स्वास्थ्य समाचार

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एसिड रिफ्लेक्स दवाएं लम्बे समय तक लेने से डिमेंशिया का खतरा

एक शोध में बताया गया है कि कुछ निश्चित एसिड रिफ्लक्स दवाएं लंबे समय तक लेने से डिमेंशिया का खतरा बढ़ सकता है। एसिड रिफ्लक्स तब होता है जब पेट का एसिड आहार नली में पहुंच जाता है। ऐसा अधिकतर तब होता है जब हम भोजन करने के बाद लेटते हैं। इससे पाचन समस्याएं पैदा होती हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा कि उनका अध्ययन यह नहीं स्थापित करता है कि एसिड रिफ्लक्स दवाएं लेने से डिमेंशिया हो जाता है बल्कि वे केवल उनके बीच सह-संबंध बता रहे हैं। अमेरिकन एकेडमी आफ न्यूरोलाजी जर्नल में यह अध्ययन हाल में ही प्रकाशित हुआ है। एसिड रिफ्लक्स की समस्या से सीने में जलन और दर्द का अनुभव होता है।
बार-बार एसिड रिफ्लक्स होने से गैस्ट्रोएसोफेजिएल रिफ्लक्स डिजीज अथवा जीईआरडी विकसित हो सकता है जो बाद में आहार नली के कैंसर में बदल सकता है। प्रोटान पंप अवरोधक पेट की परत में ऐसे एसिड को उत्पन्न करने वाले एंजाइम को लक्षित करते हैं। यानी ये इनको नियंत्रित करने में सहायक हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलाजी की सदस्य अध्ययन की लेखिका डॉ. कामाक्षी लक्ष्मीनारायण कहती हैं कि हमने इसका परीक्षण किया कि क्या इन दवाओं का लगातार लंबे समय तक उपयोग करने से डिमेंशिया का उच्च जोखिम हो सकता है।
अध्ययन में 5,712 एसिड रिफ्लक्स पीड़ितिों को शामिल किया गया, जिनकी उम्र 45 वर्ष या उससे अधिक औसत 75 वर्ष थी। विश्लेषण में पाया गया कि 4.4 वर्ष से अधिक समय तक एसिड रिफ्लक्स दवाएं लेने वालों में उन लोगों की तुलना में जिन्होंने ये कभी नहीं लीं, डिमेंशिया का खतरा 33 प्रतिशत तक बढ़ गया। हालांकि शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन की सीमाएं भी बताईं, क्योंकि प्रतिभागियों से साल में एक बार फोन से फालोअप लिया गया।
साभार : दैनिक जागरण
https://www.jagran.com/world/america-long-term-use-of-acid-reflux-drugs-linked-to-dementia-risk-23499199.html

10 सेकंड तक आराम से सांस लेना तनाव, चिंता और पुराने दर्द कम करता हैअल्जाइमर में भी फायदेमंद

