G20 से भारत का गौरव बढ़ा है

G20 से भारत का गौरव बढ़ा है

प्रो. कुसुमलता केडिया  

   वैसे जी-20 के सम्मेलन 24 वर्षों से हो रहे हैं। परन्तु मोदी जी के नेतृत्व का यह प्रभावपूर्ण परिणाम है कि भारत में इस सम्मेलन के होने से देश और विदेश में ऐसा प्रभाव पड़ा, जैसे बहुत महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन हो रहा है। यह प्रधाानमंत्री के कार्यकौशल का चमत्कार है। महत्वपूर्ण घटनाओं को अपने पक्ष में उपयोगी और प्रभावशाली बनाने में मोदी जी को अद्भुत दक्षता प्राप्त है।
इस सम्मेलन की तैयारियाँ जिस स्तर पर भारत में हो रही थीं, उससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को प्रतिस्पर्धी मानने वाली कई शक्तियों को कष्ट हो रहा था। अनेक अन्तर्राष्ट्रीय समाचार एजेंसियों एवं समाचार पत्रों, जैसे रायटर, वाशिंगटन पोस्ट, सी.एन.एन. आदि में इस सम्मेलन को लेकर बहुत भ्रामक जानकारियाँ फ़ैलाई गर्ईं। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से दिल्ली के बाहरी क्षेत्रों में जो अवैध बसाहटें हटाई जा रही थीं, उन्हें इन एजेंसियों ने इस सम्मेलन से जोड़कर दिखाने की कोशिश की। जिससे लगे कि सम्मेलन के लिये गरीबों पर अन्याय किया जा रहा है। अवैध रूप से शासकीय भूमि पर या अन्यों की भूमि पर कब्जा करने वालों का इस तरह खुलेआम पक्ष लेना इन एजेंसियों के दुर्भाव का प्रमाण है जो अपने मुख्यालय वाले देशों के बड़े से बड़े ऑपरेशन्स को छिपा लेती हैं और यहाँ कतिपय अवैध झुग्गियाँ हटाने को ही महत्वपूर्ण मानवीय मुद्दा बनाने पर उतारू थीं। यह तो प्रधाानमंत्री की सजगता और तत्परता से उन एजेंसियों के झूठ का उत्तर भी वैश्विक मीडिया में प्रसारित हुआ।

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जी-20 यों तो संबंधित देशों के वित्तमंत्रियों और केन्द्रीय बैंकों के गवर्नर्स का अन्तर्राष्ट्रीय समूह है। परंतु इसके जो वार्षिक शिखर सम्मेलन होते हैं, उसमें राष्ट्राध्यक्ष आते हैं और बहुत से महत्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जिनका भावी विकास गतिविधियों पर सुनिश्चित प्रभाव पड़ता है। इस बार भी संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, ब्राजील, इटली, सऊदी अरब, मैक्सिको, जापान, अर्जेंटाइना, कनाडा, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूरोपीय यूनियन, अफ्रीकी यूनियन तथा बांग्लादेश आदि के राट्र प्रमुख इसमें पधारे थे। रूस के विदेश मंत्री भी सम्मिलित हुये। सम्मेलन की तैयारियाँ वर्ष के आरंभ से ही प्रारंभ हो गई थीं और फऱवरी में गुवाहाटी में टिकाऊ वित्त पर कार्यसमूह की पहली बैठक हुई। जिसमें जलवायु परिवर्तन तथा सतत विकास की संभावनाओं पर और उनके लिये अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण पर विचार किया गया। भारत के 60 नगरों में जी 20 से संबंधित आयोजन हुये और पूरे विश्व में भारत की चर्चा गूंजती रही।
इस सम्मेलन के तीन अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाक्रमों पर भारतीय मीडिया में पर्याप्त चर्चा नहीं हुई जो कि होनी चाहिये थी। पहला है - दिल्ली घोषणा का सर्वानुमति से जारी होना। दूसरा - भारत मध्यपूर्व यूरोप आर्थिक कॉरिडोर के निर्माण का निर्णय। तीसरा - अफ्रीकी संघ को जी 20 समूह में शामिल करना।
कितने ही महत्वपूर्ण आयोजन विज्ञान भवन में होते रहते हैं। परंतु इस आयोजन का महत्व देखते हुये प्रधानमंत्री के निर्देश पर भारत मंडपम तैयार किया गया। जिसके बीच में कोणार्क के सूर्यमंदिर के विश्व प्रसिद्ध चक्र की पृष्ठभूमि में ही प्रधाानमंत्री ने सभी राष्ट्राध्यक्षों एवं अतिथियों का भारतीय ढंग से स्वागत किया। पूरा आयोजन प्राचीन स्वाभाविक भारत राष्ट्र की गरिमा और भव्यता के अनुकूल था। इससे पता चलता है कि इस आयोजन के लिये कैसा गजब का होमवर्क हुआ होगा और कितने विस्तार से एक-एक पक्ष पर विचार किया गया होगा।

