हृदय रोगों में प्रामाणिक औषधी 'हृदयामृत वटी’ व योगेन्द्र रस
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डॉ. अनुराग वार्ष्णेय
उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान
हृदय की मुख्य परेशानियों में से एक है कार्डियक हाइपरट्रॉफी (Cardiac Hypertrophy)। हाइपरट्राफी का अर्थ है कार्डियक सैल्स या कार्डियोमायोसाइट्स (Cardiomyocytes) का आकार बढ़ जाना। ये कार्डियोमायोसाइट्स गिल्ली डण्डे की गिल्ली के आकार की संरचना में होते हैं। अगर इनका आकार बड़ा हो जाता है तो हृदय में सूजन हो जाती है, हृदय भारी हो जाता है। इससे हृदय की बाहरी दीवार मोटी हो जाती है जिसके फलस्वरूप खून का प्रवाह कम हो जाता है। इससे शारीरिक रूप से कई परेशानियाँ पैदा हो जाती हैं। भारत में लगभग २० लाख लोग कार्डियक हाइपरट्रॉफी से पीड़ित हैं और इसके जितने भी उपचार हैं, वे सब लाक्षणिक या सिम्प्टोमैटिक ही हैं, सैद्धान्तिक या सिस्टम पर काम करने वाला कोई भी उपचार एलोपैथ में नहीं है।
यह हाइपरट्रॉफी दो प्रकार से हो सकती है-
1. फिजियोलॉजिकल
2. ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस
फिजियोलॉजिकल हाइपरट्रॉफी
जैसे हम लम्बी एक्सरसाइज़ करें या बहुत देर तक योग करें, ट्रेडमेल पर दौड़ लगाएँ तो भी हाइपरट्रॉफी होती है जो की अच्छी वाली हाइपरट्राफी मानी जाती है। इसमें समझने वाली बात है कि यदि कार्डियो मायोसाइट्स गिल्ली-डण्डे में गिल्ली के आकार में लम्बाई में बढ़ रही हैं, चौड़ाई में नहीं बढ़ रही तो यह अच्छे वाली हाइपरट्राफी है। ये रिवर्सेबल होती है तथा हृदय को शक्ति प्रदान कर वापस आ जाती हैं। पर यदि वह गिल्ली मोटाई में बढ़े और गिल्ली बेलन बन जाए तब दिक्कत होती है।
उसकी वजह से एक पैथोफिजियोलॉजिकल हाइपरट्राफी हो जाती है और वह हाइपरट्राफी बहुत सी बीमारियों को जन्म देती है। इनमें एक Dyspenea है जिसमें साँस लेने में दिक्कत होती है। Angina Pectoris यानि सीने का दर्द शुरू हो जाता है। एक्सरसाइज़ नहीं कर पाते हैं, साँस फूलती है। Pulpitation होते हैं, चक्कर आ जाते हैं। इन सबका कारण पैथोफिजियोलॉजिकल हाइपरट्राफी है। इसमें हमने पतंजलि अनुसंधान संस्थान के माध्यम से अनुसंधान किया और प्रयास किया कि आयुर्वेद की कौन सी औषधि है जो इस बीमारी का उपचार कर सकती है। हमने ऐसी कुछ कोशिकाओं (Cells) पर कार्य प्रारंभ किया जो हमने हार्ट से आइसोलेट की थी। हमने चूहों की हृदय कोशिकाएँ (Heart Cells) लीं जिनको Rat Cardiac Myocytes कहते हैं। इसमें हमने एलोपैथिक दवा Isoproterenol का प्रयोग किया, यह बहुत समय पहले फेफड़ों में संक्रमण तथा अन्य बीमारियों में प्रयोग जाता था। उस दवा के ज्यादा प्रयोग से ये हाइपरट्राफी होती है जो स्थाई है। इस दवा का प्रयोग करके हमने चूहों की सैल्स में हाइपरट्राफी पैदा की और गिल्ली नूमा मायोसाइट्स को बेलन के आहार में बदल दिया। हमनें देखा कि कौन-कौन से ऐसे पैरामीटर्स हैं जो इन सैल्स को अलग तरीके से अलग (Differentiate) करते हैं। इनमें सबसे बड़ा पैरामीटर है- ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Oxidative Stress) जिनसे इनकी लम्बाई कम हो जाती है और मोटाई बढ़ जाती है। हमने जब इसको नापा और देखा कि इसमें हमारी कौन-कौन सी दवाएँ हैं जो अच्छा काम करती हैं तो हमारे पास सबसे अच्छा डॉटा हृदयामृत वटी का आया। ये औषधि हम पिछले ३० सालों से बना रहे हैं। ये एक यूनिक फॉर्मूलेशन है। इसमें हमने सभी पैरामीटर्स देखे। हमने देखा कि सैल्स कितनी मोटी हो रही हैं और उन सैल्स को हृदयामृत वटी ने डोज़ डिपेंटेंट ((Dose Dependant) तरीके से वापस नार्मल कर दिया। हमने पाया कि डोज़ जितनी ज्यादा थी, उतना ज्यादा प्रभाव पड़ा। इसे फार्मालॉजिकल इफैक्ट (Pharmalogical Effect) कहते हैं। उस फार्मालॉजिकल इफैक्ट के साथ हृदयामृत वटी ने दिखाया कि इन सेल्स की हाइपरट्राफी कम हो गई। जो सेल्स बीच में से सूज गई थी, वह सब ठीक हो गई।
ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस
इसके साथ हम बात करते हैं ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस की तो इसके अंदर बहुत सारे ऑक्सीडेटिव सुपर ऑक्साइड्स पैदा हो जाते हैं। उन सूपर ऑक्साइड्स का भी हमारी टीम ने बॉयो कैमिस्ट्री के अनुसार मापदण्ड किया और बताया कि ये जो सूपर ऑक्साइड्स जनरेशन है उसका काम भी हृदयामृत वटी ने डोज़ डिपेंटेंड तरीके से कम किया।
हृदय ही हमारा ऐसा ऑर्गन है जो हर समय काम करता रहता है। सोते-जागते, खेलते-कूदते, योग-प्राणायाम करते समय हर समय हृदय गति चलती रहती है। क्योंकि ये मसल्स हर वक्त काम करते रहते हैं इसलिए हमें हमेशा ऊर्जा की आवश्यकता रहती है। सेल्स के पॉवर हाऊस को माइट्रोकाण्ड्रिया कहते हैं। कार्डियोमायोसाइट्स के अंदर ३०% mass माइट्रोकाण्ड्रिया का होता है। माइट्रोकाण्ड्रिया ज्यादा होने के कारण इन सेल्स में माइट्रोकाण्ड्रिया का कन्संट्रेशन ज्यादा होता है।
हमने Isoproterenol प्रयोग से जो हाइपरट्राफी पैदा की तो माइट्रोकाण्ड्रिया के फंक्शन पर प्रभाव पड़ा और हमने लम्बे शोध से पाया कि माइट्रोकाण्ड्रिया भी इसकी वजह से खराब हो रहे थे और हृदयामृत वटी ने उन खराब हो रही माइट्रोकाण्ड्रिया फंक्शन को वापस सामान्य कर दिया था। उसी तरीके से जो हमने अलग पैरामीटर्स में देखा था, इससे हमने देखा कि इस दवा का जो मॉड ऑफ एक्शन है वह माइट्रोकाण्ड्रिया तथा ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के माध्यम से हो रहा है।
इस अनुसंधान को हमने Phytomedicine Plus में प्रकाशित किया। शोधार्थी वहाँ से इस शोध को पढ़कर लाभान्वित हो सकते हैं।
हमने अर्जुन क्वाथ का भी प्रयोग करके देखा था। हम रोगियों को अर्जुन क्वाथ तथा दालचीनी का पानी पिलाते हैं। अर्जुन की छाल या पानी पीने से हार्ट पूरा क्लीन हो जाता है और इससे कार्डियक हेल्थ के अलग-अलग पहलू (aspects) हैं, उन सबमें अर्जुन की छाल और अर्जुनारिष्ट बहुत प्रभावशाली औषधि हैं। हमने पाया कि हृदयामृत वटी का प्रयोग अर्जुन क्वाथ से बेहतर था क्योंकि इसमें और भी बहुत सारी औषधियों का सार (abstract) है।
अनुसंधान का एनिमल मॉडल
