जीवन की उत्पत्ति मानव काल गणना और जैव उत्कृष्टता

जीवन की उत्पत्ति मानव काल गणना और जैव उत्कृष्टता

डॉ. चंद्र बहादुर थापा 

वित्त एवं विधि सलाहकार- भारतीय शिक्षा बोर्ड एवं विधि परामर्शदाता पतंजलि समूह

5. विवस्वान संवत (१३,९०२ .पू.) - विद्वान मानते हैं कि यह पंचाग जल प्रलय काल के आसपास का था, सूर्य सिद्धांत गणित अनुसार यह चैत्र-शुक्ल पक्ष से शुरू होता था।
6. इक्ष्वाकु संवत (,५७६ .पू.) - राजा इक्ष्वाकु ने शुरू किया था और यह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है।
7. प्राचीन सप्तर्षि संवत (6,676 .पू. से आरम्भ)
8. कलम्ब संवत (,१७७ .पू.) - इसको कोल्लम संवत भी कहते हैं और यह परशुराम अवतार के समय का माना जाता है।
9. सप्तर्षि संवत् (3,076 ईसा पूर्व) - महाभारत काल तक इस संवत् का प्रयोग हुआ था। बाद में यह धीरे-धीरे विस्मृत हो गया। इसको बचाने का श्रेय कश्मीर, और हिमाचल प्रदेश को है। कश्मीर में सप्तर्षि संवत् को (लौकिक संवत्) कहते हैं और जम्मू हिमाचल प्रदेश में शास्त्र संवत्। जब से सृष्टि प्रारंभ हुई है, तभी से सप्तर्षि संवत् अस्तित्व में आया है। प्राचीनकाल में भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी सप्तर्षि संवत् का प्रयोग होता था। नाम से ही स्पष्ट है कि इस संवत् का नामकरण सप्तर्षि तारों के नाम पर किया गया है। ब्राह्मांड में कुल 27 नक्षत्र हैं। सप्तर्षि प्रत्येक नक्षत्र में 100-100 वर्ष ठहरते हैं। इस तरह 2700 साल पर सप्तर्षि एक चक्र पूरा करते हैं। इस चक्र का सौर गणना के साथ तालमेल रखने के लिए इसके साथ 18 वर्ष और जोड़े जाते हैं। अर्थात् 2718 वर्षों का एक चक्र होता है। एक चक्र की समाप्ति पर फिर से नई गणना प्रारंभ होती है। इन 18 वर्षों को संसर्पकाल कहते हैं। जब सृष्टि प्रारंभ हुई थी उस समय सप्तर्षि श्रवण नक्षत्र पर थे और आजकल अश्वनी नक्षत्र पर हैं।
10.    कलियुग संवत् 3102 .पू. से आरम्भ होता है। इस संवत की शुरुआत पांडवों के द्वारा अभिमन्यु के पुत्र परिक्षित को सिँहासनारुढ़ करके स्वयं हिमालय की और प्रस्थान करने एंव भगवान श्रीकृष्ण के वैकुण्ठ जाने से मानी जाती है।
11.    जैन-युधिष्ठिर संवत (,६३४ .पू.) - काशी के राजा पार्श्वनाथ ने संन्यास लेने के बाद युधिष्ठिर के आठवीं पीढ़ी के काल में शुरू हुआ जो माघ महीने से शुरू होता था। ये ही जैन धर्म के तीर्थंकर थे।
12.    शिशुनाग संवत (,९५४ .पू.) - शिशुनाग वंश के प्रथम राजा की मृत्यु के बाद शुरू हुआ।
13.    नंद संवत (,६३४ .पू.) - महापद्मनाद के राज्याभिषेक से शुरू हुआ।
14.    शुद्रक संवत (७५६ .पू.) - इसको कृत संवत भी कहा जाता है।
15.    वीर निर्वाण संवत 7 अक्टूबर 527 .पू. से आरम्भ होता है। यह 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण का स्मरण करता है। यह कालानुक्रमिक गणना की सबसे पुरानी प्रणाली में से एक है जो अभी भी भारत में उपयोग की जाती है।
