स्वास्थ्य समाचार

सर्वे : ब्रांडेड दवाओं में डॉक्टरों के कमीशन पर रोक चाहते हैं लोग

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने हाल में नए नियम जारी कर कहा कि सभी डॉक्टर जेनेरिक दवाएं ही लिखें और अगर वे ऐसा नहीं करते तो उनके खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही की जा सकती है। डॉक्टरों द्वारा प्रिस्क्रिप्शन पर जेनेरिक दवाओं को लिखने की अनिवार्यता पर एक सामुदायिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल ने देश के 326 जिलों में राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया।
85 प्रतिशत लोगों ने एनएमसी का समर्थन किया
सर्वेक्षण में शामिल 85 प्रतिशत लोगों ने डॉक्टरों और उनके परिवार के सदस्यों को किसी भी तरह का कमीशन या लाभ प्राप्त करने से रोकने के लि एनएमसी के दिशानिर्देशों का समर्थन किया। इस संबंध में 12 हजार 393 लोगों से सवाल पूछा गया।
72 प्रतिशत कमीशन मिलने की बात कही
सर्वेक्षण में शामिल 72 प्रतिशत नागरिकों का मानना है कि उनके डॉक्टर के कई स्त्रोतों जैसे प्रयोगशालाओं, अस्पतालो नर्सिंग होम, फार्मास्टुटिकल कंपनियों, केमिस्ट इत्यादि से कमीशन मिल रहा है। इस संबंध में सर्वेक्षण में 10 हजार 401 लोगों से सवाल पूछा गया।
07 प्रतिशत लोग जेनेरिक दवा के पक्ष में
सर्वेक्षण में शामिल केवल सात फीसदी नागरिक जेनेरिक दवाएं लिखने के संबंध में एनएमसी के नए नियम के पक्ष में है। इस संबंध में 20 हजार 706 लोगों से सवाल किया गया कि एक मरीज के रूप में डॉक्टर आपकी बीमारियों के लिए कौन सी दवाएं लिखे? इस प्रश्न के जवाब में 60 फीसदी लोगों ने कहा कि वे चाहते हैं कि उनका डॉक्टर जेनेरिक के साथ ब्रांडेड दवा के नाम भी लिखें। 22 प्रतिशत लोगों ने कहा कि डॉक्टर को जेनेरिक के साथ एक ब्रांडेड दवा का नाम उदाहरण के तौर पर बताना चाहिए। चार फीसदी ने इस बारे में कोई भी उत्त्तर देने में असमर्थता जताई।
साभार : दैनिक भास्कार
फुल बॉडी चेकअप को लेकर गलत धारणा, इसे बदलने की जरूरत
कोरोना के बाद जिनको जरूरत नहीं, वे भी करा रहे फुल बॉडी चेकअप.... इससे फायदे से ज्यादा बीमारी का खतरा
कोरोना के बाद अमेरिका समेत दुनियांभर में स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ी है। लोग सजग हुए हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि बहुत से लोग सुझाई गई कैंसर जांच तक कराने से कतराते हैं। इसके बावजूद कई लोग डॉक्टर की सलाह के बिना ही फुल बॉडी चेकअप  कराते हैं। कई बार डॉक्टरों के मना करने पर भी लोग बॉडी स्कैनिंग या एमआरआई जैसी जांच कराते हैं, जबकि कई अलग-अलग स्टडी से यह साबित है कि डॉक्टर की सलाह के बिना फुल बॉडी हेल्थ चेकअप का कोई खास लाभ नहीं होता है बल्कि नुकसान का जोखिम बढ़ जाता है। ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. मैरिएन ड्बार्ड गॉल्ट कहते हैं कि सामान्य लोगों के लिए बिना डॉक्टर की सलाह से हेल्थ चेकअप का कोई खास फायदा नहीं है। हालांकि कुछ स्टडी में पाया गया है कि पूरे शरीर का स्कैन कुछ लोगों में कैंसर और अन्य बीमारियों की जानकारी शुरूआत में ही मिल सकती है। अन्य शोधों से पता चलता है कि अमेरिका में केवल १४ प्रतिशत कैंसर कर पता स्क्रीनिंग परीक्षणों से किया जाता है, जबकि यहाँ २०२० से एमआरआई मशीनों की संख्या में ५०० प्रतिशत की वृद्धि हुई है। नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के फिनबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन में जनरल इंटरनल मेडिसिन के प्रमुख डॉ. जेफरी लिंडर ने कहा, कई लोगों के शरीर में गांठें, सिस्ट या पिंड होते हैं जो स्कैन में चिंताजनक लग सकते हैं, लेकिन वास्तव में हानिरहित होते हैं। इस तरह लोगों के लिए हेल्थ चेकअप जोखिम भरा, मंहगा और अंतत: अनावश्यक हो सकता है। २०१९ की एक रिसर्च में भी कहा गया है कि स्वास्थ्य जांच के लिए पूरे शरीर की एमआरआई नहीं करानी चाहिए, क्योंकि कई बार इससे गलत रिपोर्ट आने का खतरा होता है।