जब हम सेल्स पर सफल प्रयोग कर लेते हैं तो कुछ प्रयोग हमें जानवरों पर भी करके दिखाने होते हैं कि जानवरों में इनका कैसा प्रभाव आ रहा है। क्या हम इसका एनिमल मॉडल बना सकते हैं? इसके लिए हमने जैबराफिश (Zebrafish) का प्रयोग किया और जैबराफिश में कार्डियक हाइपरट्रॉफी पैदा की। इसमें एक अन्य एलोपैथिक दवा Erythromycin प्रयोग की। यह बहुत सामान्य एंटीबायोटिक है। इसके लम्बे समय तक प्रयोग से कार्डियक हाइपरट्रॉफी होती है। जानवरों में एक अच्छी बात यह है कि हम उनके कार्डियक फंक्शन नाप सकते हैं। हमने इन जैबराफिश की ई.सी.जी. की। इसके भी अच्छे परिणाम हमें प्राप्त हुए जैसे हम इंसानों को ट्रेडमेल पर दौड़ते हुए देखते हैं, वैसे ही चूहों का भी ट्रेडमेल होता है। इस बार हमने ट्रेडमेल एक्सपैरिमेंट मछलियों के साथ किया।
इसके लिए हमने एक ट्यूब में मछलियों को रखा और उसमें पानी की स्पीड बढ़ा दी, तो मछली को उस गति मेंटेन करने के लिए तेजी से तैरना पड़ा। इस तरह उनकी ट्रेडमेल वाली Phenotype पैदा हो गई तथा उनकी हृदय गति बढ़ने लगी। तब हमने एक अलग सैट-अप से उनका ई.सी.जी. किया। जब हमने Erythromycin दिया तो इनके कार्डियक फंक्शन्स परिवर्तित हो गए और EGG Phenotype भी परिवर्तित हो गई। फिर हमने इन्हें योगेन्द्र रस दिया जो स्वर्ण भस्म से बना हुआ है। यह हम हृदय रोगियों को देते रहे हैं। जब हमने इस भस्म को मछलियों को दिया तो पाया कि इनका कार्डियक फंक्शन सामान्य हो गया। भस्मों को लेकर कुछ भ्रान्तियाँ हैं कि इनके दुष्परिणाम (Side Effects) बहुत ज्यादा हैं तथा प्रभाव (Efficacy) कम हैं। इस भ्रान्ति को दूर करने के लिए हम अनुसंधान कर रहे हैं। इसका पहला शोध योगेन्द्र रस पर किया गया। इसके प्रयोग ने स्पष्ट दिखाया कि जो भी कार्डियक फंक्शन हैं, सामान्य हो गए थे। हृदय की सूजन भी कम हो गई। मछली के हृदय का जो आकार बढ़ गया था, वह भी सामान्य हो गया था।
ई.सी.जी. को कार्डियोलॉजिकली तथा फिजियोलॉजिकली महत्वपूर्ण पैरामीटर माना जाता है, वह भी योगेन्द्र रस से डोज़ डिपेंडेंट तरीके से सामान्य किया। इस प्रयोग में हमने नॉर्मल कंट्रोल ग्रुप रखा था जिसमें सामान्य स्वस्थ मछलियाँ भी थी, बीमार मछलियाँ भी थी। उनमें से कुछ पर हमने कार्डियक हाइपरट्राफी में प्रयोग की जाने वाली एलोपैथी की दवा verapamil तथा कुछ पर योगेन्द्र रस का प्रयोग किया। हमने पाया कि योगेन्द्र रस का प्रभाव verapamil ज्यादा अच्छा था।
चूहों पर रक्तचाप में किए गए एक अन्य प्रयोग में हमने पाया कि ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में भी हृदयामृत वटी लाभकारी औषधि है। हार्ट फंक्शन या किडनी फंक्शन के अनियमित होने से, पित्त बढ़ने से, मोटापा बढ़ने से, कोलेस्ट्रॉल बढ़ने से, स्ट्रेस बढ़ने, नींद न आने आदि से ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है। हम कारणकारी सिद्धांत पर काम करते हैं, सिस्टम पर काम करते हैं जबकि एलोपैथ लाक्षणिक चिकित्सा पद्धति है जो सिम्टम्स पर कार्य करती है।
