इम्युनिटी तथा ऑटोइम्यून डिज़ीज

इम्युनिटी तथा ऑटोइम्यून डिज़ीज

डॉ. नागेन्द्र 'नीरज

निर्देशक चिकित्सा प्रभारी - योग-ग्राम, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार

9. वस्कुलाइटिस रोग
इसमें रक्त वाहिनियों (Blood Vessels) पर इम्यून सिस्टम के उदण्ड अराजक सैनिक प्रहार करके रक्तवाहिनियों में इन्फ्लामेशन पैदा करते हैं। फलत: रक्तवाहिनियाँ मोटी तथा उनके आन्तरिक क्षेत्रफल एवं चौड़ाई कम हो जाती है। रक्त संचार बाधित अस्त-व्यस्त एवं कमजोर हो जाता है। परिणाम स्वरूप पर्याप्त पोषण एवं ऊर्जा नहीं मिलने से अन्य अंगों तथा उत्तक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। वस्कुलाइटिस के अनेक रंग रूप आकार प्रकार होते हैं जिसके कारण एक से लेकर अनेक अंग अल्प तथा दीर्घकालीन तक दुष्प्रभावित होते हैं। इसमें थकान, वजन गिरना, सामान्य दर्द एवं वेदना, ज्वर, सिर दर्द, भोजन के बाद दर्द, कान में आवाज, दृष्टि दोष, हाथ एवं पैरों में कमजोरी, हथेली, हाथ-पैर पगतली सख्त कठोर एवं सूज जाते है। रक्त कैंसर, अर्थराइटिस, एस.एल.., स्क्लेरोडर्मा तथा कुछ दवाइयों में वस्कलाइटिस उग्र हो जाता है। 5 से 50 साल की उम्र में हो सकता है। इसमें पारिवारिक इतिहास, औषधियाँ, नशे का दुर्व्यसन, कुछ अन्य ऑटोइम्यून रोग एस.एल.., स्क्लरोडर्मा तथा आर्थराइटिस में यह रोग उग्र हो जाता है। इस रोग से अंग क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। रोग बढ़ने पर अंधता, रक्त के चकते बनना तथा एन्यूरिज्म (धमनी विस्फार) हो जाता है।
10. सोरायसिस
इम्यून सिस्टम का अराजक सैनिक टी-लिम्फोसाइट त्वचा में जमा होकर त्वचा कोशिकाओं को उग्र बना देते हैं जिसके परिणाम स्वरूप सारी त्वचा पर रजत रंग जैसी पपड़ीदार चकत्ते उभर आते हैं। यह अत्यन्त कष्टदायी होती है। पेट, पीठ, पैर, हाथ शरीर की किसी भी अंग की चमरी में खुश्की, खुजली, जलन, नाखुन मोटी, गड्ढ़ा, दागदार होता है। कभी-कभी इस रोग से सभी अंग की त्वचा ग्रस्त हो जाती है। जोड़ो में सूजन तथा दर्द बढ़ जाते हैं।
11. मायोस्थेनिया ग्रेविस (Myasthenia Gravis)
इम्यून सिस्टम के उग्रवादी एण्टीबॉडीज मांसपेशियों के विशेष प्रोटीन रेसेप्टर टायरोसिन काइनेस तथा न्यूरोट्रान्समीटर्स एसिटाइल कोलिन के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान करने वाले सिग्नल सिस्टम को विध्वंस कर देता है या ब्लॉक कर देता है। विभिन्न मांसपेशियों तथा दिमाग के मध्य सिग्नल अस्त-व्यस्त होने से अनेक रोगों के लक्षण दिखते हैं। यह रोग महिलाओं के 40 तथा पुरुषों के 60 वर्ष की आयु के पार तथा बच्चों में भी होता है।
