पतंजलि की 28 वर्षों की अनवरत साधना
निष्काम मानव सेवा व राष्ट्रवाद को समर्पित
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एलोपैथी साइंस ने सदैव आयुर्वेद को 'नीम-हकीम' का नाम दिया। हमेशा हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति का उपहास उड़ाया है। वह आयुर्वेद की दवाओं को चूरण कहकर सम्बोधित करते हैं। ऐसा सिर्फ इसलिए था क्योंकि आयुर्वेद दवाईयों पर कोई अनुसंधान नहीं होते थे, मगर आयुर्वेद पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान हेतु पतंजलि अनुसंधान संस्थान (पीआरआई) की स्थापना की गई। - आचार्य बालकृष्ण |
वैदिक परम्परा, ऋषि ज्ञान परम्परा, देव संस्कृति परम्पराएँ इत्यादि करीब 200 करोड़ वर्षों से यह परम्पराएँ अक्षुण रही हैं जिसे गौरव दिलवाने के लिए दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की गई। 5 जनवरी 1995 का वह दिव्य दिन था जब कनखल के कृपालु बाग आश्रम में इसकी विधिवत रूप से स्थापना की गई थी। जहाँ साधनों की अत्यन्त न्यूनता थी फिर भी पूज्य शंकर देव महाराज जी ने सवा एकड़ जमीन दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट को दान में दी। उस समय के सर्किल रेट के अनुसार इसका रजिस्ट्रेशन होना था इतने पैसे भी हमारे पास नहीं हुआ करते थे बाहर से उधार लेकर इस ट्रस्ट की स्थापना की ट्रस्ट तो रजिस्टर हो गया, परन्तु इस ट्रस्ट को चलाने के लिए पैसे कहाँ से आये बस यही सोच हर पल कठोर पुरुषार्थ करने के लिए प्रेरित करती रहती थी। चूंकि उस समय का जीवन हमारा पूर्णत: भिक्षावृत्ति पर आधारित होता था इसलिए कभी अर्थ का संचय करने की सोची नहीं थी। शहर में न कोई परिचित न कोई जान-पहचान वाला था। दूसरी तरफ जो आश्रम था उसमें किसी भी प्रकार की कोई शिष्य परम्परा भी नहीं थी। उस छोटे से आश्रम में लगभग 20 के करीब किराएदार रहते थे जोकि किराये के नाम पर 10-20 रुपये किराया दिया करते थे। कुल मिलाकर के 100-200 रुपये की स्थायी आमदनी हुआ करती थी और खर्चा 10-15 हजार रुपये मासिक का होता था क्योंकि आश्रम में 10-15 ब्रह्मचारी रह कर शिक्षा-दीक्षा ले रहे थे उनका खाना पीना इत्यादि सभी आश्रम की जिम्मेदारी थी उसी प्रकार 5-10 गौ-मातायें थी उनकी सेवा करना हमारा ही कर्तव्य था। इसी आश्रम में हमने औषधालय, यज्ञशाला, वेद्यशाला एवं योगशाला का निर्माण भी करवाया हुआ था यह सभी साधनो के अभाव में भी निरंतर चल रहे थे। पूज्य स्वामी जी महाराज के मार्गदर्शन व दिव्य नेतृत्व के कारण धीरे-धीरे लोग हमें पहचानने लगे।
पूज्य स्वामी जी महाराज ने योग को आधार बनाया -
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"योग चिकित्सा पद्धति साधना पद्धति एवं जीवन पद्धति से लेकर के विश्व के सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि व शन्ति का आधार बन रही थी। आज भी पूज्य स्वामी जी बार-बार कहते है कि मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना व संकल्प है कि देश व दुनिया का हर एक व्यक्ति भोर में उठकर सबसे पहले योग करे, उसके बाद कर्मयोग करे तो दुनिया की सभी समस्याओं का सहजता से समाधान किया जा सकता है।"
