सोरायसिस के लिए गुणकारी औषधि सोरोग्रिट व दिव्य तेल’

सोरायसिस के लिए गुणकारी औषधि सोरोग्रिट व दिव्य तेल’

डॉ. अनुराग वार्ष्णेय

उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान

   चर्म रोगों के नाम पर सबसे ज्यादा लूट-खसोट हो रही है। चर्म रोगों में भी सोराइसिस तथा श्वेत कुष्ठ (ल्यूकोडर्मा) सबसे ज्यादा गम्भीर बीमारी है। उपचार के नाम पर एलोपैथ में केवल स्टेराइड्स दे देते हैं। सोराइसिस तथा श्वेत कुष्ठ का दुष्प्रभाव रहित प्रामाणिक उपचार सर्वप्रथम पतंजलि ने करके दिखाया है।

क्या है सोराइसिस?

सोराइसिस क्या है? इसकी क्या जटिलताएँ हैं? और हर्बल ड्रग्स में हमारे पास क्या-क्या औषधि हैं और वो कैसे काम करती हैं? यह सारी जानकारी हम इस लेख के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। सोराइसिस एक स्व-प्रतिरक्षि रोग (autommune disease)  है, जो पित्त के बढऩे का परिणाम है। आयुर्वेद के मतानुसार पित्त बढऩे से सोराइसिस होती है तथा शरीर में कई तरह के उपद्रव होते हैं। यह किसी भी उम्र में हो सकती है। इस बीमारी में त्वचा पर एक मोटी परत बन जाती है, जो चकत्ते की तरह दिखती है। इन चकत्तों में खुजली के साथ दर्द और सूजन भी महसूस हो सकती है। आमतौर पर इसका असर कोहनी के बाहरी हिस्से और घुटने पर ज्यादा देखा जाता है, इसमें अलग-अलग दाग बन जाते हैं। अधिकतर यह कहा जाता है कि दुनिया में लगभग 4 प्रतिशत लोगों को सोराइसिस होता है। कभी-कभी ये कम उम्र के व्यक्तियों में भी हो जाता है तो कभी-कभी ज्यादा उम्र के व्यक्तियों में देखने को मिलता है।
सोराइसिस के 10 प्रतिशत केस में कहा जाता है कि ये जेनेटिकली प्रीडिस्पोज्ड है, मतलब ये माता-पिता के द्वारा या जीन के द्वारा हो जाता है। हमारे अन्दर यह सुप्तावस्था में पड़ा रहता है और वातावरणीय कारक (Environmental Factors) के लिए जो बाहरी कारण हैं, उनकी वजह से जाग्रत हो जाता है। सोराइसिस का ज्वालामुखी हमारे अन्दर है और जब ये फटता है तो हमारे आसपास जो Environmental Factors हैं उनकी वजह से ये सामने जाता है। इसमें हमारे शरीर में इन्फैक्शन हो जाता है जिसकी वजह से ये बढ़ भी जाता है। ऐसे व्यक्ति जो काफी क्रोनिक स्र्टेस में रहते हैं उनमें सोराइसिस ज्यादा पाया जाता है। तो सोराइसिस के लिए स्र्टेस भी एक को-फैक्टर है। उत्तेजक आहार, उत्तेजक विचार, तेज मिर्च-मसालों से बने पदार्थ, ज्यादा नमक तथा चीनी भी हमारे शरीर को हानि पहुँचाते हैं।

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सोराइसिस की व्यापकता

यदि देखा जाए कि कि दुनियां में सोराइसिस कितना है और कितनी उसकी व्यापकता है तो इसका डेटा (रिकार्ड) पश्चिमी देशों में ज्यादा अच्छी तरह रखा जाता है, भारतवर्ष में इसके लिए जागरूकता थोड़ी कम है और कुछ लोगों को यह पता भी नहीं चल पाता कि ये सोराइसिस है। तो भारतवर्ष में ये कहा जाता है कि हर 1 लाख में 20-30 लोग इससे संक्रमित हैं जबकि यूरोपीय देशों में ये ज्यादा देखने को मिलता है।