सर्जरी, तनाव, गर्भावस्था, माहवारी कुछ दवाइयाँ जैसे बीटा ब्लॉर्क्स, क्युनिन, क्युनिडिन ग्लूकोनेट, क्युनिडिन सल्फेट, फेनाइटोइन तथा कुछ एण्टी-बायोटिक दवाइयाँ, मानसिक तनाव-दबाव का संबंध इस रोग से है। ये इस रोग को अत्यधिक उग्र बना देते हैं। फेफड़े की मांसपेशियाँ शिथिल होने पर श्वसन की स्थिति खराब हो जाती है।
थायमस में सामान्य ट्यूमर थाइमोमास तथा 'यूमैन पैरावायरस बी-19 के संक्रमण से थायमस की अति सक्रियता के कारण भी मायोस्थेनिया होती है। हाइपो तथा हाइपर थॉयरॉयडिज्म में भी यह रोग उग्र हो जाता है। इस रोग में एच्छिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होने से टहलने, बोलने, भोजन चबाने, निगलने, द्वि-दृष्टि दोष (डिप्लोपिया) बार-बार पलकों का बन्द हो जाना (Ptosis) चेहरे का उलझन भरा हाव-भाव, कर्कश स्वर तथा विकृत मुस्कान, गुर्राहट जैसा हास्य, थकान, कमजोरी के लक्षण दिखते हैं। मायोस्थेनिया ग्रेविस से ग्रस्त कथित फिल्मी महानायक अमिताभ बच्चन अपने संयमित जीवनशैली से इस रोग के साथ भी सक्रिय जीवन यापन कर रहे हैं। ऐसे रोगियों के लिए वे प्रेरणा के स्रोत है।
12. जोगरन सिण्ड्रोम (Sjogren’s Syndrome)
इम्यून सिस्टम के सुरक्षा सैनिक गलती से, अज्ञानतावश, अंजाने में शरीर में नमी पैदा करने वाली ग्रन्थियां जो अलग-अलग प्रकार के द्रव पैदा कर विभिन्न अंगों की नमी, तरलता एवं सुरक्षा को बनाये रखते हैं, उन अंगों पर धावा बोलकर उन्हें क्षतिग्रस्त कर देते हैं। जिससे उनकी तरलता, नमी एवं सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। इसका पहला प्रभाव मुँह तथा आँख पर होता है। फलत: आँसू तथा लार बनने कम या खत्म हो जाते हैं। मुँह तथा आँखों में खुश्की एवं सुखापन आने लगता है। ये इसका मुख्य लक्षण होता है। इसके अतिरिक्त लार स्राव के मूल स्थान जबड़े तथा कान के पास स्थित ग्रंथियों में सूजन, जोड़ो, नेत्र, नाक, कान, मांस पेशियाँ, त्वचा, योनि आदि अंग दुष्प्रभावित होते हैं। इन के स्राव की गड़बड़ी के कारण त्वचा पर लाल चकत्ते फुन्सी (Rashes) तथा खुश्की एवं सुखापन, योनि-खुश्की, लगातार ड्राइ कफ, दीर्घकालिन थकान आदि लक्षण दिखते हैं। इस रोग में थायरॉयड, गुर्दे, फेफड़े, त्वचा, तंत्रिकाएं (Nerves), किडनी, सभी जोड़ दुष्प्रभावित होते हैं। खाली पेट मिचली, उल्टी, ब्लॉटिंग, दस्त, होते हैं। 
यह 40 से ऊपर की आयु की महिलाओं तथा रुयूमेटायड आर्थराइटिस वाले रोगियों में ज्यादा दिखता है। सलाइवा लार रस नहीं बनने से दाँतों का संक्रमण, डेन्टल कैविटी, मुँह का ओरल थ्रश यीस्ट इन्फेक्शन पैदा होने लगता है। देखने में काफी कठिनाइ दृष्टि दोष शुरू हो जाती है।