देश में समाज में कोई भी क्रान्ति एक दिन में नहीं आ जाती उसके लिये बहुत बड़े पुरुषार्थ की अपेक्षा होती है। पूज्य स्वामी जी ने सन् 1993 में कनखल में गंगा किनारे मात्र दो लोगों को योग साधना का प्रशिक्षण दिया था। धीरे-धीरे पूज्य स्वामी जी से योग सीखने वालों की संख्या बढऩे लगी। अब पूज्य स्वामी जी योग शिविर भी लगाने लगे थे। सबसे पहला योग शिविर पूज्य स्वामी जी ने गुजरात में श्री जीवराज भाई पटेल के आग्रह पर सूरत में लगाया था इस शिविर में सभी प्रकार का सहयोग श्री जीवराज भाई पटेल कर रहे थे सार्वजनिक तौर पर पहली बार 1993 में स्पोर्टस क्लब वराछा रोड़ सूरत में 9 दिन के योग साधना एवं योग चिकित्सा शिविरों का विधिवत् प्रारम्भ हुआ। 100-200 लोगों से शुरू हुआ योग यात्रा का यह सफर कब हजारों, लाखों में बदलता चला गया विश्व इतिहास में पहली बार गुफा एवं ग्रंथों से योग को बाहर निकाला गया आज योग को लाखों लोग मैदान में खड़े हो कर रहे थे। लोगों की जीवन पद्धति का हिस्सा बनता जा रहा था योग। धीरे-धीरे योग का व्यापक स्वरूप विश्व के सामने आ रहा था। योग चिकित्सा पद्धति साधना पद्धति एवं जीवन पद्धति से लेकर के विश्व के सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि व शन्ति का आधार बन रही थी। आज भी पूज्य स्वामी जी बार-बार कहते है कि मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना व संकल्प है कि देश व दुनिया का हर एक व्यक्ति भोर में उठकर सबसे पहले योग करे, उसके बाद कर्मयोग करे तो दुनिया की सभी समस्याओं का सहजता से समाधान किया जा सकता है।
पतंजलि योगपीठ की स्थापना सेवा का आधार -
एक वह समय भी आ गया जब हजारों लोग स्वास्थ्य लाभ की कामना के लिए हरिद्वार पहुँचने लगे और कनखल के आश्रम में स्थान कम पडऩे लगा, तो बहुत विचार-विमर्श के बाद हरिद्वार से पहले राष्ट्रीय राजमार्ग पर पतंजलि योगपीठ की स्थापना का संकल्प लिया गया। सन् 2000 की बात है जब योगपीठ का निर्माण प्रारंभ हुआ तब भी न्यूनतम संसाधनों से हमने योगपीठ का निर्माण कार्य करना प्रारंभ किया। आज हरिद्वार से लेकर मोदीनगर, दिल्ली, रांची, कोलकाता, गुवाहटी, ऋषिकेश, देवप्रयाग, काठमाण्डु, स्कॉटलैण्ड एवं हयूस्टन आदि स्थानों पर पतंजलि योगपीठ की बड़ी-बड़ी संस्थाएं अपनी सेवा दे रही है। सन् 2006 वह साल था जब पतंजलि योगपीठ का प्रथम चरण का कार्य सम्पन्न हुआ था और इसके बाद से इसका राष्ट्र व विश्वव्यापी सेवा विस्तार निरन्तर गतिमान हैं।
उद्योग को आधार बनाकर राष्ट्रधर्म की सेवा -
दिव्य योग मंदिर की स्थापना के साथ ही दिव्य फार्मेसी का भी पंजीकरण कराया गया। अत्यंत अल्प संसाधनों में भी साधना एवं साध्य हमारे सम्मुख सदा बना रहता था। जब हाथों से खरल में दवाओं को घोटना, इमामदस्ते में दवाओं को कूटना, फिर हाथों से कूटी हुई दवाओं की पुडिय़ा बनाना इन दवा युक्त पुडिय़ाओं को रोगियों को देना तथा उस समय जब हम च्यवनप्राश बनाते थे उसकी भी अपनी एक कहानी थी क्योंकि च्यवनप्राश बनाने के लिए हमारे पास इतना बड़ा पतीला नहीं हुआ करता था उस पतीले को हम किराये पर लाया करते थे तब भट्टी पर च्यवनप्राश को बनाया जाता था। धीरे-धीरे आयुर्वेदिक दवाओं की मांग बढऩे लगी और च्यवनप्राश भी बहुत बिकने लगा तब हमने चारों तरफ से उधार लेकर इंड्स्ट्रियल एरिया में ए-1 फिर पतंजलि फूड पार्क, दिव्य फार्मेसी का सर्वश्रेष्ठ औषध निर्माण एवं अनुसंधान का दिव्य प्रकल्प संचारित किया।
स्वदेशी को आधार बनाकर किया पतंजलि उत्पादों का निर्माण -
एक समय था जब बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कब्जा हमारी मानसिकता, संकल्प हमारे क्रिया-कलापों, आहार-विहार आदि सब में देखने को मिलता था। भारत में 5000 विदेशी कम्पनियां व्यापार कर रही है जो सुबह से शाम तक एक झूठ को 100 बार बोलती है फिर उस झूठ को सच साबित कर अपने उत्पादों को बेचती है इन उत्पादों को बेचने का सबसे बड़ा आधार विज्ञापन होते है इन विज्ञापन की चकाचौंध से प्रेरित होकर आम हिन्दुस्तानी स्वेच्छा से वह उत्पाद खरीद लेता हैं। पतंजलि एकमात्र वह नाम है जिसने स्वदेशी को आधार बनाकर इन विदेशी कम्पनियों की आर्थिक एवं सांस्कृतिक लूट व गुलामी से भारत को मुक्ति दिलाकर आर्थिक आजादी दिलवाने का कार्य किया है। आज पतंजलि के उत्पाद खाने-पीने के साथ-साथ खेती, परिधान, स्वास्थ्य इत्यादि सभी क्षेत्रो में पाये जा सकते हैं। इन उत्पादों से प्राप्त अर्थ को परमार्थ के कार्यो में लगाया जाता है। पतंजलि आयुर्वेद आज एफ.