैं जो पांलेन जानवर के बाल, धूल जैसी बाहरी एलर्जिक चीजों के कारण होता है।

आन्तरिक अस्थमा -

कोई भी ऐसा केमिकल जिसकी पहुंच आपके लंग्स तक होती है जैसे- सिगरेट का धुंआ, बीड़ी का धुंआ, कुछ कैमिकल्स की तीव्र दुर्गंध जिसके कारण अस्थमा हो सकता है। हमारी जो श्वसन नली है उसका व्यास वक्त के साथ-साथ कम होता जाता है, जिस कारण सांस लेने में परेशानी होती है, सीना जकड़ जाता है, सांस फूलने लगती है। यह सभी अस्थमा के लक्षण ही है।
यदि हम भारत या पूरे विश्व को ध्यान में रखकर देखें कि यह अस्थमा किन लोगों को होता है? इसकी एलर्जी किस प्रकार की होती है? इसका अध्ययन करने के बाद पता चलता है कि भारत में 30% ऐसे लोग है जिनको अपने जीवन में कभी न कभी, किसी न किसी एलर्जी से गुजरना ही पड़ता है। जो यह 30% लोग होते है, जिन्हें कभी न कभी एलर्जी होती है। उनमें से 10% लोग अस्थमा के रोग से पीडि़त हो जाते है।
दुनियां के जितने भी अस्थमा से पीडि़त रोगी है, उनकी 10 से 11% की जनसंख्या भारत में निवास करती है। अध्ययन के उपरान्त यह पाया गया है कि यह बुजुर्ग व्यक्ति की बीमारी तो है ही, साथ ही ३त्न बच्चों में भी इस बीमारी की सक्रियता पाई जाती है। वैसे तो एलर्जी व अस्थमा में अन्तर है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि एलर्जी एवं शुरुवाती चरण है और यदि एलर्जी ज्यादा बढ़ जाती है तो आगे चलकर यह अस्थमा का रुप धारण कर लेती है। एलोपैथ में अस्थमा के उपचार के लिए डॉक्टर मरीज को इनहेलर देते है। इस इनहेलर में कोटिगो स्टेरॉयड होते हैं, जो सीधे फेफड़ों के अंदर डिलीवर किया जाता है। इस इनहेलर में 90% स्टेरॉइड डाला जाता है। इसका कार्य शरीर में अंदर जाकर वायु मार्ग को चौड़ाकर देना है। यदि रोगी लगातार इस इनहेलर का उपयोग करता है तो इसके साईड इफेक्ट आने शुरु हो जाते है। यह रोगी की आंखों को, उसके  दिल को, उसकी हड्डियों के लिए काफी खतरनाक हो सकता हैं।
जब इस  रोग को हम आयुर्वेद की नज़र से देखें तो हम इसमें सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) का उपयोग करते है। इसमें सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) का लंग्स पर इफेक्ट सबसे अच्छा पाया गया है। यह सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) ज्यादा नहीं मिलती है लेकिन पतंजलि ने रोगियों को ध्यान रखते हुए इसका उत्पाद करने का फैसला लिया है। जब पतंजलि के वैज्ञानिकों ने इस सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) पर अनुसंधान किया तो पाया कि यह नैनो पार्टिकल द्वारा बनी हुई भस्म हैं। इसका अनुमानित आकार 200 नैनो मीटर से कम है। जो भी आकार 200 नैनो मीटर से कम होते हैं वह नैनो पार्टिकल की श्रेणी में आ जाते है। यह नैनो आकृति की मेडिसिन है, इसलिए दूर तक जाती है, साथ ही इसका असर काफी समय तक रहता है। जब हमने इस सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) का वैज्ञानिक आधार पर लंग्स पर परीक्षण किया कि यह भस्म कैसे काम करती है? तब हमने LPS में वैज्ञानिकों द्वारा सूजन पैदा की गई और हमने तब सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) दी, तो उनके शरीर में क्या-क्या बदलाव आये। तब हमने पाया कि सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) ने दो बड़े-बड़े साईटो काइनड जिनका नाम TNF और IL-6 हैं। इन दोनों का प्रतिवाद दो स्वतंत्र तरीको से कम किया। यह सभी परीक्षण व्यक्ति के cells में किए तब देखा गया है। यहाँ हमने पाया कि सहस्त्र पुटी अन्य दवाईयों की अपेक्षा काफी उपयोगी है।