ज्यादा जीर्ण होने पर फेफड़ा, लिवर तथा किडनी का इन्फ्लामेशन होने पर हिपेटाइटिस, ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया तथा किडनी रोग होने लगता है। धीरे-धीरे तंत्रिकाओं में सुन्नपन, स्पर्शहीनता, झुन-झुनी (Numbness and Tingling) तथा इसमें शारीरिक थकान ज्यादा होती है। दिन में नींद, बार-बार मूत्र त्याग आदि के लक्षण दिखते हैं।
उपर्युक्त सभी ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण एवं कारण
प्राय: इन रोगों में मुख्य लक्षण थकान, मांसपेशीय कमजोरी, दर्द, हल्का ज्वर, एकाग्रता की कमी, हाथ तथा पैरों में दर्द, बालों का झड़ना, त्वचा पर चकत्ते, स्पर्शज्ञान हीनता, गाल-होठ, हाथ-पैर में सुन्नपन, चुन-चुनाहट तथा झुन-झुनी, ग्रंथियों में सूजन, सूर्य किरण अल्ट्रावायलेट एलर्जी, पेट में दर्द, जोड़ों में दर्द सूजन आदि दिखते है। ये क्यों होते हैं, इसे अच्छी तरह समझें।
इन सारे कारणों के बावजूद भी इसके मूल कारण का मेडिकल साइन्स में पता नहीं चला सका है। बस इनकी लक्षणात्मक उपचार होता है। ऑटोइम्यून डिजीज में माना जाता है कि सूक्ष्म रोगाणु बैक्टीरिया या वायरस या कोई दवा, एण्टीजेन या अन्य कोई बाह्य कारक हमारे इम्यून सिस्टम को धोखे से कन्फ्युज करके तथा उनके साथ सांठ-गांठ करके या हनी-ट्रेप टेक्नीक द्वारा एण्टीबॉडीज आदि सुरक्षा सैनिकों को अपने जाल में फंसाकर उत्तेजित एवं उकसाकर षड्यंत्र की रचना कर शरीर की स्वस्थ, निर्दोष, पवित्र कोशिकाओं को ही नष्ट करने के लिए मजबूर कर देते हैं। हमारे एण्टीबॉडीज सैनिक जिस अंग के उत्तक, मांसपेशियों, लिगामेन्ट, टेण्डन, अस्थि तथा अंगों को नष्ट एवं ध्वस्त करते हैं उनके अनुसार विविध ऑटो इम्यून रोगों की नामकरण किया जाता है। कुछ ऑटोइम्यून डिजीज जेनेटिक्स भी होती हैं। जब तक ये जीन शान्त पड़े रहते हैं कोई समस्या नहीं होती है, लेकिन किसी बाह्य कारक या आन्तरिक कारक एण्डोटॉक्सिन्स, बैक्टीरिया या वायरस, एण्टीजेन, एलर्जेन आदि से भयंकर रूप से प्रतिक्रिया करके विकराल ढंग से विकट रूप में अभिव्यक्त (Express) होने लगते हैं। वे भूल जाते हैं। शरीर की नैसर्गिक धर्म एवं नियम को और ऑटोइम्यून रोगों की नीव डालते हैं। इन रोगों में इम्यून सिस्टम के अराजक एण्टीबॉडीज शरीर के विभिन्न अंग जैसे फेफड़ा, किडनी, तंत्रिका, नर्व, खून, लिवर, फेफड़ा आदि किसी भी अंग पर प्रहार करके उसे नष्ट करने में लग जाते हैं।
1. पैतृक तथा जेनेटिक दोनों प्रकार के कारण होते हैं। माता-पिता से संबंधित परिवार में किसी सदस्य को यह रोग या अन्य आटोइम्यून डिजीज रहा हो