अमेरिका में लोग अब कुछ देर आराम करने के लिए 10 सेकंड तक के लिए आराम से सांस लेने का अभ्यास करने लगे हैं। ऐसा करने से उन्हें मन में कुछ देर के लिए शांति का अनुभव हो रहा है। असल में एक रिसर्च के मुताबिक काम करने के बीच में कुछ देर के लिए आराम से सांस लेना अब अल्जाइमर के मरीजों के लिए भी फायदेमंद बताया जा रहा है। विशेषज्ञ इसको लेकर पूरे सप्ताह में लगभग 20 मिनट तक आराम से सांस लेने का अभ्यास करने की सलाह भी दे रहे हैं।
दक्षिण कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के जेरेन्टोलॉजी और मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर मारा माथेर का कहना है कि इसको लेकर किए गए रिसर्च और वैज्ञानिक शोध में भी यह बात निकलकर सामने आई है कि एशिया में कई देशों में यह अभ्यास लोगों की सांस्कृति में शामिल है। रोजाना आराम से सांस लेने का अभ्यास करते रहने से उच्च रक्तचाप, तनाव, चिंता और यहां तक कि पुराने दर्द सहित विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों में सुधार में मदद मिल सकती है। इस तरह के अभ्यास को आम बोलचाल की भाषा में ब्रीथ वर्क कहा जा रहा है।
विशेषज्ञ मानते हैं हृदय गति में परिवर्तन लाने को लेकर भी यह काफी कारगर साबित हो रहा है। शोध में यह भी पाया गया कि उच्च रक्तचाप वाले मरीजों के द्वारा लगातार इसका अभ्यास किए जाने पर उन्हें काफी सुखद परिणाम देखने को मिले हैं। ऐसे में सबसे पहले ऐसे मरीजों को डॉक्टर सांस संबंधी एक्ससाइज की सलाह दे रहे हैं।
कॉर्पोरेट और स्कूल में भी ब्रीथ वर्क और योगाभ्यास शुरू
ब्रीथवर्क, योग और ध्यान से आगे बढ़कर अब कॉर्पोरेट के साथ स्कूलों में भी इसको लेकर तैयारियां की जाने लगी हैं। न्यूयॉर्क के मेयर एरिक एडम्स ने हालही में घोषणा की थी कि सभी स्कूलों में बच्चों के लिए अब प्रतिदिन सांस लेने संबंधी अभ्यास कराए जाने चाहिए।
साभार : दैनिक जागरण
https://www.bhaskar.com/local/mp/dhar/news/relaxed-breathing-for-10-seconds-reduces-stress-anxiety-and-chronic-pain-also-beneficial-in-alzheimers-131593199.html