चूहों पर प्रभाव -

फिर हमने इस दवाई का परीक्षण जानवरों पर किया। उसमें Oval-bumin के साथ चूहों के अंदर हमने सबसे पहले अस्थमा पैदा किया जिसे 30 दिन तक जारी रखा फिर हमने देखा कि चूहों को Ovalbumin देते है तो अस्थमा के लक्षण शुरु हो जाते है। उसके बाद हमने इन्हे सहस्त्र पुटी से उपचार किया, जिसमें हमने 3 खुराक 3 गुन नीचे, 3 गुना ज्यादा इसमें स्टेरॉइड को भी साथ-साथ चलाया और पाया कि हम स्टेरॉइड की तुलना करे तो सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) कैसे अपना व्यवहार करती है, तो पाया कि हमारी सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) स्टेरॉइड से कई गुना प्रभावी पाई गई। जो स्टेरॉइड से बेहतर काम कर रही है। सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) स्टेरॉइड का विकल्प है। अस्थमा में सिनोफिलिया को हमारे रक्त में मापा जाता है। जब वैज्ञानिकों ने इस सिनोफिलिया को जानवरों पर मापा तो पाया कि जिस जानवर को अस्थमा हो गया था उसका यह लेवल बहुत बढ़ गया था। यह लेवल 0 से 80 गुना तक पहुँच गया था। सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) से उतारकर वापस 10 के लेवल पर ले आये। इस औषधि के उपयोग के बाद इसकी प्रतिक्रिया काफी संतोषजनक थी।
उसके बाद वैज्ञानिक परीक्षण के दौरान हमने इन जानवरों के लंग्स को बारीक काटा, इस लंग्स के अंदर सूजन थी। इन लंग्स में बलगम भरा हुआ था। चारों तरफ कोलेजन फाइबर के कारण लंग्स काफी सख्त हो गये थे। तब हमने यह परीक्षण किया कि जिन जानवरों को हमने सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) दी हुई थी, वह सभी जानवर रिकवरी करना शुरु कर चुके थे। यह रिकवरी केवल ऊतकों के लेवल पर नहीं थी अपितु लंग्स के सैल पर इसकी रिकवरी हुई थी। सहस्त्र पुटी ने इन जानवरों के अन्दर के सभी अंगों को लगभग सही कर दिया था।

कोई साइड इफैक्ट नहीं -

इस परीक्षण में हमने स्टेरॉइड भी साथ-साथ उपयोग किये हैं। इन दोनों के तुलनात्मक अध्ययन से प्राप्त होता है कि सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) के परिणाम काफी उच्च श्रेणी के थे, साथ ही इसके कोई साईड इफेक्ट भी नहीं थे। इसके बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि लीवर के अंदर, किडनी के अंदर, हार्ट के अंदर किसी भी प्रकार का विषेलापन नहीं था और न ही किसी प्रकार का कोई संचय पाया गया।
जब वैज्ञानिकों ने इस जानवरों के रक्त की जांच की, जिसमें सीलिका का लेवल देखा तो वो बिल्कुल कटौतीरहित था। शरीर ने ऐसी प्रक्रिया की जैसे कुछ था ही नहीं। औषधि ने अपना 100% कार्य किया।
जब वैज्ञानिकों ने आगे अध्ययन किया तो इसे आरएन लेवल पर इसे चैक किया तो इस औषधि ने जीत की अभिव्यक्ति को भी संशोधित किया था। प्रोटीन को संशोधित किया, सैल को संशोधित किया और सभी अंगों को संशोधित किया। यह काबिलियत है इस सहस्त्र पुटी (अभ्रक भस्म) की। इस पूरी प्रक्रिया को पतंजलि अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने Information Research में छपवाया भी। यह आयुर्वेद का पहला शोध कार्य था, जो इस जनरल में छपा भी और प्रसारित भी हुआ।
अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएँ-
httpswww.youtube.comwatchv=z8SDJyBF2rU  

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