2. बाह्य पर्यावरणीय कारण जैसे ठण्ड के प्रभाव से तथा सूर्य अल्ट्रावायलेट किरण से उग्र हो जाता है
3. कुछ दवाइयों के दुष्प्रभाव
4. शारीरिक एवं मानसिक तनाव में उग्रता बढ़ जाती है
5. परजीवी वायरस, बैक्टीरिया, यीस्ट, फंगी आदि के संक्रमण
6. कोई अचानक दुर्घटना (Trauma)
7. उम्र-15 से 40 साल की उम्र में ज्यादा खतरा
8. पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा होने की संभावना
9. इस बीमारी में विभिन्न रोगों से लड़ने वाली स्वयं की रोग रक्षक शक्ति एवं रोग प्रतिरोधक कोशिकाएं हमारे ही विभिन्न अंगों के साथ शत्रुवत व्यवहार करने लगती हैं। वे हमलावर हो जाती हैं। वे पहचान नहीं पाती हैं कि कौन शरीर का शत्रु है, कौन मित्र है। रोग रक्षक विभिन्न कोशिकाएं खास करके CD4+ T Cells, CD8+ T Cell, T- हेल्पर -1 इस प्रकार ऑटो एण्टीबॉडीज या आटो रिएक्टिव टी- सेल्स जो स्वास्थ की रक्षा करते हैं। वे ही हमारे खिलाफ काम करने लगते हैं और ऐसा किसी बैक्टीरिया, वॉयरस या किसी प्रकार के पैथोजेन्स अथवा अन्य किसी बाह्य पर्यावरणीय जैसे कुछ दवाइयां, रासायनिक विष, ठण्डा तथा गरम मौसम, पर्यावरण प्रदूषण आदि कारकों के कारण होता है।
अभी हाल ही में किये गये शोध पत्रों में प्रकाशित विभिन्न रिसर्च के अनुसार शरीर के उन सुरक्षा सैनिकों की पहचान कर ली गयी है, जो विभिन्न प्रकार के ऑटोइम्यून डिजीज पैदा करते हैं। यही मुख्य रूप से ऐसे दु:साहसी विगरैल रोग कारक सैनिक हैं, जिनकी आटोइम्यून डिजीज पैदा करने में निर्णायक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इनमें मुख्य रूप से बी-सेल्स के कुछ एण्टी बॉडीज इम्यूनोग्लोबलिन तथा टी-सेल ये सभी शरीर की सुरक्षा करने के बदले अलग-अलग ऑटोइम्यून डिजीज से सम्बधित अंगो के उत्तको एवं विभिन्न कोशिकाओं को नष्ट करने लग जाते हैं लेकिन अब ये अपने रास्ते भटक गये हैं। CD4+T Cells, CD8+T Cell  तथा Treg टी-सेल्स, साइटोकाइन्स, ब्रूटोन्स टायरोसिन काइनस है। जाबाज सुरक्षा सैनिक हैं। अपने सही रास्ते से भटकने वाले इन गुमराह विपथ गामी और पथ भ्रष्ट सैनिकों की सिंगलिंग पाथवेज की पहचान कर ली गयी है। पथ भ्रष्ट इन सैनिकों को हर संभव सही रास्ते पर लाने की कोशिश की जाती है, नहीं मानने पर या तो हठपूर्वक रोग पैदा करने जैसे इनके घिनौनी गलत कार्य को बलपूर्वक रोका जाता है अथवा दबाकर रखा जाता है। प्राकृतिक-योग-आयुर्वेद चिकित्सा, सम्यक उपचार, आहार विचार एवं जीवनशैली द्वारा इन्हें सही रास्ते पर लाया जाता है और स्वास्थ्य प्रदान किया जाता है। 