भारत पारंपरिक चिकित्सा का केंद्र, दूसरे देशों को सीखने की जरूरत : डब्ल्यूएचओ

स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक डॉ. टेड्रॉस अदनॉम गैब्रेयसस ने कहा कि पारंपरिक चिकित्सा का इतिहास बहुत प्राचीन है। भारत इसका केंद्र रहा है। करीब 3500 साल से इस चिकित्सा का लाभ लिया जा रहा है। आज भी करीब 40 फीसदी दवाओं और फार्मास्युटिकल उत्पादों का आधार प्राकृतिक उत्पाद हैं। अन्य देशों को भी इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।
गुजरात के गांधीनगर में हुए पारंपरिक चिकित्सा पर पहले वैश्विक शिखर सम्मेलन में डॉ. गैब्रेयसस ने कहा कि भारत ने आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी चिकित्सा की ताकत बढ़ाने के लिए काफी बेहतर कार्य किए हैं। इन कार्यों को अपनाकर अन्य देशों को भी पारंपरिक चिकित्सा को आगे लाने का काम करना चाहिए। उन्होंने भारत सहित उन देशों से साक्ष्य आधारित कार्यों को लेकर सुझाव मांगे हैं, जहां पारंपरिक चिकित्सा पर सबसे ज्यादा कार्य किया जा रहा है। बाद में डब्ल्यूएचओ इन सुझावों को वैश्विक रणनीति में शामिल कर सकता है। उद्घाटन सत्र में डॉ. गैब्रेयसस ने कहा, मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन में लिए गए फैसले राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में पारंपरिक दवाओं के उपयोग को एकीकृत करेगी। साथ ही विज्ञान के माध्यम से पारंपरिक चिकित्सा की शक्ति बढ़ाने में मदद करेगी।
पारंपरिक चिकित्सा में ये शामिल
केंद्रीय आयुष मंत्रालय इस सम्मेलन की सह मेजबानी कर रहा है। पारंपरिक चिकित्सा में एक्यूपंक्चर, हर्बल दवाएं, स्वदेशी पारंपरिक चिकित्सा, होम्योपैथी, आयुर्वेद, यूनानी, प्राकृतिक चिकित्सा शामिल हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, एस्पिरिन और आर्टेमिसिनिन जैसी दवाओं की खोज पारंपरिक चिकित्सा से हुई है।
भारत की तरह एकीकृत चिकित्सा पर करें काम
डॉ. गैब्रेयसस ने कहा कि एकीकृत चिकित्सा को लेकर भारत ने अपने अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर काफी अच्छा मॉडल तैयार किया है, जिसे विकसित और विकासशील देश भी अपना सकते हैं। यह एक ऐसा मॉडल है, जिसके जरिये सदस्य देश अपनी आबादी को एक ही छत के नीचे एलोपैथी और पारंपरिक चिकित्सा दोनों की सुविधा दे सकते हैं।
170 देश पारंपरिक औषधियों का कर रहे इस्तेमाल
डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा कि आज भी दुनिया के 170 देश पारंपरिक औषधियों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसका लाभ करीब 80 फीसदी आबादी किसी किसी रूप में ले रही है। इससे पता चलता है कि ये चिकित्सा पद्धतियां आज के आधुनिक युग में भी कारगर हैं और भारत में इन्हें बहुत अधिक महत्व भी दिया जाता है।
टीबी के खिलाफ भारत के प्रयास उल्लेखनीय
डॉ. गैब्रेयसस ने कहा, मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में टीबी संक्रमण के खिलाफ भारत की लड़ाई और उल्लेखनीय प्रयासों की सराहना करता हूँ। टीबी मुक्त के लिए भारत के नवोन्मेषी दृष्टिकोण, बहु-क्षेत्रीय साझेदारी प्रयासों और फंडिंग की सराहना है। इससे अन्य देशों को प्रेरणा मिली है।
प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान अपनाएं : मांडविया
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने कहा कि प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को अपनाकर, हम एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य लोकाचार को बढ़ावा देते हुए स्वास्थ्य संबंधी सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सामूहिक रूप से काम कर सकते हैं। उन्होंने कहा, आधुनिक समय में प्राकृतिक और हर्बल आधारित फार्मास्यूटिकल्स सौंदर्य प्रसाधनों की मांग पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के स्थायी महत्व को रेखांकित करती है।
अब विदेशों में बढ़ेंगे भारतीय डॉक्टर-नर्स, विदेशी मरीज भी घर बैठे ले सकेंगे भारत आने की अनुमति
केंद्र ने डब्ल्यूएचओ के साथ मिलकर गांधीनगर से एडवांटेज हेल्थकेयर इंडिया पोर्टल की शुरुआत की है, जो सिर्फ विदेशी मरीजों को घर बैठे भारत आकर इलाज कराने की अनुमति मुहैया कराएगा, बल्कि भारतीय डॉक्टर और नर्स को विदेशों में जाकर सेवा का अवसर भी देगा। विदेशी मरीजों के लिए सरकार ने देश के 23 राज्यों के 98 शहरों के 352 अस्पतालों को इस ऑनलाइन मंच से जोड़ा है, ताकि किसी भी देश का नागरिक ऑनलाइन आवेदन कर इलाज के लिए अस्पताल का चयन कर सके। इन्हीं अस्पतालों में बेहतर प्रैक्टिस कर रहे 6,178 डॉक्टरों को भी मंच पर लाया है, ताकि उनकी केस स्टडी और अनुभव का लाभ दुनियाभर के मरीजों को मिल सके।
अमेरिका की तुलना में इलाज 80 फीसदी सस्ता
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा, विकसित देशों की तुलना में भारत की चिकित्सा बहुत सस्ती और गुणवत्ता पहुंच के लिहाज से काफी आसान भी है। अध्ययन बताते हैं कि अमेरिका की तुलना में भारत में इलाज कराना एक विदेशी नागरिक को 70 से 80 फीसदी तक सस्ता पड़ता है।
साभार :
https://www.amarujala.com/india-news/who-praised-india-said-india-is-centre-of-traditional-medicine-other-countries-need-to-learn-2023-08-18

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