जांच की बड़ी वजह पुरानी बीमारी रोकने की इच्छा
अमेरिका में सिएटल में फ्रेड हचिंसन कैंसर सेंटर के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. मैरिएन डबार्ड गॉल्ट कहते हैं कि फुल बॉडी चेकअप कराने से चाहत खुद के हेल्थ पर नियंत्रण की भावना और पुरानी बीमारी को रोकने की इच्छा से पनपती है। जबकि जांच से उन्हें ही कुछ लाभ होता है, जिनके पूर्वज बीमारी से गुजरे हो।
साभार : दैनिक भास्कार
बीते पांच साल में 250 से ज्यादा उत्पाद लॉन्च हुए, सबसे ज्यादा बिकने वाला वेलनेस उत्पाद यही
अब इसबगोल की भूसी के फायदों पर फिदा हुआ अमेरिका, बे्रड-केक से लेकर पिज्जा तक में इस्तेमाल हो रहा, भारतीयों ने बढ़ाई लोकप्रियता
विक्टर नेवारेज लंबे समय से इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आंत से जुड़ी समस्या) से परेशान थे। उन्होंने डॉक्टर्स की सलाह पर दर्जनों दवाइंया ली पर कोई फायदा नहीं हुआ। इसी तरह मैक्स विट्टेक ओजेपिक दवा (ब्लड शुगर घटाने वाली) की मदद के बिना भूख पर नियंत्रण चाहते थे, पर विकल्प नहीं मिला। आखिर इनकी खोज साइलियम हस्क यानी इसबगोल की भूसी पर खत्म हुई। भारत का यह उत्पाद अब अमेरिकियों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है।
इसमें से बहुत से लोगों ने दादा-दादी को टेलीफोन पर बने एक हरे-सफेद बॉक्स को सहेजते देखा होगा। गलियों, पैकेज्ड सप्लीमेंट, फिटनेस क्लासेस के इर्द-गिर्द रची गई वेलनेस की दुनियां में भूसे जैसी यह चीज अजीब लग सकती है। मार्केट रिसर्च कम्पनी मिटेल के आंकड़ों के मुताबिक यह अमेरिका में सबसे ज्यादा बिकने वाला उत्पाद बन गई। २०१८ से २०२२ तक अमेरिका में इसबगोल के करीब २५० उत्पाद लॉन्च हुए। उतनी ही तेजी से बिक्री में भी बढ़ोत्तरी हुई है। ग्लूटेन-फ्री-बेकर्स इनका उपयोग ब्रेड और केक में तो कुक सॉस को गाढ़ा बनाने में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। पिज्जा और रोल्स में भी इसका उपयोग हो रहा है। मैथेमेटिक्स के प्रो. जॉर्ज शेफर कहते हैं, सभी जानते है कि उन्हें पर्याप्त फाइबर नहीं मिल रहा है। ऐसे में यह बेहतर सस्ता विकल्प है।
मैनहट्टन के माउंट सिनाई अस्पताल में शोधकर्ता दिव्या जैन के मुताबिक यह विशिष्ट भारतीय पिता की तरह महसूस होता है। वे बचपन याद करते हुए कहती है कि कैसे उनके पिता पाचन और शुगर को कंट्रोल करने के लिए गर्म दूध और चावल के साथ भूसी मिलाते थे। बोस्टन में डेटा एनालिस्ट सामी सफीउल्लाह के मुताबिक उनकी दिनचर्या इसके बिना पूरी नहीं होती। एक और एशियाई उपचार जिसे अमेरिका ने अपना लिया है। हल्दी और अश्वगंधा की तरह इसके प्रति जुनुन देखने बनता है। लाइफस्टाइल ब्रांड की साइट्स पर ये दमदारी से मौजूद है।
भूख दबाने वाली दवा के रूप में इसका इस्तेमाल नहीं करें: एक्सपर्ट
एक्सपर्ट कहते हैं कि इसबगोल की बढ़ती लोकप्रियता की वजह वो भारतीय मूल के लोग हैं, जिन्होंने बचपन से इस उत्पाद के फायदों को देखा है। संभवत: इन्हीं लोगों के कारण अमेरिकी शेल्फ में इस भूसी ने जगह बना ली है। मैसाचुसेट्स में कैम्ब्रिज हेल्थ अलायंस के एक ट्रेनी डॉक्टर पीटर कोहन कहते हैं, भूख दबाने वाली दवा के रूप में साइलियम हस्क का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यह सप्लीमेंट कुछ घ्ंटों के लिए भूख को रोक सकता है, पर कुछ घंटों बाद हमारी भूख फिर बढ़ जाती है क्योंकि हमे कोई कैलोरी नहीं मिलती है।
साभार : दैनिक भास्कार

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