एम.सी.जी. सेक्टर में देश का सबसे बड़ा ब्रांड है। आज पतंजलि हरिद्वार, आसाम, उत्तर प्रदेश, महारष्ट्र एवं देश के विभिन्न भागों में छोटी-बड़ी लगभग 50 यूनिट लगाकर उत्पादन कर रही है। साथ ही आयुर्वेद के लाभ के साथ विदेशी कम्पनियों से उत्तम व सस्ते फूड एवं नॉन-फूड के सैकड़ों गुणवत्तायुक्त उत्पाद तैयार किए जाते हैं। आज पतंजलि के उत्पाद करोड़ों भारतीयों की पहली पसंद बन चुके हैं। आज भारतवासी स्वदेशी उत्पादों को बहुत मानते हैं और अपने घरों में जगह भी दे रहे हैं।
आयुर्वेद को आधार बनाकर पतंजलि चिकित्सालयों की स्थापना -
आज बड़े-बड़े हॉस्पिटल चन्द पैसों के लालच में आकर चिकित्सा व्यवस्था को एक व्यापार बनाकर काम कर रहे हैं। रोगी चिकित्सकों के मायाजाल में एक बार फंसता है तो फंसकर ही रह जाता है। ऐलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभाव से मानवता को मुक्त करवाने के लिए देशभर में लगभग 4 हजार से अधिक पतंजलि चिकित्सालय, आरोग्य केन्द्र व पतंजलि आयुर्वेद हॉस्पिटल की स्थापना की गई जहाँ पर आयुर्वेद पद्धति से विश्व की विशालतम ओ.पी.डी. की व्यवस्था है जहाँ रोगियों को पंचकर्म, षट्कर्म व आयुर्वेदिक उपचार के साथ-साथ आदर्श जीवनचर्या में रखकर पथ्य-अपथ्य का विशेष ध्यान रखा जाता है।
प्राकृतिक चिकित्सा को आधार बनाकर योगग्राम, निरामयम् व पतंजलि वैलनेस मानव सेवा के लिए समर्पित-
वर्ष 2007 में योगग्राम का निर्माण किया गया, जहाँ पर एलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभाव से पीडि़त रोगी साध्य-असाध्य रोगों व दवा माफियाओं के हाथों अपना सर्वत्र लुटा देने के बाद यहाँ पर आया करते थे। उसके बाद विश्वस्तरीय सुविधाओं के साथ निरामयम् की स्थापना की गई, जो लोकोपचार हेतु समर्पित किया गया। आज पतंजलि वेलनेस, योगग्राम में एवं निरामयम् में प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से उपचार किया जाता है, जो विश्व के सबसे बृहत्त एवं श्रेष्ठतम संस्थानों में एक हैं। सबसे बड़ी स्वास्थ्य साधकों/रोगियों की एक साथ आवास, उपचार, योग साधनों एवं एकांतवास की श्रेष्ठतम व्यवस्था है। लाखों लोगों के असाध्य रोग यहाँ से दूर हो चुके हैं एवं प्रकृति से प्यार करने वाले लोग यहाँ पर बिना किसी रोग के भी तन, मन व आत्मा की शुद्धिकरण हेतु यहाँ आते हैं। पंचकर्म, षटकर्म सहित सैकड़ों प्रकार की चिकित्सा विधाओं की यहाँ सुन्दर व आदर्श व्यवस्था है।
आयुर्वेद अनुसंधान को आधार बनाकर पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना-
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आयुर्वेद पर नित नये अनुसंधान कर पतंजलि अनुसंधान संस्थान ने भारत की प्राचीन विरासत को संजोने का कार्य किया है। पतंजलि ने कोरोना काल में जब संम्पूर्ण विश्व में हाहाकार मचा हुआ था तब कोरोनिल किट बनाकर लाखों-करोड़ों लोगों के प्राणों की रक्षा की थी, जहाँ मॉडल साइन्स हार चुकी थी, तब भारत की प्राचीन विधा आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से लोगों के प्राणों को बचाया गया। आज पतंजलि लिथोम, पीड़ानिल गोल्ड, थायरोग्रिट, बी.पी. ग्रिट, मधुग्रिट, श्वासारि गोल्ड जैसी चमत्कारी गुणों से युक्त आयुवैदिक औषधियों का निर्माणकर जनमानस में संजीवनी देने का कार्य कर रही है।