इसमें मुख्य बिन्दु Chemical Characterisation कि इन औषधियों में कौन-कौन से फाइटोकैमिकल्स हैं और क्या वे प्रत्येक बैच में कांस्टेंट आ रहे हैं या नहीं, वैरिएंट्स हैं कि नहीं। क्योंकि Quarterly Manufacturing भी उतना ही जरूरी है जितना एक दवा की EfficacyÐ । हमने सभी दवाओं के २०-२५ बैच लिए और उनका क्लिनिकल वैलिडेशन किया और पाया कि किसी भी बैच में कोई वैरियंट्स नहीं हैं। दूसरे बैच के मुकाबले कम्पैरेटिव स्टडी की। हमने हृदयामृत वटी में आठ नए कम्पाउण्ड रिपोर्ट किए। उनका फुल क्लिनिकल वैलिडेशन किया और पाया कि इनका बैच-टू-बैच वैरिएंट्स बिल्कुल भी नहीं था। हमने इस पर सेफ्टी ट्रॉयल भी किया। यह प्रयोग भी हमने Zebrafish पर ही किया और मनुष्य की डोज़ के २८ गुणा डोज़ हम लेकर गए और वह भी एक महीने तक। इसका कोई भी दुष्परिणाम नहीं पाया गया।
आयुर्वेद में एलोपैथी से बेहतर परिणाम
पूज्य स्वामी जी ने वर्षों पहले बताया था कि एलोपैथी दवाओं के साइड इफैक्ट्स हैं तथा आयुर्वेद में एलोपैथी से बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। पूज्य स्वामी जी व पूज्य आचार्य जी का संकल्प है कि हम आयुर्वेद को एविडेंस बेस्ड मेडिसिन के तौर पर स्थापित कराएँगे। कुछ बीमारियों जैसे लीवर की बीमारियों में तो ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में कोई औषधि है ही नहीं, एलोपैथी के चिकित्सक भी आयुर्वेद की दवाएँ देते हैं। उनके पास कोई विकल्प ही नहीं है। लेकिन अभी भी कानून ये बना हुआ है कि एलोपैथी के चिकित्सक आयुर्वेकि दवा प्रेसक्राइब नहीं कर सकते। स्वामी जी का संकल्प है कि इस कानून को भी हम चैलेंज करेंगे और हिन्दुस्तान में बदलवायेंगे। एलोपैथ के जहर को मेडिसिन का दर्जा तथा आयुर्वेद के अमृत को मान्यता नहीं। हम या तो संसद में सरकार से इसका कानून पास करवाएँगे या सुप्रिम कोर्ट से आर्डर लेकर आएँगे। हम आयुर्वेद को राष्ट्र नहीं पूरे विश्व में एविडेंस बेस्ड मेडिसिन के रूप में प्रतिष्ठा दिलाएँगे। जो पैरामीटर्स एलोपैथ वाले फॉलो कर रहे हैं।
आयुर्वेद में रिसर्च एण्ड एविडेंस बेस्ड मेडिसिन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम पतंजलि ने किया। पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी तथा पतंजलि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम के अथक परिश्रम का ही यह परिणाम है। हम योग, यज्ञ, आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा को रिसर्च एण्ड एविडेंस के साथ आपको उपलब्ध कराते हैं।
योगेन्द्र रस का रिसर्च एण्ड एविडेंस विश्व के प्रसिद्ध जरनल्स में से एक Biomolecules Research General में प्रकाशित हुआ है। इस अत्यंत प्राचीन शास्त्रीय भस्म का इतना गहन अनुसंधान पत्र (Research Paper) आज तक प्रकाशित नहीं हुआ था।
आयुर्वेद पर यह अनुसंधान कार्य ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन पतंजलि एलोपैथ को आयुर्वेद से रिप्लेस कर एक नया विकल्प दे देगा।
पतंजलि की कार्डियोग्रिट, हृदयामृत, योगेन्द्र रस, संगेयाश्व पिष्टी, अकीक पिष्टी, अर्जुन छाल, अर्जुनारिष्ट आदि हृदय के लिए अत्यंत गुणकारी औषधियाँ हैं।
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