स्वस्थ भारत के शिल्पकार परम पूज्य स्वामी जी महाराज

स्वस्थ भारत के शिल्पकार परम पूज्य स्वामी जी महाराज

वंदना बरनवाल, राज्य प्रभारी

महिला पतंजलि योग समिति, .प्र.(मध्य)

  उत्तम स्वास्थ्य एक ऐसा अनमोल रत्न है जिसका मूल्य हमें तब ज्ञात होता है जब वह खोने लगता है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है तो जीवन एक प्रकार से भारस्वरूप हो जाता है। परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने इसे ही भांप कर नियमित योगाभ्यास के माध्यम से स्वयं को स्वस्थ रखने की जो मुहीम पिछले दो-तीन दशकों से चलाई। आज लोग उसे अपनी जीवनचर्या में एक धार्मिक अनुष्ठान की तरह से शामिल कर चुके हैं। हमारे ऋषियों ने कहा भी है (शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्) अर्थात् यह शरीर ही धर्म का श्रेष्ठ साधन है। इसलिए यदि हम धर्म में विश्वास रखते हैं और स्वयं को धार्मिक कहते हैं तो हमारा यह कर्तव्य भी है कि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखें।
स्वास्थ्य और इसका पैमाना
स्वास्थ्य क्या है? और इसका पैमाना क्या है? अर्थात् किस व्यक्ति को हम स्वस्थ कह सकते हैं और वह कितना स्वस्थ है इसका निर्धारण कैसे हो? किसी भी चिकित्सा पद्धति में स्वास्थ्य की कोई परिभाषा नहीं दी गई है पर साधारण रूप से तो यही माना जाता है कि किसी प्रकार की शारीरिक और मानसिक बीमारी का नहीं होना ही स्वास्थ्य है। आमतौर पर चिकित्सक भी शरीर में किसी भी प्रकार के रोग के अभाव को ही स्वास्थ्य मानते हैं। विभिन्न जांचों के माध्यम से वे रोग को और उसकी तीव्रता को तो माप सकते हैं, परन्तु स्वास्थ्य को मापने का उनके पास भी कोई पैमाना या उपकरण नहीं है। चिकित्सा विज्ञान ने शरीर में विभिन्न रोगों के स्तर को मापने के लिए ढेरों पैमाने बना रखे हैं जिसमें हृदय की धड़कन, रक्तचाप, लम्बाई या उम्र के अनुसार वजन, खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा आदि के साथ ही गंभीर रोगों के स्तर के परीक्षण भी शामिल हैं। परीक्षण रिपोर्ट में इनमें से कोई भी मान निर्धारित सीमा से कम या अधिक होने पर व्यक्ति रोगी मान लिया जाता है और उसे रोगमुक्त करने के लिए दवाओं की शरण में पहुंचा दिया जाता है। भले ही रोगों की पहचान और उसके स्तर को मापने के लिए पैमाने बनाना ठीक हो परन्तु स्वास्थ्य को तो समग्र रूप से देखा जाना चाहिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी स्वास्थ्य को पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति के रूप में परिभाषित करता है और यह सिर्फ योग से ही संभव हो सकता है।
स्वास्थ्य का मौलिक अधिकार
स्वास्थ्य के अधिकार का अर्थ है एक व्यक्ति को स्वस्थ रहने का अधिकार प्राप्त होना और साथ ही उसका सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचना और उसे प्राप्त कर लेना। इस अधिकार में चिकित्सकीय परामर्श संग दवा, उचित भोजन, पानी, स्वच्छता आदि अनेकों आवश्यकताएं शामिल हैं। सरकारों की तरफ से ऐसी तमाम सेवाओं के लिए हमेशा कोई कोई कार्यक्रम बनते भी रहते हैं परन्तु भारत जैसे 140 करोड़ की जनसँख्या वाले देश में सबके लिए इस प्रकार की व्यवस्था को केवल सरकारी प्रयासों से बना पाना बेहद चुनौतीपूर्ण है। कोविड के समय हमने इसे देखा भी। ऐसे में समझने वाली बात यही है कि कोई भी सरकार हमें स्वास्थ्य सुविधा भले ही प्रदान करे परन्तु वह इसके लिए वह संवैधानिक रूप से बाध्य नहीं है। वैसे भी सरकार यदि प्रयास भी करे तो वह रोगों से बचाव के लिए डॉक्टर, हॉस्पिटल और मेडिसिन की व्यवस्था ही तो कर सकती है। पर ऐसी किसी भी व्यवस्था से व्यक्ति को स्वास्थ्य मिल जायेगा, यही प्रश्न विचारणीय है। लोगों की स्वास्थ्य को लेकर इसी अज्ञानता का लाभ चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े बहुतायत लोग जिनमें डॉक्टर, दवा कंपनी, पैथोलोजी, अस्पताल आदि सभी शामिल हैं, समान रूप से उठाते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक अपने ऐसे ही ज्ञान के अभाव के कारण भारत में हर साल करीब साढ़े : करोड़ लोग रोगों से मुक्ति की तलाश में गरीब हो जाते हैं। इसीलिए कुछ लोग यह भी कहते हैं कि भारत में अच्छा स्वास्थ्य एक विलासिता है जिसे सामान्य तौर पर अमीर और मुख्यधारा के लोग ही वहन कर पाते हैं।