16.    विक्रम संवत् 57 .पू. से प्रारम्भ, उज्जैन के शासक विक्रमादित्य द्वारा शकों पर विजय प्राप्त करने के बाद हुआ था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस का प्रारंभ 'मालव गणराज्यÓ द्वारा किया गया था, कालांतर में गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा मालवा विजय के पश्चात इसका नाम विक्रम संवत् रखा गया। इस संवत् का आरम्भ गुजरात में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से और उत्तरी भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य चन्द्रमा की गति पर रखा जाता है। यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। पूर्णिमा के दिन, चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है, इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है (अधिमास) जिस दिन नव संवत् का आरम्भ होता है, उस दिन के वार के अनुसार वर्ष के राजा का निर्धारण होता है। नेपाल में यह वैशाख 1 के दिन शुरू होकर चैत्र मासांत तक रहता है। आज नेपाल के अनुसार, सोमवार  22 जेष्ठ 2080 विक्रम सम्वत् है जो भारत में 5 जून 2023 है।
17.    शालिवाहन शक अर्थात् शक संवत् की प्रवर्तन (आरम्भ) वर्ष 78 . में वसन्त विषुव के आसपास हुई थी और हिंदू पञ्चाङ्ग, भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर और कम्बोडियाई बौद्ध पञ्चाङ्ग के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन सम्राट कनिष्क ने शकों पर विजय प्राप्त करने के उपरांत किया था। 365 दिन के सामान्य वर्ष में शक संवत् में वर्ष का पहला दिन 1 चैत्र तथा ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष 22 मार्च या अधिवर्ष में 21 मार्च को पड़ता है। शककाल का आरम्भ 550 .पू. में हुआ। उज्जैन के श्री हर्ष विक्रमादित्य ने जब शक लोगों को परास्त किया तब से इस संवत् का प्रारम्भ हुआ। यह युधिष्ठिर के मृत्युकाल 2526 वर्ष बाद शुरु हुआ। युधिष्ठिर का देहान्त 3102 ईपू में, श्रीकृष्ण के स्वर्गारोहण के एकदम बाद हुआ था। इस प्रकार इस की तिथि 576 .पू. भी निश्चित होती है। कल्हण के अनुसार श्रीहर्ष विक्रमादित्य, हिरण्य, मातृगुप्त तथा प्रवरसेन द्वितीय के समकालीन थे। उन्होंने सम्पूर्ण उत्तरीय भारत पर अपना शासन स्थापित किया और शक लोगों को बुरी तरह से हरा दिया। तभी से शक सम्वत् का प्रारम्भ हुआ। इसी कारण ये श्री हर्ष को 'विक्रमादित्यकी उपाधि मिली। कविवर मातृगुप्त ने इन विक्रमादित्य को इसी कारण 'शकारिलिखा है। यही वराहमिहिर और आमराज के द्वारा उपयोग किया गया शक संवत् है, जो 550 .पू. से या 518 विक्रम पूर्व से प्रारम्भ होने वाला प्रथम शक संवत् है। साइरस शक राजकुमार पर्शियन राज्य के अन्तर्गत (एलम) नामक एक छोटी सी रियासत का राजकुमार था। साइरस ने कुछ शक्ति संचय करके सत्र से पूर्व साइक्ज़ेरस पर आक्रमण किया और 550 . पूर्व में मीडिया को परास्त कर के अपने पर्शियन साम्राज्य की नींव रखी। भारतवर्ष के साथ इस सम्राट् साइरस का घना सम्बन्ध था। पर्शियन सम्राज्य की स्थापना में उसे सिन्धुदेश या भारत के राजा से बहुत अधिक सहायता मिली थी। अत: 550 .पू. की तिथि मीडियन साम्राज्य के अन्त और पर्शियन साम्राज्य की स्थापना को सूचित करती है। यह तिथि संसार के इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। हिरोडोटस ने स्पष्ट रूप में लिखा है कि इस काल के बाद पर्शियन राजा, काल गणना इसी तिथि से किया करते थे। 550 .पू. की तिथि को भारतीय साहित्य में भी संस्कृत साहित्य के प्राचीन ग्रन्थ वराह मिहिर के संहिता में उल्लेखीत किया गया है और उस काल से भारत मे यह संवत् आरंभ होता है।