प्राय: 75 प्रतिशत महिलाएँ गर्भावस्था में ऑटोइम्यून डिजीज से ग्रस्त होती हैं। 75 प्रतिशत रयूमेटायड अर्थराइटिस तथा 90 प्रतिशत महिलाएं एस.एल.. से ग्रस्त होती हैं। गर्भावस्था के अतिरिक्त रजोनिवृत्ति के समय महिलाएं ऑटोइम्यून की शिकार होती हैं। 50 वर्ष की आयु में नदर्न यूरोपियन लोगों में जॉयन्ट सेल अर्थराइटिस (GCA) तथा एस.एल.. प्राय: अफ्रिकन, अमेरिकन में ज्यादा होता है। मेडिटेरनीयन में पेम्फिगस वलगरिस वनस्पति ज्यादा होता है। जो औरत रयूमेटायड अर्थराइटिस आर.. से ग्रस्त रही है, उनकी बेटी का एस.एल.. होने का खतरा होता है, आवश्यक नहीं है। एक्स लिंक्ड गामा ग्लोबुलिनेमिया (XLA) में डिफेक्टिव पैथोजेनिक बुटोन टायरोसिन काइनेस की मुख्य भूमिका होती है। ऑटोइम्यून रोग XLA में बी-सेल गलत रोग कारक एण्टी बॉडीज इम्यूनोग्लो बुलिन्स बनाने लगता है। इसके कारण ब्रोकाइटिस, दस्त, मध्य कान का संक्रमण, साइनोसाइटिस, कनजक्टिवाइटिस, त्वचा संक्रमण आदि लक्षण दिखते हैं।
जांच
इन रोगों की जांच में कम्पलिट ब्लड काउण्ट, एण्टीबॉडीज टेस्ट, किडनी फंक्शन टेस्ट, लिपिड प्रोफाइल करायें। एस.एल.. में WBC एवं प्लेटलेट्स कम होते हैं, ESR तथा पेशाब में प्रोटीन ब्लड सेल्स बढ़ा हुआ होता है। रक्त एवं यूरिन, शुगर एवं प्रोटीन जांच, एण्टीथायरॉयड एण्टीबॉडीज, एण्टीन्यूक्लियर एण्टीबॉडीज, .एन.., सी.आर.पी., इम्यूनो फ्लुओरेससेन्स एस्से (I.F.A) इमेजिंग टेस्ट, एक्स-रे, बायोप्सी जांच आदि की जाती हैं। सामान्य जांच में सभी रोगियों का बी.पी., आर.आर., पी.आर. वजन, तापमान आदि लेना आवश्यक है।
प्राकृतिक चिकित्सा
रोगी के स्थिति के अनुसार उपचार निर्धारित किया जाता है। मिट्टी की पट्टी, पेट, सिर, आँख का गरम पाद स्नान, गीली चादर लपेट, पूर्ण टब इमरसन-बाथ, वाष्प-स्नान, सावना-बाथ, स्टीम-बाथ, गीलीचादर लपेट, अलग-अलग अंगों की लपेट व्हर्लपूल, सर्कुलर बाथ, रीढ़-स्नान, कटि-स्नान आदि दें। रोग एवं रोगी के स्थिति के अनुसार उपचार दें जैसे एस.एल.. में सूर्य स्नान रोग को उग्र कर देता है। वही मल्टीपल स्क्लेरोसिस, टाइप-1 तथा टाइप-2 डाइबिटीज, सोरायसिस, रूमेटायड तथा हर प्रकार के आर्थराइटिस एवं अस्थि रोग में लाभकारी है। कुछेक सोरायसिस रोगियों में सूर्य स्नान रोग को उग्र बनाता है।
योग
षट्कर्म में जलनेति, कुंजर, सूत्र नेति, शंखप्रक्षालन, क्षीरबस्ती आदि रोगी की स्थिति के अनुसार।
आसन
संधि-संचालन के सूक्ष्म व्यायाम, पवन मुक्तासन, भुजंगासन, अर्द्धशलभासन।
प्राणायाम
अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका, कपालभाति, उद्गीथ प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम प्रतिदिन 3-5 घण्टे सुविधानुसार बैठकर, चलते हुए एवं सोते हुए प्राणायाम अवश्य करें। विशेष रूप से अनुलोम-विलोम प्राणायाम कभी भी किया जा सकता है।