विलासिता नहीं आवश्यकता है स्वास्थ्य
हो सकता है कुछ लोग बीमारियों से बचाव और स्वास्थ्य के बीच के अंतर को नहीं समझ पाते हों, बावजूद इसके भारत जैसा देश जो आदिकाल से ही स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में विश्व गुरु रहा हो, यदि वहाँ स्वास्थ्य को विलासिता की संज्ञा दी जाये तो यह चिंतनीय है। नि:संदेह आजादी के बाद भारत के लिए कई स्तर पर स्वास्थ्यगत चुनौतियां थीं और इन चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटते हुए भारत हमेशा आगे बढ़ता रहा है। हमने हमेशा से दुनिया को दिखाया कि स्वास्थ्य समस्याओं और महामारी पर विजय प्राप्त करने के क्षेत्र में हम परिपक्व हैं। आज भारत से कुष्ठ रोग, पोलियो, चेचक जैसी कई बीमारियां या तो खत्म हो गई हैं या फिर इस दिशा में निर्धारित लक्ष्य के बहुत करीब पहुँच चुकी हैं। हमने चिकित्सा और दवाओं से संबंधित शोध में जबरदस्त काम किया है। अब हम कई सारी दवाओं और उपकरणों के दुनिया में सबसे बड़े निर्माता हैं। आज भारत विश्वस्तरीय दवाओं का उत्पादन करता है और इसलिए भारत को फार्मेसी ऑफ दर वर्ल्ड यानि दुनिया की फार्मेसी के रूप में भी जाना जाता है। अफ्रीका में जेनरिक दवाओं की कुल मांग का 50 फीसदी भारत से जाता है। इतना ही नहीं अमेरिका की जरूरत की 40 फीसदी और और यूके की 25 फीसदी जेनरिक दवाओं की आपूर्ति भारत करता है। आंकड़ों के मुताबिक भारत दुनिया की कुल वैक्सीन का 60 फीसदी और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनिवार्य टीकाकरण अभियान में लगने वाली कुल वैक्सीन का 70 फीसदी उत्पादन करता है। इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण कोविड-19 के चरम के समय में हम सभी ने देखा जब पूरी दुनिया वैक्सीन के लिए भारत पर निर्भर नजर आई। भारत ने इस दौरान 70 देशों को वैक्सीन की डोज भेजीं। जब हमारे पास इतना सब कुछ है और हम इतने ज्यादा सक्षम भी हैं तो फिर स्वास्थ्य को विलासिता के साथ जोड़ने का सीधा अर्थ यही है कि तो हम स्वास्थ्य और दवा में अंतर को जान सके और ही अपने पारंपरिक चिकित्सा को पहचान सके।
पारंपरिक चिकित्सा पर ध्यान देना निराशाजनक
आज भले ही मौजूदा समय में योग-आयुर्वेद को मेडिकल साइंस ने भी कारगर मानते हुए इससे होने वाले लाभ को समर्थन दिया हो, पर फिर भी एक वास्तविकता यह भी है कि भारत ने अपनी इस चिकित्सा विरासत को वर्षों तक नजरअंदाज किया। शायद इसीलिए वर्तमान स्वास्थ्य और चिकित्सा व्यवस्था पर भार ज्यादा पड़ गया। समय रहते यदि महर्षि पतंजलि समेत चरक, सुश्रुत, अश्विनी कुमार, वागभट्ट, धन्वन्तरी आदि के दिखाए रास्ते पर भारत चलता तो आज भारत में रहने वाले हर व्यक्ति के स्वास्थ्य का स्तर बहुत ही कम खर्च में उच्चतम कोटि का होता। पर यह निराशाजनक है कि आधुनिकता की दौड़ में हमारे महर्षियों और ऋषि-मुनियों द्वारा सुझाये गए स्वास्थ्य की अलौकिक चिकित्सा विधा को लम्बे समय तक नजरंदाज किया जाता रहा या शायद बहुत ही कम ध्यान दिया गया। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, पर दुर्भाग्यवश दो-तीन दशकों पूर्व तक यानि जब तक परम पूज्य स्वामी जी महाराज और श्रद्धेय आचार्यश्री का पदार्पण योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में युद्ध स्तर पर नहीं हुआ था, योग और आयुर्वेद की प्रचंड विरासत को बहुत हल्के में लिया जाता रहा पर पूज्य स्वामी जी के निरंतर प्रयास और वर्ष 2014 में आदरणीय नरेंद्र मोदी जी की सरकार बनने के बाद सिर्फ योग को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली बल्कि कोरोना महामारी के दौरान विश्व के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों ने भी माना कि केवल योग और आयुर्वेद का सहारा लेकर ही इस तरह की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से निदान पाया जा सकता है। इसके लिए एक तरफ जहाँ पतंजलि अनुसंधान संस्थान ने आयुर्वेद के क्षेत्र में एक से बढ़कर एक अनुसंधान किये तो वहीं हर दिन सुबह 5 बजे से पूज्य स्वामी जी महाराज के साथ जुड़कर लाखों करोड़ों ने स्वयं के ऊपर योग का अनुसंधान कर डाला जिसका परिणाम आज सबके समक्ष है।
-क्रमश:

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