सर्वानुमति से घोषणा

सर्वानुमति से घोषणा का होना स्वयं में एक उपलब्धि है। भारत के भीतर मोदी जी से प्रतिस्पर्धा के चलते भारत विरोधी तक हो गये विपक्षियों ने तो बारम्बार प्रचार किया कि कोई घोषणा जारी नहीं हो पायेगी क्योंकि सर्वसम्मति हो पानी असंभव है। ऐसे लोग इस सर्वानुमति से हुई घोषणा से बहुत ही निराश हुये होंगे और स्वयं को पराजित या ठगा हुआ महसूस कर रहे होंगे। सर्वानुमति से घोषणा जारी हो इसके लिये मोदी जी ने अपनी विलक्षण कार्यकुशलता और परिश्रम के साथ कार्य किया। रूस को अनुकूल किया जिसके कारण चीन को भी हाँ में हाँ मिलाने को विवश होना पड़ा। शी जिनपिंग ने इसमें अपनी हार देखी होगी इसलिये स्वयं आकर ली कांग को भेजा। क्योंकि मोदी जी के चमकते नेतृत्व और वैश्विक कद को बर्दाश्त करना उसके लिये मुश्किल हो गया। कनाडा का जहाज बिगड़ जाने के कारण कनाडा के प्रधाानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को जो कष्ट हुआ, उसको लेकर विरोधी अभी भी उन्हें भड़काने में लगे हैं। परंतु प्रधाानमंत्री ने तो स्वयं अपना विमान देने का प्रस्ताव रखकर हृदय की उदारता और विशालता ही दिखाई। विभिन्न राष्ट्र प्रमुखों से मोदी जी ने स्वयं बात की, तभी यह घोषणा सर्वसम्मति से जारी हो सकी है। इस घोषणा ने जलवायु परिवर्तन पर मानव प्रभाव को स्वीकार करने की आवश्यकता पर बल दिया है और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से संसार की समस्याओं के समाधान की आवश्यकता का अनुभव किया है। इसके साथ ही विभिन्न देशों द्वारा ऋण दिये जाने को लेकर जो मनमानी शर्तें दुनिया में लगाई जाती रही हैं उनको संतुलित करने का आग्रह भी किया है। बहुपक्षीय विकास बैंकों की व्यवस्था में सुधार पर विचार करने का आग्रह किया गया है। वैश्विक जैव ईंधन संघ की सक्रियता जलवायु परिवर्तन से उपजी समस्याओं के समाधान के लिये काम करता रहा है और सम्मेलन में उसकी सहभागिता से निर्णय लेने में सुगमता हुई।

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भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर

सम्मेलन का दूसरा महत्वपूर्ण निर्णय है- भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर जो रेल एवं समुद्री जहाज के मार्ग से बनेगा। यूरोपीय संघ के साथ ही भारत, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, जार्डन और इजराइल इसमें अपने-अपने क्षेत्र में निर्माण का कार्य देखेंगे। इस आर्थिक कॉरिडोर का बनना भारत के चक्रवर्ती नेतृत्व की कुशलता का परिणाम है। चीन अपने ढंग से एक कॉरिडोर मध्य-पूर्व तक बनाना चाह रहा था। जिसमें उसने इटली को भी सहमत किया था। परंतु अब इटली भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर के लिये काम करेगा। इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोना ने इसकी घोषणा की और कारण भी गिनाये। भारत वाला प्रस्ताव इस कॉरिडोर के लिये भारतीय चक्रवर्तित्व की बौद्धिक परंपरा से उपजा था। जिसमें जो भी राज्य या नेशन जहाँ भी हैं उसकी सहभागिता प्रसन्नता से संभव होती है और इस कार्य में जो भी आर्थिक भार आये उसमें सब अपने-अपने हिस्से का व्यय स्वयं उठायें तथा प्रबंधन भी स्वयं देखें। इस प्रकार इसकी सफ़लता की जिम्मेदारी भी सबकी होगी और असफ़लता के लिये भी संबंधित पक्ष अपने-अपने क्षेत्र में जिम्मेदार होंगे। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रधान शी जिनपिंग की मूर्खतापूर्ण महत्वाकांक्षी योजना कम्युनिस्ट पार्टी के वर्चस्व को बढ़ाने की लालसा से प्रेरित थी। वह इसके बहाने सारी दुनिया में पसरना चाहता था। जबकि भारत की बुद्धि से इसमें सबकी सहभागिता सुनिश्चित हुई है और किसी भी एक राष्ट्र की दादागिरी जैसी कोई चीज इसमें नहीं है। इस कॉरिडोर के निर्माण से शी जिनपिंग के द्वारा अपनी योजना के लिये लगाया गया धन व्यर्थ ही हो जायेगा जो उसके लिये एक आघात ही है।