आहार-चिकित्सा
एस.एल.. रोगी को दो प्रकार के आहार नहीं दें-
1.    लहसुन में मौजूद एल्सिसिन एजोएने तथा थायोसल्फिनेटैस्म् को लक्षण का बढ़ा देता है।
2.    अंकुरित अल्फाल्फा या रिजका में मौजूद एल-केनाथेनिन एमिनो एसिड इम्यूनसिस्टम को भयंकर रूप से उत्तेजित करके ल्यूपस के लक्षणों को बढ़ा देते हैं।
आटोइम्यून वाले रोगियों को कम वसा वाला दूध, चीज, दही, बीजों में ककड़ी, खीरा, पम्पकिन, खर्बूजा, तरबूजा, छिलका रहित भीगा हुआ बादाम, मूंगफली, केला, खजूर, किशमिश को मिक्सी में पीसकर दूध बनाकर, सोयाबीन का दूध तथा दही, टोफू, पनीर, कैल्शियम तथा विटामिन-डी, फोर्टिफाइड वाले आहार, मैग्नेशियम एवं कैरोटिन वाले आहार गहरे हरे रंग की साग-सब्जियां, गाजर, पालक, लेटुस, कोलार्ड, चौलाई, बथुआ, धनिया, पार्सली, सिलान्ट्रो, मूली, चुकन्दर, शलगम तथा उनके पत्ते की सब्जी, फलों में स्ट्राबेरी, डार्कमलबेरी, ब्लू तथा ब्लैक बेरी, शकरकन्द, सेब, अंगूर, नाशपाती, आडू, मीठा आलू बुखारा, अनानास इत्यादि में तुलसी तथा अर्जुन की छाल का काढ़ा रोगी की स्थिति के अनुसार दें। मरकरी को शरीर से निकालने के लिए पेक्टिन वाले आहार सेव, नाशपाती, बेर, केला, एवोकोडो, जौ के ज्वारा रस, ग्रीन-टी, स्पाइरूलिना, ओट्स, ब्रोकली खायें।
कभी-कभी संतरा, मौसम्मी, नींबू, चकोतरा, आम ले सकते हैं। बीन्स, ब्रोड बीन्स, बाकला, सेम, बीन्स, लेग्यूम्स, चौलाई, ग्वार, सहजन की फली का उपयोग कभी-कभी अवश्य करें।
निषेध
किसी प्रकार के मांस, मछली, हेमबर्गर, हॉट डॉग, स्ट्रांग नॉफ एटॉप पास्ता, बीफ सेण्डवीच, मटनकरी, कोमो, ओएस्टर, तावा मटन, फ्राइड मीट, कबरगाह कीमा, मटर मसाला आदि मांसाहार, -सिगरेट (कैडमियम) हेवी मेटल धाव्रिक आहार मछली (मर्करी), ब्राउन राइस (आर्सेनिक) लेड (कई प्रकार के हड्डियों का सूप बोन ब्रोथ) भूलकर भी नहीं खायें। तंदूर, डीप फ्राई, ग्रिलिंग आदि अधिक तापमान पर बने आहार, प्रोसेस्ड मांसाहार, प्रिजरवेटिंग फ्लेवर, साल्टिंग, क्यूरिंग, स्मोकिंग हॉट-डॉग, हेम बेकन कोहरिजो सलामी आदि मांसाहार नहीं लें। फफूंद वाले आहार, कॉर्न सिरप शुगर, कैण्डी, क्रीम रॉल, कूक्स, कूकीज, पेटीज-पेस्टी इत्यादि कन्फेक्शनरी-फूड किसी प्रकार के ज्यादा नमकीन, वसा एवं शुगर वाले आहार, नाइट शेड सोलेनेसी आहार, टमाटर, बैंगन, आलू, किसी प्रकार की मिर्च हरी या लाल, मिठ्ठी-तिखी मिर्च, अंडा, कॉफी, अल्कोहल, चीनी, तेल, एडिटिव नहीं लें और ही दें। एण्टीइन्फ्लामेटरी आहार का प्रयोग करें।
 

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