सोराइसिस के प्रकार

सोराइसिस भी कई प्रकार का होता है। इसमें यदि त्वचा पर एक बड़ा पैच बनकर तैयार हो जाता है तो हम इसे Plaque psoriasis कहते हैं। कभी-कभी ये छोटे-छोटे धब्बों के रूप में हो जाता है तो हम इसे Guttate Psoriasis कहते हैं। इसके साथ-साथ कभी-कभी छोटे-छोटे फोड़े जैसे बन जाते हैं तो हम इसे  Pustular Psoriasis  कहते हैं। कभी-कभी इसका उल्टा भी हो जाता है जिसे हम inverse Psoriasis कहते हैं। इसमें लाल रंग के चकत्ते हो जाते हैं। नाखूनों में भी सोराइसिस हो जाती है जिसे Nail Psoriasis कहते हैं। सोराइसिस का एक अन्य प्रकार है जिसमें बहुत ज्यादा दर्द एवं परेशानी होती है, उसे Psoriatic Arthritis कहते हैं। इसमें दो बीमारियां एक साथ हो जाती हैं सोराइसिस एवं अर्थरॉइटिस। सोराइसिस एवं रूमेटाइड अर्थरॉइटिस भी autoimmune disease है। इसमें यदि किसी व्यक्ति में इम्यूनिटी की प्राब्लम हो, उसकी बैलेंसिंग का प्राब्लम हो तो ज्यादा परेशानी होती है। हम देखते हैं कि इसके साथ इसकी Comorbidities  कैसी हैं मतलब जिन लोगों को सोराइसिस हो जाता है, उसका प्राथमिक कारण जीन्स का मोडिफिकेशन एवं बाहर के हमारे सामाजिक कारण हैं।

सोराइसिस के कारण अन्य रोगों की संभावना

सोराइसिस के साथ-साथ और भी बीमारियों का रिस्क बढ़ जाता है। इनमें Arthritis, Insulin Resistant Diabetes, Atherosclerosis, Hypertension, Dyslipidemia, Metabolic Syndrome, Anxiety और Depression होने का खतरा बढ़ जाता है। सोराइसिस से पीडि़त व्यक्तियों को ऐसा लगता है कि इस बीमारी की वजह से वे समाज में पहले की तरह कहीं -जा नहीं जा सकते। और इसी मानसिकता के कारण उन्हें और बड़ी बीमारियाँ घेर लेती हैं। हाथ-पैर में अलग-अलग चकत्ते दिखायी देते हैं, तो इनकी सोशल स्थिति कमजोर पड़ जाती है और अधिक बीमारी का शिकार हो जाते है। सोराइसिस ग्रसित व्यक्ति सुबह से शाम तक खुजलाते रहते हैं और उनको रात को नींद भी नहीं आती। कई बार ऐसी स्थिति भी जाती है कि लोग आत्महत्या का प्रयास भी करते हैं। ग्रसित के मन में कुंठा भर जाती है जिसके कारण वह शराब धूम्रपान इत्यादि नशे की ओर चला जाता है क्योंकि दिमागी डिप्रेशन उनको वहीं पर लेकर जाता है। कई लोगों में मैलिग्नेन्सी डेवलप हो जाती है, कैंसर जैसी समस्या बन जाती है। इस प्रकार ये एक छोटी बीमारी से व्यापक बीमारी का रूप ले लेती है।

पतंजलि अनुसंधान संस्थान दिव्य फार्मेसी की दवाएँ

तो इसमें हम क्या कर सकते हैं? इसमें पतंजलि रिसर्च सेन्टर दिव्य फार्मेसी की ओर से दो दवाएँ हैं। इसमें एक दिव्य तेल है जो प्रभावित स्थान पर लगाया जाता है। इसमें अश्वगंधा, सीबक्थोर्न, दारू हल्दी, हल्दी और नीम पांच अलग-अलग तेलों का मिश्रण के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें दिव्य तेल, कायाकल्प कैप्सूल और कायाकल्प एडवांस तेल बहुत ही उपयोगी हैं। गोधन अर्क भी सोरायसिस में अत्यंत लाभकारी है। इसके साथ-साथ आहार पर नियंत्रण सबसे महत्वपूर्ण है। ऐलोपैथी में सोराइसिस की कोई प्रामाणिक औषधि नहीं है, ऐलोपैथ में दवा के नाम पर स्टेरॉयड या इम्यूनिटी घटाने के लिए दवाई देते हैं। पतंजलि अनुसंधान संस्थान के नवीन अनुसंधान के रूप में सोराइसिस के लिए Psorogrit टेबलेट्स है, जो इस रोग में अच्छी तरह से काम करती है।