अफ्रीकी संघ को शामिल करना

तीसरा महत्वपूर्ण निर्णय इस सम्मेलन का है अफ्रीकी संघ को शामिल किया जाना। प्रधानमंत्री श्री मोदी अफ्रीका के महत्व को आरंभ से ही समझते रहे हैं। जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तभी से वे अफ्रीकी राष्ट्रों से आत्मीय संवाद कर रहे थे। अफ्रीकी देशों में भारतीय जन बड़ी संख्या में हैं और हमारे हित साझा हैं। अफ्रीका के 55 देशों के संघ को जी-20 में शामिल करना इतना महत्वपूर्ण निर्णय है कि इससे विश्व व्यवस्था में बहुत से नये परिवर्तन संभव हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गई यह पहल निर्णायक महत्व रखती है और मुख्य बात यह है कि सामरिक और आर्थिक तथा कूटनैतिक सहयोग बढऩे से अफ्रीकी महाद्वीप में नया उभार शीघ्र सामने आयेगा। मोदी जी विगत 15-16 वर्षों से इस पर काम करते रहे हैं और जिस प्रकार भारत के चक्रवर्ती सम्राट सबके हित का ध्यान रखते हुये और सबको महत्व देते हुये कार्य करते थे जिससे कि सम्राट पर सारा बोझ नहीं आता और सब लोग अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूरी करते रहते हैं, उसी प्रकार मोदी जी ने यह पहल की। भारत और अफ्रीका के संबंध हजारों वर्ष पुराने हैं और मुख्य बात यह है कि अफ्रीका को विश्व में सक्रिय तीनों गुटों से अपनी रक्षा करनी है:- यूरो-अमेरिकी ब्लॉक, कम्युनिस्ट ब्लॉक और तेल वाला समूह। इन तीनों से अफ्रीका की रक्षा में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत इनका सच्चा साथी सिद्ध होगा। यही कारण है कि अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष ने उनके संघ को सदस्य बनाये जाने के बाद दिये गये अपने भाषण में मोदी जी को अपना मित्र, दार्शनिक तथा मार्गदर्शक (फ्रेंड, फि़लॉसफऱ एंड गाइड) बताया, जो उनके हृदय के भावों के ही उद्गार थे। सचमुच यह सैकड़ों साल के सहयोग की आधारशिला रखी गई है। हजारों साल के प्राचीन संबंधों को फिऱ से झाड़-पोंछ कर धूल हटाकर तरोताजा किया गया है।

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अब अफ्रीकी संघ, यूरोपीय संघ की तरह ही जी-20 का सदस्य है और वह अफ्रीकी महाद्वीप की राजनैतिक तथा सामाजिक एवं आर्थिक एकता और अखंडता के लिये तथा अफ्रीकियों के साझा हित को आगे बढ़ाने के लिये काम करता है।
जी-20 नई दिल्ली घोषणापत्र में हरित विकास तथा जलवायु संबंधी वित्त व्यवस्था और जीवन पोषक विकास की नीति पर बल दिया गया है। प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण और डिजिटल सार्वजनिक संरचना तथा बहुपक्षीय संस्थाओं के विकास एवं स्त्रियों के नेतृत्व में विकास की कई नीतियों पर निर्णय लिये गये हैं। इसकी थीम वसुधैव कुटुंबकम थी और भारत मंडपम में इसके भव्य आयोजन ने वैश्विक परिवेश में इसकी गहरी छाप छोड़ी। जिसका संपूर्ण श्रेय प्रधाानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की कार्यनीति और सूझबूझ तथा दूरदर्शिता को है। इस कुशल आयोजन से भारत का गौरव बढ़ा है और मोदी जी के विरोधियों का कद और भी अधिक घट गया है। यह भारत के लोगों के हित में है तथा इससे भारतीय आत्मविश्वास गहरा हुआ है। 
 

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