18.    लोधी संवत 160 . से आरम्भ होता है, जो न्यायप्रिय शासक महाराज विक्रमादित्य के बाद महाराज ब्रह्मस्वरूप लोधी के राज्याभिषेक के समय मैसूर के मुम्मड़े नामक नगर में शिलालेख में उत्कीर्ण कराया था।
19.    कलचुरि-चेदि संवत् की शुरुआत संभवत: 248-49 . के लगभग पश्चिमी भारत के अमीर नरेश ईश्वर सेन द्वारा की गई थी। मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के कलचुरि शासकों द्वारा उनके लेखों में इसी संवत् का प्रयोग किया गया।
20.    गुप्त संवत् की शुरुआत गुप्त वंश के शासक चंद्रगुप्त प्रथम ने 319 . में की थी।
21.    वल्लभी संवत् की जानकारी अलबरूनी के विवरण से मिलती है। वह लिखता है कि वल्लभ नामक राजा ने शक काल के 241 वर्ष बाद वल्लभी संवत् का प्रवर्तन किया था। इस प्रकार इसकी स्थापना तिथि 78+241=319 . निकाली जाती है। यही तिथि गुप्त संवत् की भी है। अत: दोनों संवत् एक प्रतीत होते हैं।
22.    हर्ष संवत् वर्धन वंश के शासक हर्ष वर्धन के राज्यारोहण वर्ष 606 . से प्रारंभ मानी गई है। हर्ष के समकालीन उत्तर के गुप्त राजाओं तथा नेपाल के लेखों में इस संवत् का प्रयोग पाया जाता है।
23.    नेपाल संवत् नेपाल के लोगों द्वारा उपयोग किया जाने वाला चंद्र-सौर पञ्चाङ्ग 20 अक्टूबर 879 ईस्वी से आरम्भ होता है। यद्यपि नेपाल संवत् को नेपाल का राष्ट्रीय पंचांग घोषित किया गया है और नेपाल में व्यापक रूप से इसका उपयोग किया जाता है, किन्तु यह मुख्यत: नेवार समुदाय द्वारा उपयोग किया जाता है और विक्रम संवत पूरे देश में प्रमुख पञ्चाङ्ग बना हुआ है।
24.    विदेशी कैलेण्डर
  (i) इनोक- इथोपिया, (ii) मिश्र, (iii) सुमेरिया, (iv)  यहूदी, (v) ईरान के () दारा, () तारीख--जलाली, () पहलवी (vi) ग्रीक-सेलुलिड, (vii) रोमन-जूनियन, (viii) मुस्लिम-हिजरी तथा (ix) तेरवें पोप ग्रेगरी द्वारा १७५२ ईस्वी में सम्वर्धित वर्तमान अंगे्रजी कैलेण्डर।
-क्रमश:

Advertisment

Latest News

परम पूज्य योग-ऋषि स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य........... परम पूज्य योग-ऋषि स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य...........
ओ३म 1. भारत का सामर्थ्य - रोगमुक्त इंसान एवं रोगमुक्त जहान् और न केवल रोगमुक्त, नशा, हिंसा, घृणा, विध्वंस, युद्ध...
पतंजलि ने आयुर्वेद को सर्वांगीण, सर्वविध रूप में, सर्वव्यापी व विश्वव्यापी बनाया
नेपाल में भूकंप पीडि़तों के लिए पतंजलि बना सहारा
पतंजलि विश्वविद्यालय में 'समग्र स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक चिकित्सा’ विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन
शास्त्रों के अनुसार राजधर्म का स्वरूप
जीवन को निरोगी एवं स्वस्थ बनायें उपवास (Fasting)
हिन्दू नृवंश के विश्वव्यापी विस्तार के संदर्भ में आवश्यक विचार
स्वास्थ्य समाचार
हिपेटाइटिस
अनुशासन : योग का प्रथम सोपान