पतंजलि अनुसंधान संस्थान के प्रयोग

हमने इसके लिए बहुत सारे प्रयोग किए इसमें सबसे पहले हमने Phytochemical analysis किया सोरोग्रिट के अन्दर और दिखाया कि इसमें बहुत अच्छे एक्टीव कम्पोनेंट हैं जो स्किन (त्वचा) के इन्फ्लेमेशन को कन्ट्रोल करने में सहायक होते हैं। ऐसे ही हमने दिव्य तेल के साथ किया। इसमें हमने पाया कि इसमें अच्छे क्वालिटी के फैटी एसिड्स है, जो स्कीन (त्वचा) के अन्दर समाहित होकर त्वचा को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं और त्वचा की इन्फ्लेमेशन को रेगुलेट करते हैं। इसके बाद हमने कुछ अलग टाईप के सैल लाईन ट्रायल्स किये, कुछ अलग टाईप के इन्विट्रो बॉयोजिकल ट्रॉयल किये। इसमें हमने स्कीन (त्वचा) के टॉप के सैल्सकेरोटिनोसाइट्सपर काम किया और अलग टाईप के इंडक्शन किये और उन सेल्स में इन्फ्लिमेशन पैदा किया। इन्फ्लिमेशन पैदा करने के लिए हम एक विशेष प्रकार के साइटोकाइन का प्रयोग करते हैं जिसे TNF- α कहते हैं। TNF- α  के डालने से ये सैल्स इनफिलीमेन्ट्री कंडीशन में जाते हैं। तो हमने देखा कि यदि हम इन सैल्स को इनफिलीमेन्ट्री कंडीशन में ले आयें तो क्या हम उन इनफिलीमेशन को हम सोरोग्रिट के प्रयोग से नार्मल कर सकते हैं। यह हमारी पहले वाली खोज थी जहाँ हमने पाया कि हम ऐसा कुछ कर सकते हैं। इसका कोई साईड इफेक्ट भी नहीं है। हम इसमें 100 माइक्रोग्राम डोज तक गये। इसमें हमने देखा कि लो डोज एवं हाई डोज पर भी कोई भी सेल्स मर नहीं रही थी। हमने देखा कि TNF- α  की वजह से IL8 जो इन्फ्लेमेशन का बड़ा कारण है, उसका लेवल डोज डिपेंडेंट तरीके से कम हो रहा है। जैसे-जैसे हम सोरोग्रिट की मात्रा बढ़ाते है तो वैसे-वैसे IL8 का लेवल भी कम होता जाता है। उसके जो बाद तीन बड़े फैक्टर है IL6, IL12, TNF-α और IL 1β जब हमने इनका लेवल नापा और देखा कि जब-जब TNF-α की वजह से इन्फ्लेमेशन बढ़ता है तो Molicular Markers जो प्लेयर्स हैं इन्फ्लेमेशन के उनका लेवल भी सोरोग्रिट सामान्य करता है और लगभग उसी लेवल पर जाता है जिस लेवल पर चाहिए था।

सोरोग्रिट दिव्य तेल की प्रामाणिकता सफल एनिमल ट्रॉयल से

उसके बाद कुछ प्रयोग हमने Animals  पर किये। इसमें हमने चूहों का दो अलग-अलग प्रयोग किया। हमनें चूहों पर अलग-अलग केमिकल लगाने पड़ते है, इसमें एक केमिकल होता है जिसका नाम TPA, जो हम चूहों के कान पर लगाते हैं। जब हम TPA  चूहों के कान पर लगाने से इन्फ्लीमेशन पैदा हो जाता है तो उनके कान की मोटाई बढ़ जाती है, वो थिक हो जाते हैं और वो स्थिति सोराइसिस जैसी हो जाती है। ये जो चूहों के ऊपर प्रयोग होते हैं वो ज्यादा लम्बे समय के लिए होते हैं। हमने यह प्रयोग लगभग एक महीने तक किया। इसमें हमने मुँह से सोरोग्रिट टेबलेट खिलाया और जब कान सूज गए तब दिव्य तेल उनके कान पर लगाया। ये दोनों तरह के उपचार थे जो हमने दो अलग-अलग डोज के आधार पर किए। साथ ही हमने क्लोबेटासोल का एक और प्रयोग किया। इसमें हमने केवल 10 दिनों में सोरोग्रिट एवं दिव्य तेल के लगाने से परिणाम दिखाई देने लगे। उसके बाद हमने चूहों के कान में जो पैच लगे है उनको भी निकालने का काम शुरू किया, क्योंकि अगर सूजन आयी है तो उनका वजन भी बढ़ता है। तो हमने देखा कि सोरोग्रिट के इस्तेमाल से तीनों लेवल पर उनका वजन भी ज्यादा नहीं बढ़ा। तब हमने स्किन पैथोलॉजी किया। इसमें हम 33 अंगों को देखते हैं और उन पर टेस्टिंग करते हैं। इसमें बीमारी मिटाने के साथ-साथ शरीर में कोई अतिरिक्त नुकसान तो नहीं हो रहा है इसकी भी जाँच हम करते हैं, तब हमने इसमें भी पाया कि सोरोग्रिट टेबलेट एवं दिव्य तेल के प्रयोग का कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ।

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